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जुलाई, 2017 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

मित्रता दिवस

मित्रता दिवस के अवसर बारहवीं कक्षा के सभी बच्चों को स्कूल कैंपस में खाली पड़ी ज़मीन पर ले जाया गया। बच्चे समझ नहीं पा रहे थे कि माज़रा क्या है। उनकी दुविधा को समझ कर प्रिंसिपल मैम ने बच्चों को संबोधित करते हुए कहा  "आप सोंच रहे होंगे कि आप लोगों को यहाँ क्यों लाया गया है। आज यहाँ हम खास कारण से इकठ्ठे हुए हैं।" "वह खास कारण क्या है?" बीच में खड़े एक बच्चे ने सवाल किया। "हमारे आसपास का वातावरण दिन पर दिन दूषित हो रहा है। कई बच्चे इसके कारण बीमार पड़ रहे हैं। इसका कारण है पेड़ पौधे जो वातावरण को शुद्ध रखते हैं वह तेजी से काटे जा रहे हैं। अतः मित्रता दिवस पर हम एक नई दोस्ती का आरंभ करेंगे। इस खाली ज़मीन पर पौधे लगा कर हम प्रकृति से दोस्ती का हाथ मिलाएंगे।" "पर मैम इस छोटी सी ज़मीन पर पौधे लगाकर पूरे शहर को प्रदूषण मुक्त कैसे कर सकते हैं।" एक अन्य छात्रा ने पूंछा। "यह एक छोटी सी पहल है। जब हम शुरुआत करेंगे तभी तो दूसरों को भी इस मिशन से जुड़ने को कह सकेंगे।" प्रिंसीपल मैम की बात सबको समझ में आ गई। उसके बाद शिक्षकों तथा बच्चों ने उस भूमि पर

बंधन

जब से रश्मी के गर्भवती होने की रिपोर्ट पॉज़िटिव आई थी वह अपने  रिश्ते को लेकर भी पॉज़िटिव हो गई थी। उसे पूरी उम्मीद थी कि आने वाला बच्चा सौरभ को उसके नज़दीक ले आएगा। बच्चा दोनों को  बांधने वाली डोर साबित होगा। उसने प्यार से सौरभ के कंधे पर अपना सर रख दिया। रिपोर्ट के आने के बाद से ही सौरभ के दिमाग में उलझन थी। अब तक वह स्वतंत्र था। अपनी शर्तों पर रिश्ते को चला रहा था। पर यह बच्चा उसके पैरों की जंजीर बनने वाला था।  उसने गुस्से से रश्मी का सर कंधे से हटा दिया।

ट्रोल

सोशल मीडिया पर अपने प्रतिद्वंदी के बढ़ते कद से पवन बहुत परेशान था।  "सर परेशान क्यों होते हैं? मैं हूँ ना। बस पैसा लगेगा। आपका प्रतिद्वंदी रातों रात हीरो से ज़ीरो हो जाएगा।" उसके सेक्रेटरी ने दांत निकालते हुए कहा। "वौ कैसे?" पवन ने उत्सुकता से पूँछा।  "सर मैं एक आदमी को जानता हूँ। वह सब कर देगा। आप बस पैसा दीजिए।" पवन ने सेक्रेटरी की बात मान ली। उसके प्रतिद्वंदी का सोशल मीडिया पर मज़ाक बनने लगा।

तेरे प्यार में

गिरीश होश में आया तो चारों ओर घुप्प अंधेरा था। कुछ देर में जब आँखें कुछ अभ्यस्त हुईं तो उसे हल्का हल्का नज़र आया। आस पास पुराना सामान, कार्ड बोर्ड के बक्से रखे थे। शायद स्टोर रूम था। उसके हाथ पीछे बंधे थे। उसने उठने का प्रयास किया तो सर के पीछे तेज़ दर्द महसूस हुआ। यहीं पर किसी ने डंडा मारा था। उसकी आँखों के आगे अंधेरा छा गया था। चेतना लुप्त हो गई। अब जाकर उसे होश आया था। न जाने कितनी देर से वह यहाँ था। वह एक कार्ड बोर्ड के बक्से से पीठ लगा कर बैठ गए। जगह का अंदाज़ लगाने के लिए वह बाहर की आवाज़ों को ध्यान से सुनने की कोशिश करने लगा। बैंड बाजे बजने की आवाज़ आ रही थी। वह समझ गया। उसे हंसराज जी के फॉर्म हॉउस में बंद करके रखा गया है। आज उसकी पत्नी की शादी हो रही है। बारात दरवाज़े पर आ चुकी है। वह दुल्हन बनी राखी की कल्पना करने लगा। कितनी सुंदर लग रही होगी वह। पिछली बार साधारण से जोड़े में ही किसी महारानी की तरह लग रही थी। अब तो सब कुछ उसके पिता की मर्ज़ी से हो रहा है। कोई कसर नहीं छोड़ी होगी। किसी बड़े डिज़ाइनर का लहंगा पहना होगा। गहनों से लदी अप्सरा सी लग रही होगी। गिरीश अतीत की गल

