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अप्रैल, 2015 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

कद

भीड़ भाड़ से मेरा मन ऊब जाता है। मैं तो आना नहीं चाहता था किंतु मेरे पुराने मित्र की बेटी की शादी थी तो आना पड़ा। ये तो अच्छा है कि सारा कार्यक्रम उनके इस फार्महाउस में हो रहा है। यह इतना बड़ा है की आप चाहें तो अपने लिए एक कोना तलाश सकते हैं। मुझे भी मिल गया। मैं एकांत में बैठा था कि अचानक वो सामने आ गई। इतने वर्षों के बाद देखा था। कुछ क्षण लगे किंतु मैं पहचान गया।  मैंने नज़रें चुराने की कोशिश की। वो ताड़ गई। " कैसे हो तुम। पहचान तो गए होगे। " उसके इस अचानक किये गए सवाल से मैं हड़बड़ा गया। " हाँ ठीक हूँ। तुम कैसी हो। " " उम्र का असर दिखने लगा है। " मेरे चहरे का निरिक्षण करते हुए बोली। " वक़्त तो अपना प्रभाव दिखाता ही है। कितना वक़्त बीत गया। " सचमुच वक़्त ने बहुत कुछ बदल दिया था। डर कर मेरे पैरों से लिपट जाने वाली मेरी बेटी अब विदेश में अकेले रह रही थी। मेरी पत्नी और मैंने अब एक दूसरे की कमियां देखना छोड़ दिया था। अब हम शांति से एक छत के नीचे रहते थे। पच्चीस वर्ष पूर्व उस शाम गोमती के किनारे आखिरी बार मैं वसुधा से मिला था। " क्या मतलब है तुम्ह

मुक्ति

नौ द्वारों वाला एक घर था। इस घर पर सात असुर भाइयों का कब्ज़ा था। इन्होने गृहस्वामी को अपना दास बना रखा था। सब उसे अपने इशारों पर नचाते थे। सबसे बड़े असुर का नाम हवस था। वह जितना भी भोग करता उतना ही और विकराल हो जाता था।   उसकी तृप्ति के लिए गृहस्वामी इधर उधर भटकता फिरता था। किंतु  उसकी तृप्ति किसी भी प्रकार नहीं होती थी। दूसरे असुर का नाम लोलुपता था। अधिकाधिक भक्षण उसकी आदत थी। उसका प्रेमिका थी जीभ। उसके वशीभूत वह नाना प्रकार के व्यंजनों का स्वाद लेता था किन्तु उसकी यह प्रेमिका सदैव नए स्वाद के लिए आतुर रहती थी। तीसरे असुर को ज़्यादा से ज़्यादा संग्रह करने की आदत थी। उसका खज़ाना जितना बढ़ता उसे उतना ही कम लगता था। अभिमान नामक असुर सदैव गर्व से दहाड़ता रहता था। आालस क्रोध ईर्ष्या ये अक्सर उसे अपनी गिरफ्त में लिए रहते थे। गृहस्वामी इनसे बहुत परेशान था वह मुक्ति चाहता था। उसके पास अपार शक्ति थी किंतु इन असुरों की दासता करते हुए वह उसे भूल गया था। अतः एक दिन जब वह बहुत व्याकुल था उसने इन असुरों से मुक्ति पाने का प्राण किया और तप करने बैठ गया। कठोर तपस्या से उसके ज्ञान चक्षु खुल गए। उसे अपनी

भंवर

नितिन सोफे पर लेटे हुए अपने ड्रिंक की चुस्कियां ले रहा था। उसका मन कुछ विचलित सा था। सोनिया भी पास में आकर बैठ गई और उसके बालों में अपनी उंगलियां फिराने लगी। नितिन उसकी तरफ देख कर मुस्कुरा दिया। पिछले कई दिनों से वह उसकी बेचैनी महसूस कर रही थी। इसलिए वह उससे बात करना चाहती थी। " कुछ दिनों से परेशांन लग रहे हो। "  सोनिया ने पूंछा। " हमारी ज़िन्दगी बारे में सोंच रहा था। अभी तक हम कुछ भी हांसिल नहीं कर पाए। " " ऐसा क्यों सोंचते हो क्या कमी है हमारे पास।  अच्छा जॉब , घर, गाडी हर एक चीज़ है जो आरामदायक जीवन के लिए चाहिए। " सोनिया ने तसल्ली देनी चाही। नितिन और भड़क गया। " इससे क्या होता है। कहीं न कहीं हम रेस में पिछड़े हैं। उस रॉबिन को देखो हमारे साथ कॉलेज में था। कुछ भी नहीं था उसके पास। कितनी बार तो मैंने पैसों से उसकी मदद की। पर आज देखो कहाँ है। उसके सामने तो हम कुछ भी नहीं हैं। " " फिर भी हम खुश हैं।  हमें क्या कमी है। " " मैं उनमें नहीं हूँ जो नीचे देखते हैं। मैं ऊपर देखता हूँ। मुझे सबसे ऊपर जाना है। " नितिन ने उत्तेजित होक

