सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

जनवरी, 2015 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

चाय

लता इस समय तन और मन से बहुत थकी हुई थी। पिछले १५ दिनों से वह अपने पति की सेवा में लगी थी। उसका दुःख बांटने वाला कोई नहीं था। उसने जनरल वार्ड में इधर से उधर नज़र दौड़ाई। बगल वाले बेड के पास एक मुस्लिम महिला बैठी थी। कई दिनों से वह भी अपने मरीज़ की तीमारदारी में लगी थी।  वह प्लास्टिक के कप में चाय डाल रही थी। लता ने अपनी नज़रें वहां से हटा लीं। "लीजिये चाय पी लीजिये" लता ने नज़रें उठा कर देखा वही महिला चाय का प्याला लिए खड़ी थी। लता कुछ सकुचाई। उसने फिर कहा ले लीजिये। लता ने कप हाथ में पकड़ लिया। दोनों के बीच आगे कोई बातचीत नहीं हुई किंतु चाय के प्याले के साथ बिन कहे बहुत सम्प्रेषित हो गया। चाय की चुस्कियों के साथ लता हमदर्दी और प्रेम के घूँट भर रही थी। तन से अधिक मन की थकान दूर हो गई। 

गर्त

पत्नी उसके सामने गिड़गिड़ा रही थी।  यही कुछ पैसे थे उसके पास। इन्हीं के सहारे पूरा महीना काटना था। उसका पांच वर्ष का बेटा सहमा सा अपनी के पीछे छिपा था। उसने एक नहीं सुनी। पत्नी के हाथ से पैसे छीन लिए और निकल गया। पांच वर्ष पूर्व उसने इस नशे को चखा था जब ज़िंदगी का नशा पूरे शबाब पर था। उसका बिजनेस अच्छा चल रहा था। सुन्दर सुशील पत्नी थी जो जल्द ही उसकी संतान को जन्म देने वाली थी। सब कुछ सही चल रहा था। बस एक ही गलत बात ने सब कुछ बिगाड़ दिया। ज़िन्दगी के नशे की जगह इस नशे ने ले ली। ये नशा धीरे धीरे उसका सब कुछ निगल गया। उसका बिजनेस ,पारिवारिक सुख। उसके भीतर की सारी संवेदनाओं को भी इसने सोख लिया। अब वो एक खोखला शरीर मात्र रह गया है। उसने अपनी ज़िंदगी को इस नशे के पास गिरवी रख दिया है। अब रोज़ एक पुड़िया की शक्ल में उसे किश्तों में वापस मिलती है। धीरे धीरे वो एक अँधेरे गर्त में उतर गया जहाँ से लौटना बहुत कठिन है। http://www.tumbhi.com/writing/short-stories/gart/ashish-trivedi/56752#.VKtzwEgFgF0.facebook