योगदान

रौशन अपनी नई फैक्ट्री शुरू करने की खुशी में पार्टी दे रहे थे। इस अवसर पर बुलाए जाने वाले मेहमानों की सूची देखते हुए उनकी पत्नी ने आपत्ति की "आपने चाचा जी को क्यों बुलाया है?" रौशन हंस कर बोले "मेरी सफलता में सबसे बड़ा योगदान तो उनका ही हैं।" पत्नी ने कुछ गुस्से से कहा "कैसे?? उन्होंने तो मुझे अस्पताल पहुँचाने के लिए अपनी कार देने से भी मना कर दिया था।" रौशन बोले "सोंचो यदि उस दिन उन्होंने कार दे दी होती तो मैं सिर्फ मांगने लायक ही रह पाता।" कुछ सोंच कर आगे बोले "उन्होंने ताना दिया कि कार का शौक है तो खुद खरीद लो। उनके इस जवाब ने ही मुझे खुद की पहचान बनाने को प्रेरित किया।"

अपनी लड़ाई

रूबी को उदास देख कर उसकी दादी ने प्यार से सर पर हाथ फेरा। रूबी ने उनका हाथ थाम कर कहा "दादी पापा मुझे फिल्म मेकिंग का कोर्स करने से मना कर रहे हैं। मैं वाइल्ड लाइफ पर फिल्में बनाना चाहती हूँ। पर पापा कहते हैं कि तुम कहाँ जंगलों में भटकोगी।" दादी उसके पास बैठ कर बोलीं "मेरे समय में लोग औरतों का नौकरी करना पसंद नहीं करते थे। जब मैंने अपने पिता जी से नौकरी करने की बात की तो वह बहुत नाराज़ हुए। लेकिन मैं भी अपने फैसले पर अडिग रही। उन्होंने इजाज़त दे दी।" रूबी ने प्रशंसा भरी दृष्टि से दादी को देखा। दादी ने आगे कहा "अब समय बदल गया है। औरतें नौकरी करने लगी हैं। लेकिन कुछ क्षेत्रों को लोग अभी भी उनके लिए सही नहीं मानते। अब तुम्हारी बारी है।" रूबी अपनी दादी का आशय समझ गई "दादी आगे की लड़ाई अब आज की औरतें लड़ेंगी।"

मृगतृष्णा

'आज स्वामी जी का प्रवचन नहीं होगा' यह घोषणा होते ही सभी लोग मायूस हो गए। रमन भी पिछले कई महीनों से यहाँ आ रहा था। अपने मन की तपिश को कम करने के लिए। उसे उम्मीद थी कि एक दिन स्वामी जी उसके मन की पीड़ा को अवश्य ही कम कर देंगे। वापस लौटने की जगह वह स्वामी जी को प्रणाम करने उनकी कुटी की ओर चल दिया। वहाँ पहुँचा तो देखा स्वामी जी अपने सीए के साथ आश्रम की कमाई को कैसे बढ़ाया जाए इस पर विमर्श कर रहे थे। वह बहुत परेशान दिख रहे थे। रमन उल्टे पांव लौट गया। फिर कभी नहीं आया।

