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छोटी बेगम

नवाब साहब की हवेली में बहुत चहल पहल थी।  आज नवाब साहब अपनी नई बेगम को विदा करा कर ला रहे थे। हवेली भी दुल्हन की तरह सजी थी। सभी अपने अपने काम में लगे थे। दिलरुबा भी अपने काम में लगा था। किंतु आज उसका मन कुछ उदास था। अब तक वह बड़ी बेगम की ख़िदमत में था। अब उसे छोटी बेगम के हुज़ूर में रहने का हुक्म मिला है। बड़ी बेगम के निक़ाह के वक्त वह उनके साथ इस हवेली में आया था। तब से उनकी ही सेवा कर रहा था। हालाँकि उसके जैसे ख्वाजसरा का काम तो खिदमत करना  था। चाहें बेगम कोई भी हो। उसकी उदासी का कारण कुछ और ही था। आज उसे अपने पिछले जीवन की याद आ रही थी। उन अपनों की जो वक़्त के बहाव में कहीं खो गए थे। अजय का गौना हुए तीन माह बीत चुके थे। उसकी पत्नी लक्ष्मी बेहद खूबसूरत थी। उसे अपने रंग रूप पर बहुत गुमान था। अजय से अपने नख़रे उठवाना उसे बहुत अच्छा लगता था। दरअसल अजय के नाक नक़्श स्त्रियों की भांति थे। उसके हाव भाव में एक स्त्री सुलभ कोमलता थी। अतः अपने मित्रों के बीच अक्सर वह उपहास का पात्र बनता था। किंतु अपनी स्त्री के सम्मुख वह किसी भी प्रकार कम नहीं पड़ना चाहता था। इसीलिए उसके हर नख़रे उठाता था। आम