लता इस समय तन और मन से बहुत थकी हुई थी। पिछले १५ दिनों से वह अपने पति की सेवा में लगी थी। उसका दुःख बांटने वाला कोई नहीं था। उसने जनरल वार्ड में इधर से उधर नज़र दौड़ाई। बगल वाले बेड के पास एक मुस्लिम महिला बैठी थी। कई दिनों से वह भी अपने मरीज़ की तीमारदारी में लगी थी। वह प्लास्टिक के कप में चाय डाल रही थी। लता ने अपनी नज़रें वहां से हटा लीं। "लीजिये चाय पी लीजिये" लता ने नज़रें उठा कर देखा वही महिला चाय का प्याला लिए खड़ी थी। लता कुछ सकुचाई। उसने फिर कहा ले लीजिये। लता ने कप हाथ में पकड़ लिया। दोनों के बीच आगे कोई बातचीत नहीं हुई किंतु चाय के प्याले के साथ बिन कहे बहुत सम्प्रेषित हो गया। चाय की चुस्कियों के साथ लता हमदर्दी और प्रेम के घूँट भर रही थी। तन से अधिक मन की थकान दूर हो गई।
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