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जुलाई, 2021 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

सामंजस्य

  सामंजस्य निर्मला ऑनलाइन हिंदी की क्लास में सामंजस्य शब्द का अर्थ समझा रही थी। "बच्चों सामंजस्य का मतलब होता है तालमेल बिठाना। मतलब अपने आसपास के वातावरण व लोगों के साथ इस प्रकार संबंध बनाना कि हम और हमारे आसपास सभी शांति से रह सकें।" एक बच्चे ने पूछा, "मैम पाठ में कहा गया है कि पर्यावरण से सामंजस्य बनाए रखना चाहिए। इसका क्या मतलब है ?" निर्मला ने समझाया, "बेटा इसका मतलब है कि हमारे आसपास पेड़ पौधे और अनेक प्रकार के जीव जंतु हैं। हम सभी प्राणियों में सबसे श्रेष्ठ हैं। इसलिए हमारा कर्तव्य है कि हम पर्यावरण की रक्षा करें जिससे बाकी के प्राणी भी धरती पर रह सकें।" अभी उसने अपना जवाब खत्म ही किया था कि उसके कानों में अपनी बेटी के चिल्लाने की आवाज़ सुनाई पड़ी। वह उठकर बेटी के पास भागी। उसने देखा कि उसके कमरे में एक बंदर घुस गया है। उससे डर कर उसकी बेटी कोने में दुबकी चिल्ला रही थी। निर्मला भाग कर बाथरूम से वाइपर ले आई। उसने बंदर को भगा दिया। दरवाज़ा बंद करके वह क्लास लेने के लिए वापस आ गई। बच्चों ने पूछा कि क्या हो गया था तो उसने कहा कि बंदरों ने उत्पात मचा रखा

जीवन की सार्थकता

    जीवन की सार्थकता मुकेश बहुत उदास से कमरे में बैठे थे। उन्हें लग रहा था कि जैसे उनका जीवन ही व्यर्थ हो गया। उनके पास धन दौलत अधिक नहीं थी। प्रोफेसर के रूप में जो कमाते थे उसमें से एक हिस्सा समाजिक कल्याण के लिए रहता था। कॉलेज के होनहार छात्रों को मुफ्त में ट्यूशन देते थे। किसी को पैसों की ज़रूरत हो तो पीछे नहीं हटते थे। उनके छात्र उनकी बहुत इज्ज़त करते थे। उनके पढ़ाए हुए शिष्य कई ऊँचे ओहदों पर थे। लेकिन आज उनका बेटा धोखाधड़ी के इल्ज़ाम में पुलिस की हिरासत में था। उनसे छुपाकर ना जाने क्या क्या किया करता था। उन्होंने कई बार ‌पूछा कि वह क्या करता है तो बात को घुमाकर टाल देता था। उन्हें लग रहा था कि इतने बच्चों को सही रास्ता दिखाने वाले वह अपने बच्चे को भटकने से नहीं बचा पाए। यही बात उन्हें परेशान कर रही थी। वह सोच रहे थे कि शायद उसकी माँ जीवित होती तो ऐसा ना होता। उनके मित्र कैलाश कमरे में आए। बत्ती जलाकर उनके सामने बैठ गए। उन्होंने कहा, "अंधेरे में क्यों बैठे हो ?" "मेरे चिराग तले अंधेरा निकला उसका अफसोस कर रहा था।" कैलाश उनकी मनोदशा को समझकर बोले, "मैंने देखा

