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मार्च, 2018 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

ब्रेकिंग न्यूज़

सत्ताधारी दल के स्वास्थ मंत्री गहरी सोंच की मुद्रा में बैठे थे। सरकारी अस्पताल में नकली दवाओं के वितरण के मामले ने तूल पकड़ लिया था। जिसे विपक्षी दल हवा दे रहे थे। सबसे अधिक मुखर नेता भवानी लाल मंत्री जी के सामने बैठे थे। मंत्री जी ने सामने रखी फाइल की तरफ इशारा करते हुए कुछ गंभीर स्वर में भवानी लाल से कहा। "देखिए भवानी जी जिस हमाम में सब नंगे हों वहाँ तेरी भी चुप मेरी भी चुप सबसे अच्छी पालिसी है। आपकी भी कई कमज़ोर नसें हमारे हाथ में हैं। फिर हम सत्ता में हैं। आप समझ सकते हैं हम ज़्यादा ज़ोर से आपकी नस दबा सकते हैं।" फाइल देख कर भवानी लाल एसी कमरे में माथे का पसीना पोंछने लगे। उनके जाने के बाद मंत्री जी के पीए ने कहा। "सर यह तो मान गए। लेकिन दवाओं वाला मामला मीडिया पर गर्म है।" मंत्री जी मुस्कुरा कर बोले। "कोई बात नहीं आज ही हम जनता को नई ब्रेकिंग न्यूज़ दे देंगे।"

परवाह

जेलर कैदियों के काम का निरीक्षण कर रहे थे। यहाँ फर्नीचर बनाने का काम होता था। दीपक अपना काम करने में व्यस्त था। वह हमेशा चुप रहता था। कभी किसी से बात नहीं करता था।  दीपक हथौड़ी से एक कुर्सी में कील ठोंक रहा था। चूक होने के कारण हथौड़ी उसके अंगूठे पर लगी और तेजी से खून बहने लगा। जेलर भाग कर उसके पास आए। अपनी जेब से रुमाल निकाल कर उसके अंगूठे पर बाँध दिया। दीपक खून से सने उस रुमाल को देख रहा था। सड़क पर पले बढ़े दीपक का खून झगड़ों के दौरान ना जाने कितनी बार बहा था। किंतु पहली बार किसी ने उसकी परवाह की थी।

बड़ा अफसर

सुनीता ने पहले अपने सामने रखे अदालती कागज़ को देखा फिर सामने बैठे अपने पति को देखा। सचमुच पहले से रंगत बहुत बदल गई थी। अब वह एक आई ए एस अधिकारी था। सुनीता ने अपने गहने दिए थे उसे कि शहर जाकर परीक्षा की सही तरह से तैयारी कर सके। उसके पति ने समझाते हुए कहा। "दस्तखत कर दो। घबराओ मत, उसके बाद भी मैं तुम्हारा पूरा खयाल रखूंगा।" तभी उसका फोन बजा। कॉलर का नाम देख कर चेहरे पर मुस्कान आ गई। वह एक तरफ जाकर बात करने लगा। "मेरे बिना जी नहीं लग रहा है।.....हाँ जल्दी लौटूँगा। बस मेरा काम हो जाए।" बात करके जब वह सुनीता के पास आया तो उसने कागज़ उसके हाथ में थमा दिया।  "तो दस्तखत कर दिया...."  उसका पति कागज़ देखने लगा। "नहीं किया। कम पढ़ी हूँ। बेवकूफ नहीं।" सुनीता का चेहरा स्वाभिमान की आभा से जगमगा रहा था।

तमाशबीन

‌‌सामने सड़क पर भीड़ जमा देख कर जैश झल्ला उठा। उसे पहले से ही देर हो गई थी। जाने कया तमाशा हो रहा है। अब इन लोगों को हटा कर रास्ता बनाना पड़ेगा। वह गाड़ी से उतर कर भीड़ को हटा कर देखने गया कि माजरा क्या है। बीस बाइस साल का एक लड़का घायल पड़ा था। जैश फौरन उस लड़के के पास गया। उसे अपनी कार में डाल कर अस्पताल की तरफ भागा। उसका बड़ा भाई भी तमाशबीनों से घिरा सड़क पर पड़े पड़े मर गया था।

