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अप्रैल, 2014 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

हम तुम

मनु ने दरवाज़ा खोला और बिना कुछ बोले जाकर अपना होमवर्क करने लगा। शिव कुछ क्षण उसे देखता रहा। किन्तु मनु अपने काम में तल्लीन था।  शिव ने हाथ में पकड़ा हुआ पैकेट डाइनिंग टेबल पर रखा और भीतर चला गया। आज फिर वो अपना वादा पूरा नहीं कर सका। आज दफ्तर से जल्दी लौट कर उसे सर्कस दिखाने का वादा किया था। क्या करे वह, परिस्तिथियाँ उसके वश में नहीं हैं। उसकी नज़र दीवार पर लटके फ़ोटो फ्रेम पर पड़ी  'काश निशा होती, तो यह ज़िंदगी कितनी आसान होती।' पर ऐसा हो नहीं सकता। उसे ही मनु के माँ और बाप दोनों का फ़र्ज़ निभाना है। वह अपनी तरफ से पूरी कोशिश करता है किन्तु कुछ न कुछ कमी रह ही जाती है। पांच वर्ष पूर्व निशा चार वर्ष के उसके बेटे को छोड़ कर चल बसी। उसे लगा जैसे उसका अपना बचपन अब उसके बेटे के सामने है। उसकी माँ भी उसे यूँ ही छोड़ कर चल बसी थीं। पिताजी ने दूसरा विवाह कर लिया ताकि उसे माँ कि कमी न खले। नई माँ ने अपने सारे फ़र्ज़ निभाए किंतु उसे वो प्रेम न दे सकीं जो सिर्फ एक माँ दे सकती है। पिताजी भी दो धड़ों में उलझ कर रह गए।  अतः उसने तय किया कि वह मनु को इस परिस्तिथि का सामना नहीं करने देगा। सब कुछ अकेले