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जुलाई, 2013 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

चमत्कार

दफ्तर से आकर मैं बिस्तर पर लेट गया। बहुत थका था। मन ही मन सोंचने लगा " क्या जिंदगी है, घर दफ्तर हर जगह बस टेंशन ही टेंशन है " तभी मेरी नज़र मेरे कमरे की बालकनी पर बैठे बंदर पर पड़ी ' ये क्या मज़े में है। कोई फिक्र नहीं। बस दिन भर उछलते कूदते रहो। ' बंदर ने मुझे देखा  और मैंने उसे। हम एक दूसरे को घूरने लगे। अचानक जैसे बिजली कौंधी। बस एक पल में सब उलट पलट हो गया। मेरी पत्नी कमरे में आई और मुझे देख कर चीख पड़ी "  बंदर हट ....... हट " वह बगल के कमरे से भागकर मेरे बेटे का बैट उठा लाई और मेरी तरफ लपकी। उसका रौद्र रूप देख कर मैं सहम गया। बंदर के शरीर में होने फायदा उठा कर मैं छलांग मार कर बालकनी में आ गया और वहां से दूसरे की बालकनी में कूद गया। मेरी पत्नी बंदर को डांटने लगी "आप मुंडेर पर बैठे बैठे क्या कर रहे हैं।" मैं इधर से उधर कूदने लगा। बड़ा मज़ा आ रहा था। कहीं भी कूद कर चले जाओ, पल भर में ऊपर चढ़ जाओ फिर तेज़ी से नीचे आ जाओ। बहुत देर तक उछालने कूदने के बाद भूख लगने लगी। मैं इधर उधर खाना ढूढ़ने लगा। एक फ्लैट की खिड़की से झाँका। अंदर एक महिला बैठी ट

विकल्प

रचनाकार: आशीष त्रिवेदी की लघुकथा - विकल्प मैं कुछ कुछ सामान लेकर लौट रहा था। साथ में मेरी सात वर्ष की बेटी भी थी। एक मकान के सामने भीड़ लगी देख कर मैं  भी कौतुहलवश वहां खड़ा हो गया। अधेड़ उम्र का एक व्यक्ति एक दस बारह साल के बच्चे का कान उमेठ रहा था। लड़का दर्द से चीख रहा था " छोड़ दीजिये अंकल जी अब नहीं करूंगा।" पास खड़े एक अज्जन बोले " अजी एक नंबर का चोर है। इनके घर में घुस कर पेड़ से आम तोड़ रहा था।" मामला समझ कर मैं आगे बढ़ गया। मेरी बेटी ने पूछा " पापा वो अंकल उस बच्चे को क्यों मार रहे थे।" मैंने उसे चोरी करना बुरी बात है यह समझाने के लिहाज़ से कहा " देखो बेटा बिना पूंछे किसी की कोई चीज़ नहीं लेनी चाहिए। उस लड़के ने बिना पूछे उनके पेड़ से आम तोड़े जो गलत है।" कुछ सोंच कर वह बोली " उसे अगर आम खाने थे तो अपने पापा से कहता या जो उसके पास था वही खाता। उसने गलत काम किया।" उसने तो मासूमियत में कह दिया  'उसके पास जो था वही खाता' किन्तु इस बात ने मेरे दिल में हलचल मचा दी। उसे कैसे समझाता कि दुनियां में कुछ लोगों का आभाव इतना अध

वो

कल मैंने उसे फिर देखा। उन सफ़ेद लिली के फूलों के पास जहाँ वह दस माह पूर्व पहली बार दिखाई दी थी। कई बरस अमेरिका में बिताने के बाद वहां के भाग दौड़ भरे जीवन से मैं थक गया था। अतः  कुछ आध्यात्मिक अनुभव प्राप्त करने की चाह मुझे मेरे वतन वापस खींच लाई। मैंने इस छोटे से हिल स्टेशन पर यह कॉटेज ले लिया। सैलानियों की आवाजाही न होने से यह जगह बहुत शांत थी। मैं अक्सर ही किसी पहाड़ पर या नदी के किनारे बैठ कर उस परम शक्ति से संबंध स्थापित करने की कोशिश करता था जिसे लोग धार्मिक स्थानों पर ढूँढते हैं। पहले ही दिन से मुझे यह एहसास हो रहा था की मैं कॉटेज में अकेला नहीं हूँ। पढ़ते समय अक्सर मुझे लगता कि अचानक कोई मेरे पास से गुजर गया या कोई बाहर खिड़की पर खड़ा मुझे घूर रहा है। मैं देखता तो कोई नहीं होता। मैं इसे मन का वहम समझ कर टाल देता। उस दिन शाम के समय मैं कॉटेज के गार्डन में बैठ कर ध्यान कर रहा था। अचानक मेरी आँख खुली तो देखा की लिली के फूलों के पास वह खड़ी  थी। उसकी निगाह मुझ पर पड़ी। कुछ पल देखती रही फिर अचानक गायब हो गई। मैं सिहर उठा। मैंने वह रात अपने मित्र के घर बिताने का विचार किया। जा

अंजान फिज़ा

शायरा ने कपड़े गहने जो समेट सकती थी उनकी गठरियाँ बाँध लीं। उसके दोनों बच्चे सो रहे थे। तेरह बरस की शबनम और दस वर्ष का आमिर। उसने दोनों के माथे प्यार से सहलाए और वहीं बैठ गई। बाहर ज़ोरों की बारिश हो रही थी। उसके भीतर भी एक तूफ़ान मचा था। बस कुछ ही घंटों में यह घर गाँव सब छूट जाएगा। वह एक अंजान जगह को अपना बनाने के लिए चली जाएगी। उसके दिल में एक हूक सी उठी। ' ये कैसी आज़ादी मिली है मुल्क को ? ऐसा बवंडर उठा है जिसने लोगों को उनकी जड़ों से ही उखाड़ दिया। क्या इसी दिन के लिए लड़ी गई थी आज़ादी की जंग ?' उसके शौहर गाँधी बाबा के पक्के चेले थे। सन ४ २ में अंग्रेजों की लाठी से चोट खाकर ऐसी खटिया पकड़ी कि तीन साल एड़ियां रगड़ने के बाद मौत नसीब हुई। वह सब क्या इसी दिन के लिए था। अपनी धरती छोड़ कर जाना उसके लिए इतना आसान नहीं था। इसी मिटटी में उसके पुरखे दफ़न हैं। यहीं की आबो हवा में वह पली बढ़ी है। अब सब कुछ छोड़ कर जाने में दिल में दिल में टीस उठती है। उसने कई दफा अपने भाईजान को समझाने की कोशिश की " हम क्यों जाएँ यहाँ से। इतनी ज़िन्दगी बितायी है यहाँ। सब अपने ही तो हैं फिर डर किस ब