शहर के मशहूर अॉडिटोरियम में महिलाओं के सशक्तिकरण पर एक सेमीनार चल रहा था। कई वक्ताओं ने इस विषय पर अपने विचार रखे थे। अब शहर की जानी मानी समाज सेविका सुमित्रादेवी की बारी थी। उनके नाम की घोषणा होते ही सारा हॉल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा। सुमित्रादेवी एक शानदार व्यक्तित्व की मालकिन थीं। पोडियम पर आकर उन्होंने बोलना आरंभ किया " आज नारी घर में क़ैद कोई गुड़िया नही है जो केवल घर की शोभा बढ़ाए। आज उसका अपना वजूद है। वह पुरूष का साया नही बल्की उसके समकक्ष है। बल्की कई मामलों में तो उससे बेहतर है। " उनकी रौबदार आवाज़ पूरे हॉल में गूंज रही थी। सभी बड़े ध्यान से उन्हें सुन रहे थे। महिलाओं के हक़ में वह बहुत ज़ोरदार तरीके से बोल रही थीं। उनका भाषण समाप्त हेने पर एक बार फिर तालियां बज उठीं। सुमित्रादेवी आकर अपने स्थान पर बैठ गईं। अपना मोबाइल देखा तो डॉक्टर बेटे का संदेश था ' फिर वही परिणाम ' । उन्होंने उत्तर लिखा ' तो वही इलाज करो ' । संदेश मिलते ही उनका बेटा अपनी पत्नी के एक और गर्भपात की तैयारी करने लगा। http://betawriting.tumbhi.com/Artwork/
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