मंजू स्वयं को ठगा सा महसूस कर रही थी। उसने कभी नहीं सोंचा था की उसके साथ कभी ऐसा भी होगा। अपना सब कुछ तो दिया था उसने। यहाँ तक की स्वयं का भी को वजूद है यह भी भूल गयी थी वह। सिर्फ घर और पति इन्हीं दोनों के बीच ही उसकी सारी दुनिया थी। पूरे पांच साल दिए थे उसने। उसने तो अपने माँ बनने की इच्छा तक को अपने ह्रदय में दबा लिया क्योंकि सुधाकर अभी बच्चों की ज़िम्मेंदारी नहीं उठाना चाहता था। किन्तु उसे मिला क्या। अपना सर्वस्व दे दिया था उसने सुधाकर को।।उसकी की हर इच्छा का वह पूरा सम्मान करती थी। वही सब कुछ था उसके लिए। किन्तु कितनी आसानी से उसने कह दिया की वह उससे तलाक चाहता है। कुछ देर तक वह उसके चहरे को ताकती रही। शायद कहीं कोई पीड़ा या पछतावा दिखाई दे किन्तु वहां उसे कुछ नहीं मिला। इतने सपाट शब्दों में उसने यह बात कह दी जैसे उससे एक गिलास पानी मांग रहा हो। पिछले दो वर्षों से वह किसी और को चाहता था। उसे भनक तक नहीं लगी। कितना भरोसा किया था उसने सुधाकर पर। उसे तो लगता था कि उसका पति अपने नए बिजनेस को सही प्रकार से स्थापित करने में लगा है। तभी देर रात तक बाहर रहता है। गल्ती उसी की है उसका
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