सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

अगस्त, 2015 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

प्रियतम

रूपमती महल के झरोखे पर बैठी नर्मदा को निहार रही थी। साँझ ढल रही थी।  मन बहुत  व्यथित था। बाज़ बहादुर मुग़लों से हार कर रण छोड़ कर भाग गया था। किसी भी समय अधम ख़ान महल में प्रवेश कर सकता था। डूबते हुए सूरज को देखकर रूपमती का ह्रदय भी डूब रहा था। एक प्रश्न उसके ह्रदय को विदीर्ण कर रहा था। क्या एक बार भी बाज़ बहादुर को उसका ख़याल नहीं आया। उसने एक बार भी नहीं सोंचा की उसके बाद उसकी प्रिय रानी रूपमती पर क्या बीतेगी। कैसे वह उस अधम ख़ान से ख़ुद की रक्षा करेगी। नर्मदा माँ उन दोनों के प्रेम की गवाह है। इनके तट पर न जाने कितनी ही शामें उसने और बाज़ बहादुर ने साथ बिताई हैं। कभी संगीत के स्वरों के साथ तो कभी एक दूसरे का हाथ थामे मौन सिर्फ नर्मदा की बहती धारा को देखते हुए। उसके मन में एक टीस सी उठी। कहाँ होगा उस का प्रियतम। क्या बीत रही होगी उस पर। भूखा प्यासा  जाने कहाँ भटकता होगा। उसके मन में फिर एक प्रश्न उठा ' क्या वह भी उसके बारे में इसी प्रकार चिंतित होगा। ' नियति उन दोनों के प्रेम की यह कैसी परीक्षा ले रही है। अपने प्रियतम के बिना जीना उसके लिए कठिन है। पता नहीं अब जीवन में दुबारा मिलना