गट्टू बाबू

बचपन में एक खिलौना देखा था। मिट्टी के एक बड़े से गोले पर स्प्रिंग से जुड़ा हुआ एक छोटा गोला। बड़े गोले पर रंग से हाथ पैर बने थे। छोटा गोला सर था। बस कुछ इसी तरह दिखते हैं गट्टू बाबू। विशाल गोलाकार शरीर और उस पर इधर उधर हिलती उनकी मुंडी। गट्टू बाबू की दो प्रेमिकाएं हैं। एक उनकी जीभ। जिसे वे जितना अधिक रसास्वादन कराते हैं वह उतनी ही अधिक अतृप्त रहती है। दूसरी है निद्रा। जो अक्सर दबे पांव आकर उन्हें अपने आलिंगन में बाँध लेती है। अपने खाकर आसानी से पचा लेने के गुण के कारण वो दूर दूर तक मशहूर हैं। उनके इस गुण की सर्वोत्तम व्याख्या उनके साढ़ू चुन्नी लाल इस तरह से करते हैं की यदि संसार भर की खाद्य सामग्री एकत्रित कर गट्टू बाबू को परोसी जाए तो मिनटों में वह उनके उदर के किस कोने में समा जायेगी कोई नहीं बता सकता है। इस पर भी गट्टू बाबू बिना डकारे थोड़ा और मिलेगा क्या ? के भाव से निहारते नज़र आएंगे। लोग उन्हें दावत में नहीं बुलाते हैं। अकेले एक बारात का खाना तो वही खा जाएंगे। खा खा कर उनका शरीर किसी बड़े से भण्डारगृह की भांति हो गया है। हाथ पांव चलना बहुत कठिन  लगता है। शरीर पर बैठी मक्खी उड़ाना पहाड़

ययाति

डॉक्टर व्योम दुनिया के जाने माने वैज्ञानिक थे। अपने आविष्कारों के कारण वो कई राष्ट्रिय एवं अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित हो चुके थे। देश एवं विदेश में उनकी बहुत प्रतिष्ठा थी। एक छोटे से हिल स्टेशन में लोगों से दूर उनका मैनसन था। यहाँ एक गुप्त प्रयोगशाला थी। इसमें सबसे छुपा कर डॉक्टर व्योम अपने नए आविष्कार में व्यस्त थे। चिर यौवन की प्राप्ति। डॉक्टर व्योम बहुत ही महत्वाकांक्षी व्यक्ति थे। जीवन के सभी सुखों का भोग अंत तक करने की उनकी इच्छा थी। किंतु प्रकृति का चक्र है। इसमें मनुष्य अपने यौवनकाल में ही सांसारिक सुखों का सर्वाधिक उपभोग कर सकता है। यौवन ढलने के साथ साथ इन्द्रियां शिथिल पड़ने लगती हैं। डॉक्टर व्योम उसी अवस्था को प्राप्त हो चके थे। अतः अपने यौवन को पुनः प्राप्त करना चाहते थे। युवावस्था से ही डॉक्टर व्योम बहुत आत्मकेंद्रित थे। प्रेम में उनका विश्वास नहीं था। स्त्री पुरुष के बीच का संबंध वो केवल शारीरिक सुख तक ही मानते थे। अतः उन्होंने विवाह नहीं किया था। कॉलेज के ज़माने में रोहिणी नाम की लड़की से उनका संबंध हुआ था। किंतु रोहिणी उनसे प्रेम करती थी। उसने डॉक्टर व्योम के