गिरगिट

    गिरगिट नव्या की ज़िंदगी में कुछ सही नहीं चल रहा था। सरकारी नौकरी के लिए कई परीक्षाएं दीं। कुछ में असफल रही। कुछ के परिणाम अभी तक नहीं आए थे। इसी बीच उसकी शादी की बात चली। सांवले रंग की भरपाई के लिए गाड़ी की मांग हुई। वह उसके पिता की क्षमताओं के बाहर था। बात खत्म हो गई। इस समय वह बहुत परेशान थी। सोच रही थी कि कोई प्राइवेट नौकरी कर ले। वह अखबार में नौकरी के इश्तिहार देखने लगी। कुछ को मार्क किया। एक जगह फोन मिलाने जा रही थी कि उसकी सहेली का फोन आया। फोन उठाते ही उसने मुबारकबाद दी। नव्या हैरान थी कि मुबारकबाद किस बात की। सहेली ने बताया कि रुके हुए परिणामों में से एक परीक्षा का नतीजा आ गया है। वह उस परीक्षा में उत्तीर्ण हो गई है। नव्या बहुत खुश हुई। उसने खुद भी इंटरनेट पर परिणाम देखा। वह इंटरव्यू की तैयारी करने लगी। इस बार उसने कोई कसर नहीं छोड़ी। इंटरव्यू में भी पास हो गई। उसकी सरकारी नौकरी लग गई। नौकरी लगने के एक महीने बाद ही जिन लोगों ने रिश्ता तोड़ा था वह पुनः उसके घर आए। लड़के की माँ ने कहा, "मेरा बेटा बहुत नाराज़ हुआ। उसने कहा कि गुण देखे जाने चाहिए। रूप रंग नहीं। लड़की ने अप

अपडेट

  रागिनी ने बॉस के केबिन में प्रवेश किया तो उसने उसे बैठने को कहा। उसके बाद अपनी सीट से उठ कर वह रागिनी के पास आकर टेबल पर बैठ गया। ऊपर से नीचे तक उसे भेदती निगाहों से देख कर बोला। "तुम्हारी ड्रेस तो बहुत सुंदर है। बहुत अच्छी फिटिंग है।" रागिनी ने बिना कुछ कहे अपना मोबाइल उठा लिया। यह देख कर बॉस ने कहा। "यह क्या कर रही हो?" "सर आप अपनी बात जारी रखिए। मैं ट्विटर पर अपडेट कर रही हूँ।" बॉस तुरंत अपनी सीट पर वापस चला गया। "वो मेरा मतसब था कि मेरी पत्नी को भी कुछ टिप्स दे दो। वह कपड़ों को लेकर परेशान...." रागिनी ने बात काटते हुए कहा। "अगर कोई काम ना हो तो मैं जाऊँ।" बॉस के कुछ कहने से पहले रागिनी कमरे से बाहर चली गई।

बदलाव

  सारिका दस साल बाद अपनी बड़ी बहन के घर आई थी। विदेश में अपने बच्चों के पास रहने के कारण अपने बहनोई की मृत्यु पर भी नहीं आ सकी थी। सारिका महसूस कर रही थी कि उसकी बड़ी बहन मे बहुत से बदलाव आ गए थे। पहले वह हफ्ते में चार दिन उपवास रखती थी। बहुत सा समय पूजा पाठ में बिताती थी। लेकिन इधर सारिका ने देखा कि वह हफ्ते के उन दिनों में उपवास नहीं कर रही थी। रोज़ नहा कर भगवान की पूजा करती थी किंतु पहले की तरह वह बहुत लंबी नहीं होती थी। कल शाम तो वह सबके साथ बाहर खाना खाने भी गई थी। दोपहर को जब सारिका अपनी बहन के पास बैठी तो उसने पूँछा। "दीदी तुम तो बहुत बदल गई हो। ना कोई व्रत उपवास। पूजा भी कुछ ही समय के लिए करती हो। बेटे के साथ रहना पड़ रहा है तो क्या उनके हिसाब से...." "सारिका ऐसा नहीं है कि ईश्वर पर मेरा यकीन कम हुआ है। वह तो पहले से बहुत अधिक बढ़ गया है। हाँ पहले उपवास और पूजा पाठ में अधिक समय देती थी। मैंने महसूस किया कि इसके चलते बच्चे और तुम्हारे जीजाजी मुझसे कुछ दूर हो गए। बात थोड़ी देर में समझ आई। तुम्हारे जीजाजी तो रहे नहीं पर अब मैं कोशिश करती हूँ कि बचा हुआ समय बच्चों के