घमंडी

श्रवण ट्रेन में अपने सामने बैठे व्यक्ति को देख कर मुस्कुराया। उसकी आदत थी कि वह अपने साथ यात्रा कर रहे व्यक्ति से दोस्ती कर लेता था। अक्सर इसकी शुरुआत मुस्कुराहट से होती थी। पर आज सामने वाले व्यक्ति ने कोई जवाब नहीं दिया। श्रवण ने एक दो इधर उधर की बातें भी शुरू कीं किंतु वह व्यक्ति अपने में ही गुम रहा। श्रवण ने मन ही मन उसे घमंडी करार दिया। वह भी मैगज़ीन पढ़ने लगा। करीब एक घंटे बाद उस व्यक्ति का मोबाइल बजा। वह किसी से बात करने लगा।  "मैं कल सुबह तक पहुँच पाऊँगा। तब तक इंतज़ार करना..." कहते हुए उसकी आवाज़ भर्रा गई। अपनी बात समाप्त कर उसने फोन रख दिया। श्रवण की तरफ देख कर बोला। "आज दोपहर मेरी पत्नी दुर्घटना में मर गई। घर पर सब मेरे पहुँचने की प्रतीक्षा कर रहे हैं।" श्रवण को अपनी सोंच पर बहुत शर्मिंदगी हुई। वह उसके दुख के निजी पलों में अनजाने ही घुसने का प्रयास कर रहा था।

दिग्दर्शक

नंदिनी कई वर्षों के बाद अपने गांव आई थी। वह एक नामी न्यूज़ चैनल की पत्रकार थी। गांव वालों ने उस स्कूल में उसके सम्मान का कार्यक्रम आयोजित किया था जहाँ कभी वह पढ़ती थी। नंदिनी महसूस कर रही थी कि इन वर्षों में गांव की सोंच में बदलाव आया है। अब स्कूल में लड़कियों की संख्या लड़कों के लगभग बराबर थी। यही नहीं अब वह अपने सपनों के बारे में भी बात करने लगी थीं।  वह बच्चों से बात कर रही थी तभी एक लड़की उसके पास आकर बोली। "थैंक्यू दीदी.." नंदिनी ने आश्चर्य से पूँछा "क्यों??" "दीदी आज आपने जो कुछ किया है उसने हमारे लिए रास्ता खोल दिया है। अब हमारे माता पिता को भी यकीन है कि अवसर मिले तो लड़कियां भी बहुत कुछ कर सकती हैं।"

मोड़

विश्वनाथ बाबू ने पार्क में कदम रखा तो पाया कि सुभाष अभी तक नहीं आए। उन्होंने मन में सोंचा कि आज मैंने सुभाष को हरा दिया। रोज़ मुझे देर से आने के लिए टोंकता था। इससे पहले कि वह अपनी खुशी दिखाते उनके मित्र ने आगे बढ़ कर गले लगा लिया। "सुभाष कल रात हमें छोड़ कर चला गया।" विश्वनाथ बाबू बेंच पर बैठ गए। कुछ देर दोनों दोस्त चुप रहे। "ज़िंदगी में हर किसी के सामने यह मोड़ तो आना ही है। चलो चल कर उसे अंतिम विदाई दे आएं।" यह कह कर वह चलने को उठ खड़े हुए।

