दफ्तर से आकर मैं बिस्तर पर लेट गया। बहुत थका था। मन ही मन सोंचने लगा " क्या जिंदगी है, घर दफ्तर हर जगह बस टेंशन ही टेंशन है " तभी मेरी नज़र मेरे कमरे की बालकनी पर बैठे बंदर पर पड़ी ' ये क्या मज़े में है। कोई फिक्र नहीं। बस दिन भर उछलते कूदते रहो। ' बंदर ने मुझे देखा और मैंने उसे। हम एक दूसरे को घूरने लगे। अचानक जैसे बिजली कौंधी। बस एक पल में सब उलट पलट हो गया। मेरी पत्नी कमरे में आई और मुझे देख कर चीख पड़ी " बंदर हट ....... हट " वह बगल के कमरे से भागकर मेरे बेटे का बैट उठा लाई और मेरी तरफ लपकी। उसका रौद्र रूप देख कर मैं सहम गया। बंदर के शरीर में होने फायदा उठा कर मैं छलांग मार कर बालकनी में आ गया और वहां से दूसरे की बालकनी में कूद गया। मेरी पत्नी बंदर को डांटने लगी "आप मुंडेर पर बैठे बैठे क्या कर रहे हैं।" मैं इधर से उधर कूदने लगा। बड़ा मज़ा आ रहा था। कहीं भी कूद कर चले जाओ, पल भर में ऊपर चढ़ जाओ फिर तेज़ी से नीचे आ जाओ। बहुत देर तक उछालने कूदने के बाद भूख लगने लगी। मैं इधर उधर खाना ढूढ़ने लगा। एक फ्लैट की खिड़की से झाँका। अंदर एक महिला बैठी ट
नमस्ते मेरे Blog 'कथा संसार' में आपका स्वागत है। यह कहानियां मेरे अंतर्मन की अभिव्यक्ति हैं। मेरे मन की सीपी में विकसित मोती हैं।