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अप्रैल, 2018 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

बिट्टी

बिट्टी को एक पॉलीथीन का थैला पकड़ाते हुए उसकी माँ ने कहा। "हम उधर झाड़ू लगा के कूड़ा इकट्ठा कर आए हैं। सब इसमें भर दे।" थैला लेकर बिट्टी उस तरफ दौड़ पड़ी। उसकी माँ इस बड़े अंग्रेज़ी स्कूल के आहते में सफाई का काम करती थी। मदद के लिए उसे भी साथ ले आती थी। कूड़ा उठाते हुए बिट्टी वहीं जाकर खड़ी हो गई जहाँ अक्सर खड़ी हो जाती थी।  यह स्कूल का प्लेग्राउंड था। जिसके चारों तरफ लोहे के तार से बनी जालीदार चारदिवारी थी। बिट्टी जाली से प्लेग्राउंड में झांकमे लगी। "काम छोड़ कर वहाँ काहे खड़ी है।" अपनी माँ की डांट सुन कर बिट्टी अपने काम में लग गई।  "वहाँ ऐसा क्या है जो ताका करती है।" बिट्टी की माँ ने गुस्से से पूँछा। बिट्टी चुप रही। वह साफ धुली यूनीफॉर्म पहने बच्चों को खेलते देख कर उनके बीच खुद के होने की कल्पना कर रोमांचित होती थी।

माँ

सुमन ने जो किया उसके लिए सभी  उसकी तारीफ कर रहे थे। उसने एक दुधमुंहे अनाथ बच्चे की माँ बनना स्वीकार किया था। "सुमन तुमने तो समाज के लिए एक आदर्श पेश किया है। ना जाने वो कैसी माँ होगी जिसने इतने छोटे बच्चे को बेसहारा छोड़ दिया था।" यह कहते हुए सुमन की सहेली ने उसे गले लगा लिया। सुमन के भीतर कई सालों से एक नन्हें से बच्चे के रोने की आवाज़ गूंज रही थी। अपने कलेजे पर पत्थर रख कर वह उसे रोता छोड़ आई थी। यह सोंच कर वह रांतों को जागती रहती थी कि ना जाने उसकी आवाज़ किसी ने सुनी भी थी या नहीं।

मुस्कान

दिल्ली के इस प्रतिष्ठित कॉलेज में दाखिला पाकर स्नेहा बहुत खुश थी। कॉलेज का पहला दिन कैंपस में घूमने एक दूसरे से जान पहचान करने में ही बीत गया। जब वह हॉस्टल आई तो अकेलेपन ने उसे घेर लिया। उसे अपने परिवार की याद आने लगी। सुबह जब उसकी रूममेट आई तो वह कॉलेज के लिए निकल रही थी। उससे बातचीत तो नहीं हुई किंतु उसके हावभाव से लगा था कि वह किसी अमीर घर से है और ज्यादा मिलना जुलना पसंद नहीं करती है। वह अभी मुंह हाथ धोकर बैठी ही थी कि उसकी रूममेट आ गई। वह किसी से फोन पर बात कर रही थी। स्नेहा भी अपने फोन में लग गई। "हैलो....मैं सबरीना हूँ। सुबह हमारी बात नहीं हो पाई।" स्नेहा की रूममेट उसकी तरफ देख कर मुस्कुरा रही थी। स्नेहा ने भी अपना परितय दिया। पहले कुछ औपचारिक बाते हुईं। लेकिन थोड़ी ही देर में दोनों खुल कर बात कर रही थीं। स्नेहा ने महसूस किया कि सबरीना की एक मुस्कान ने कितनी जल्दी अजनबीपन को खत्म कर दिया।

मसखरा

मसखरा स्टेज पर अजीबोगरीब हरकतें कर सबको हंसा रहा था। लोग मैजिक शो से अधिक शो के बीच में होने वाले मसखरे के खेल को पसंद करते थे। सब उसके खेल को देख कर लोटपोट हुए जा रहे थे। तभी मसखरे की नज़र सामने की पंक्ति में अपने पिता के साथ बैठी एक छोटी सी बच्ची पर पड़ी। वह खुश होकर ताली बजा रही थी।  बच्ची को देख कर मसखरे के सामने एक और बच्ची का चेहरा घूम गया जिसे कुछ ही दिन पहले दफनाया था। उसकी आँखों से झरझर आंसू बहने लगे। रोते हुए भी उसने अपनी उल्टी सीधी हरकतें जारी रखीं। सब इसे उसका नया खेल समझ कर जोर जोर से तालियां बजा रहे थे।

ध्यानी बाबा

इधर कुछ दिनों से राम जानकी का छोटा सा मंदिर भक्तों के आकर्षण का केंद्र बना था। मंदिर में कहीं से एक बंदर आ गया था जो चौबीसों घंटे मंदिर की चौखट पर बैठा रहता था। देख कर ऐसा लगता था जैसे ध्यान में लीन हो। लोग के बीच वह ध्यानी बाबा के नाम से प्रसिद्ध हो गया था। सब कहते थे कि कोई सिद्ध महात्मा वानर योनि में पैदा हो गए हैं। मंदिर का पुजारी उनकी सेवा करता था। अपनी मनोकामना लेकर दूर दूर से लोग उनके दर्शन को आते थे। चढ़ावा चढ़ाते थे। एक निसंतान जोड़ा अपनी फरियाद लेकर आया था। पत्नी ने अपना दुख बाबा से कहा तो अचानक वह कुछ चैतन्य हुए। पुजारी बोला। "बाबाजी ने आपकी सुन ली। वह ध्यान से उठे हैं। यह उनके भोजन का समय हैं।" वह भीतर गया और बाबाजी के विशेष लड्डुओं की थाली लाकर उनके समक्ष रख दी। लड्डू खाकर बाबाजी पुनः ध्यानलीन हो गए।

च्यवनप्राश का डब्बा

बेटा बहू महीने के सामान लेकर लौटे थे। जाने से पहले जब दोनों लिस्ट बना रहे थे तब महेश को याद आया कि घर से वह च्यवनप्राश का जो डब्बा लेकर आए थे वह खत्म हो गया है। वह कहने ही जा रहे थे कि लिस्ट में डब्बा भी जोड़ लें पर संकोचवश कह नहीं पाए।  सामान निकालते हुए बेटे ने कहा। "पापा आप शायद भूल गए थे। मंजू ने याद दिलाया कि आपका च्यवनप्राश भी खत्म हो गया है।" उसने च्यवनप्राश का डब्बा निकाल कर सामने मेज़ पर रख दिया।

अड़ियल

"मैं कहती हूँ माफी मांगो इनसे। ये तुम्हारे पापा हैं।"  ज्योती ने सात साल की सुहाना को डांटा। "मैं माफी नहीं मांगूंगी। यह मेरे पापा नहीं हैं।" ज्योती को गुस्सा आ गए। उसने एक थप्पड़ लगा दिया। सुहाना रोती हुई अपने कमरे में चली गई। ज्योती सौरभ से माफी मांगते हुए बोली। "आई एम सॉरी यह लड़की दिन पर दिन बद्तमीज़ और अड़ियल होती जा रही है।" सौरभ ने ज्योती को समझाते हुए कहा। "वह बद्तमीज़ नहीं हैं। हमें उसे समझना होगा। पिता को खोने के बाद अब वह इस बात से डरती है कि मैं कहीं उसकी माँ भी ना छीन लूं। हमें धैर्य रखना होगा।