भीड़ भाड़ से मेरा मन ऊब जाता है। मैं तो आना नहीं चाहता था किंतु मेरे पुराने मित्र की बेटी की शादी थी तो आना पड़ा। ये तो अच्छा है कि सारा कार्यक्रम उनके इस फार्महाउस में हो रहा है। यह इतना बड़ा है की आप चाहें तो अपने लिए एक कोना तलाश सकते हैं। मुझे भी मिल गया। मैं एकांत में बैठा था कि अचानक वो सामने आ गई। इतने वर्षों के बाद देखा था। कुछ क्षण लगे किंतु मैं पहचान गया। मैंने नज़रें चुराने की कोशिश की। वो ताड़ गई। " कैसे हो तुम। पहचान तो गए होगे। " उसके इस अचानक किये गए सवाल से मैं हड़बड़ा गया। " हाँ ठीक हूँ। तुम कैसी हो। " " उम्र का असर दिखने लगा है। " मेरे चहरे का निरिक्षण करते हुए बोली। " वक़्त तो अपना प्रभाव दिखाता ही है। कितना वक़्त बीत गया। " सचमुच वक़्त ने बहुत कुछ बदल दिया था। डर कर मेरे पैरों से लिपट जाने वाली मेरी बेटी अब विदेश में अकेले रह रही थी। मेरी पत्नी और मैंने अब एक दूसरे की कमियां देखना छोड़ दिया था। अब हम शांति से एक छत के नीचे रहते थे। पच्चीस वर्ष पूर्व उस शाम गोमती के किनारे आखिरी बार मैं वसुधा से मिला था। " क्या मतलब है तुम्ह
नमस्ते मेरे Blog 'कथा संसार' में आपका स्वागत है। यह कहानियां मेरे अंतर्मन की अभिव्यक्ति हैं। मेरे मन की सीपी में विकसित मोती हैं।