हार जीत

विपुल रेस में सबसे आगे दौड़ने वाले धावक से बस कुछ ही पीछे था। रेस का अंतिम लैप था। लीड लेने के लिए विपुल ने अपनी गति बढ़ा दी। उसे पूरी उम्मीद थी कि वह इस राउंड में बढ़त बना कर स्वर्ण पदक जीत लेगा। तेज़ दौड़ते हुए वह सबसे आगे निकल गया था। अचानक ना जाने क्या हुआ कि उसका पैर मुड़ गया। पीड़ा से कराहते हुए वह ट्रैक पर गिर गया। सब आगे निकल गए। विपुल पीड़ा में था। जीतना तो दूर वह रेस भी पूरी नहीं कर सकता था।  हताश वह ट्रैक पर पड़ा था। तभी अपने पिता की बचपन में कही बात उसके दिमाग में गूंजने लगी "हार केवल मन की एक अवस्था है। कभी भी मन को हारने मत देना।" वह उठा और पीड़ा को भूल कर ट्रैक पर दौड़ने लगा। पदक न जीत कर भी उसने सबका दिल जीत लिया।

गर्व का दिन

आज बख़्शी जी बहुत खुश थे। उनकी नन्हीं परी के जीवन का आज बहुत महत्वपूर्ण दिन था। उनके हाथों को वही कोमल स्पर्श महसूस हो रहा था जो पहली बार अपनी बेटी को गोद में लेते समय हुआ था। वह उस खास पल को लेकर रोमांच महसूस कर रहे थे जब उनकी बेटी उस रूप में उनके सामने आएगी। तभी उन पैंतीस महिला एयर फोर्स ऑफिसरों का दल सामने से गुज़रा जो उस साल अकादमी से पास हुई थीं। पासिंग आउट परेड की अगुवाई उनकी बेटी अवनि कर रही थी। उसे वर्दी में देख कर बख़्शी जी की आँखें भर आईं।

लत का क़श

सामने मेज़ पर उसके लिखे पन्नों के ऊपर मेडिकल रिपोर्ट पड़ी थी। एक फेफड़े ने काम करना बंद कर दिया था। सामने ही सिगरेट की डिब्बी पड़ी थी। उस पर लिखी चेतावनी को उसने सदा अनदेखा किया। अपनों की हिदायत को सदा यह कह कर टाल दिया कि "बिना क़श लिए लिखने का मूड ही नहीं बनता है।" अब दिमाग में हलचल मची थी। उसे शांत करने के लिए उसने फिर एक लंबा क़श खींचा।

बीज

शालिनी इंटरव्यू के लिए अपनी बारी की प्रतिक्षा कर रही थी। अचानक उसे लगने लगा कि सामने बैठी लड़की उसे अजीब नज़रों से देख रही है। दबी हुई हंसी से उसकी किसी कमी का मजाक उड़ा रही है। उसे याद आया कि बस स्टॉप पर खड़ा लड़का भी उसे ऐसे ही देख रहा था। 'कहीं मेरे पीठ के बटन खुले तो नहीं हैं या फिर चेहरे पर कुछ लगा हो?' इस प्रकार की आशंका उसके मन में घुमड़ने लगी। उसने वॉशरूम में जाकर चेक किया सब ठीक था। लेकिन यह पहली बार नहीं हुआ था। अपने व्यक्तित्व के विषय में एक हीन भावना बचपन से उसके मन में थी। हर नज़र उसे अपने भीतर कमी खोजती सी लगती थी। हर मुस्कान तंज़ मालूम देती थी। अपनी दादी के शब्द उसे चुभते रहते थे "न शक्ल सूरत है न बाप के पास इतने पैसे। न जाने क्या होगा इसका?" बचपन में रोपा गया एक बीज हीनता का ऐसा वटवृक्ष बन गया था कि शैक्षणिक योग्यता का बल भी डगमगा जाता था।

करनी का फल

सुबोध मदद मिलने की उम्मीद से अपने हर दोस्त के पास गया। लेकिन इतनी बड़ी रकम देने की हिम्मत किसी में नहीं थी।  जुएं और शराब की लत ने उसे बर्बाद कर दिया था। जिस क्लब में वह जुआं खेलता था वहाँ उस पर पचास हज़ार का कर्ज़ चढ़ गया था। क्लब का मालिक गुंडे भेज कर धमकी दे रहा था कि यदि पैसे न मिले तो वह उसके घर वालों से जबरन वसूल करेगा।  अगले हफ्ते बहन की शादी है। अगर वहाँ कुछ हुआ तो बहुत बदनामी होगी। उसकी गलती की सद़ा बहन को भुगतनी पड़ेगी।