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संदेश

अक्तूबर, 2015 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

मुखौटा

शहर के मशहूर अॉडिटोरियम में महिलाओं के सशक्तिकरण पर एक सेमीनार चल रहा था।  कई वक्ताओं ने इस विषय पर अपने विचार रखे थे।  अब शहर की जानी मानी समाज सेविका सुमित्रादेवी की बारी थी।  उनके नाम की घोषणा होते ही सारा हॉल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा।  सुमित्रादेवी एक शानदार व्यक्तित्व की मालकिन थीं।  पोडियम पर आकर उन्होंने बोलना आरंभ किया " आज नारी घर में क़ैद कोई गुड़िया नही है जो केवल घर की शोभा बढ़ाए।  आज उसका अपना वजूद है।  वह पुरूष का साया नही बल्की उसके समकक्ष है।  बल्की कई मामलों में तो उससे बेहतर है।  " उनकी रौबदार आवाज़ पूरे हॉल में गूंज रही थी।  सभी बड़े ध्यान से उन्हें सुन रहे थे।  महिलाओं के हक़ में वह बहुत ज़ोरदार तरीके से बोल रही थीं।  उनका भाषण समाप्त हेने पर एक बार फिर तालियां बज उठीं। सुमित्रादेवी आकर अपने स्थान पर बैठ गईं।  अपना मोबाइल देखा तो डॉक्टर बेटे का संदेश था ' फिर वही परिणाम ' ।  उन्होंने उत्तर लिखा ' तो वही इलाज करो ' ।  संदेश मिलते ही उनका बेटा अपनी पत्नी के एक और गर्भपात की तैयारी करने लगा।  http://betawriting.tumbhi.com/Artwork/

पगला भगत

ठाकुर हृदय नारायण सिंह गाँव के ज़मींदार थे।  किंतु दूसरे ज़मींदारों जैसे एब उनमें नहीं थे।  वह केवल अपनी ज़मींदारी बढा़ने के  विषय में ही सोंचते नहीं रहते थे।  उन्हें प्रजा के हितों का भी खयाल रहता था।  ज़मींदारी के काम के अलावा उनका अधिकतर वक़्त आध्यात्मिक चिंतन एवं धर्म ग्रंथों के अध्यन में ही बीतता था।  चतुर्मास में वह अमरूद के बागीचे में बने छोटे से भवन में निवास करते थे।  इसे सभी बागीचे वाले मकान के नाम से जानते थे।  इस दौरान जब तक अति आवश्यक ना हो वह किसी से भेंट नहीं करते थे।  केवल उनका विश्वासपात्र सेवक ही उनके साथ रहता था।  पीढ़ियों से ठाकुर साहब के परिवार में भगवान शिव की उपासन हो रही थी।  गाँव का भव्य शिव मंदिर इनके पुरखों का ही बनवाया हुआ था।  श्रावण मास में हर वर्ष बड़े पैमाने पर रुद्राभिषेक का आयोजन होता था।  इसका आयोजन ठाकुर साहब के प्रतिनिधित्व में ही हेता था।  इस शिव मंदिर में एक अनूठी परंपरा प्रचलित थी।  जब भी ठाकुर परिवार के तत्कालीन मुखिया की मृत्यु होती तो उनकी चिता की भस्म से शिवलिंग का श्रृंगार किया जाता था।  ठाकुर साहब बहुत ही विनम्र स्वभाव के थे। अपने परायों