पुष्पांजली

जगत नारायण पास के एक गांव से एक बाल विवाह रुकवा कर लौटे। हमेशा की तरह उन्होंने अपनी बेटी की तस्वीर पर फूल चढ़ाए। तस्वीर में बारह तेरह साल की एक लड़की का मुस्कुराता चेहरा था। उन्हें फूल चढ़ाते देख कर उनके सहयोगी ने पूँछा। "जगत बाबू आप जब भी किसी बच्ची को बाल विवाह से बचाते हैं तो अपनी बेटी की तस्वीर पर फूल क्यों चढ़ाते हैं?" जगत नारायण की आँखें भींग गईं। अपनी बेटी की गुहार कानों में गूंजने लगी। 'बाबा मेरी शादी मत करवाओ। मुझे अभी पढ़ना है.." जगत नारायण ने अपनी ज़िद नहीं छोड़ी। कच्ची उम्र में बेटी को जान गंवानी पड़ी।

वंडर ब्वॉय

ईशान डेली सोप की अपनी शूटिंग करके लौटा तो अपना नया खिलौना देख कर खुशी से उछल पड़ा। सारी थकान भूल कर वह उसके साथ खेलने लगा।  तभी उसकी मम्मी हाथ में अखबार लेकर आई। "देखो ईशान इस पेपर में तुम्हारी कितनी तारीफ छपी है। तुम्हें वंडर ब्वॉय कहा गया है।" ईशान ने उचटी सी नज़र डाली और अपने खिलौने में व्यस्त हो गया। "ये क्या तुम खिलौने से खेल रहे हो। हमें अवॉर्ड फंक्शन में चलना है। वहाँ बहुत से मीडिया वाले होंगे।" अपनी मम्मी की बात सुनकर ईशान उदास हो गया। उसे उदास देख कर उसकी मम्मी ने कहा। "बेटा खिलौना कहाँ भागा जा रहा है। बाद में खेल लेना।" ईशान हिसाब लगाने लगा कि अपनी शूटिंग के शेड्यूल में अब उसे दोबारा वक्त कब मिलेगा।

पंचायत

आज ग्राम प्रधान यशोदा के आंगन में पंचायत बैठी थी। मामला उनके घर का ही था। सभी लोग आंगन में मौजूद थे। घर का नौकर आंगन के कोने में लगी सूखी बेल को काट कर उसकी जगह नई बेल रोप रहा था। यशोदा ने अपराधी सुरेखा जो बहू की चचेरी बहन थी को संबोधित कर कहा। "तुमने मेरे बेटे पर डोरे डाल कर उसे अपने प्रेम जाल में फंसा लिया। एक बार भी अपनी बहन का खयाल नहीं किया। अब तुम्हें मेरे बेटे से शादी कर मेरी बहू की सूनी गोद भरनी पड़ेगी।" यशोदा की बहू अपनी सास के इस न्याय पर दंग रह गई।

अपराधबोध

चंद्रेश बियर बार के सामने अनिश्चय में खड़ा था। वह इससे पहले कभी किसी बार में नहीं गया था। लेकिन आज मन बहुत खिन्न था। वह भीतर चला गया।  आज फिर छोटे भाई का फोन आया था कि भाभी को अपने साथ शहर ले जाकर किसी डॉक्टर को दिखाओ। दिन पर दिन उनकी तबीयत बिगड़ती जा रही है। पर वह कैसे समझाता कि वह यहाँ बड़ी मुश्किल से गुज़ारा कर पा रहा है। यहाँ तो सही से रहने की व्यवस्था भी नहीं है।  चंद्रेश को मानसी का खयाल आया। यहाँ के आपाधापी से भरे जीवन में एक वही तो थी जिसके साथ वह कुछ पल सुकून के बिता लेता था। इस समय वह मानसी का साथ चाहता था। पर वह तो कॉल सेंटर में नाइट ड्यूटी करती थी। अतः वह मन बहलाने के लिए यहाँ आ गया। मानसी का चेहरा याद आते ही मन में अपराधबोध जागा। उसने अपने शादी शुदा होने की बात उसे नहीं बताई थी। कुछ ही देर में बार बालाओं का नृत्य शुरू हुआ। मद्धम रौशनी में एक चेहरे पर उसकी निगाह अटक गई। गिलास हाथ से फिसलते फिसलते रह गया।  उस बार बाला की आँखों में भी अपना सच सामने आ जाने की शर्मिंदगी थी।