मुखिया

  नीरज को ज़ोर से प्यास लगी थी। अभी उसने दो घूंट पानी ही पिया होगा कि पता चला कि टेंट वाले ने कुर्सियां व गद्दे भिजवाए हैं। जल्दी से पानी पीकर वह सब सामान सही जगह रखवाने के लिए भागा। सुबह से घड़ी भर को भी चैन से नहीं बैठ सका था। कभी किसी का हिसाब करना पड़ता तो कभी काम का मुआयना करना पड़ता। समारोह का सारा दायित्व इस बार उस पर था। पहले सब बड़े भइया संभालते थे। तब उसे लगता था कि उनका काम कितना आसान है। बस लोगों को आदेश दो और काम पर नज़र बनाए रखो। किंतु आज उसे समझ आ रहा था कि मुखिया होना सबसे कठिन काम है।

दाल में नमक

  दाल में नमक दसवीं कक्षा के छात्र विपिन ने ‌अपने दोस्त को बताया कि वह रविवार को कुछ लड़कों के साथ घूमने जाएगा। उसके दोस्त ने पूँछा कि क्या उसके घरवालों ने इजाज़त दे दी है। इस पर विपिन ने कहा, "इजाज़त मांगूंगा तो नहीं देंगे। कह दूँगा कि इम्तिहान आने वाले हैं। इसलिए एक्स्ट्रा क्लास है।" उसके दोस्त ने कहा, "अपने घरवालों से झूठ कहोगे।" विपिन ने बड़ी शान से कहा, "पापा एक दिन मम्मी से कह रहे थे कि जैसे दाल में नमक ना हो तो अच्छी नहीं लगती है। वैसे ही ‌ज़िंदगी में झूठ ना बोलें तो काम नहीं चलता।" यह कहकर वह अपनी साइकिल पर सवार होकर चला गया।

हुनर

     हुनर अभी सूरज उगने में समय था। मंजुला आज जल्दी जाग गई थी। बल्की सच तो यह था कि रात भर सोई ही नहीं थी। भविष्य की चिंता ने उसे सोने ही नहीं दिया था। जब उसने अपने बगल में सोए दो साल के अपने बेटे को सोते देखा तो उसकी नींद आँखों से गायब हो गई। कोरोना ने पहले उसके पति का रोज़गार चौपट कर दिया था। उसके बाद उसके शरीर में घुसकर प्राण निकाल लिए। इस समय ना पति था और ना ही पैसे। जो जमा पूंजी थी खर्च हो गई थी। समझ नहीं आ रहा था कि आगे क्या करेगी।  वह उठकर दूसरे कमरे में गई। कोने में रखी हुई सिलाई मशीन पर नज़र पड़ी। उसने घर के पास एक सरकारी सेंटर से सिलाई का कोर्स किया था। कपड़े डिज़ाइन करना सीखा था। तब उसके पति ने यह लेटेस्ट सिलाई मशीन खरीद कर दी थी। उसके बाद तो समय ने इतनी उथल पुथल मचाई कि सब छूट गया। उसने सिलाई मशीन पर पड़ा कवर हटाया। उसे छूकर देखा। अचानक उसके मन में ‌उम्मीद की किरण जागी।  कुछ हो ना हो उसका हुनर तो उसके साथ है। उसका बेटा जाग गया था। वह उसके पास गई‌। उसे गोद में उठाकर चूमने लगी।  खिड़की से बाहर देखा तो सूरज उग रहा था।

मन का डर

   मन का डर शाम ढल रही थी। अपने पति के नाम का दिया जला कर ललिता वहीं बैठ गई।‌ अपने पति को याद करने लगी। हमेशा सबकी मदद को तैयार रहते थे। मोहल्ले में किसी के घर में भी गमी हो जाती थी तो उसके दरवाज़े पर ज़रूर हाज़िर होते थे। दो साल पहले उनके मकान के पीछे वाली लाइन में रहने वाले धवन साहब की मौत हो गई। उनके घर से खास परिचय भी नहीं था। खबर सुनते ही जाने को तैयार हो गए थे। रात में तेज़ बुखार था। दवा खाकर सोए थे। ललिता ने कहा कि कभी आना जाना नहीं रहा। कल रात बुखार था। मत जाइए। सुनते ही बोले कि भले ही किसी की खुशी में ना जाओ। पर गमी में ज़रूर जाना चाहिए। यही तो वक्त होता है जब लोगों की सहानुभूति की ज़रूरत होती है। अपनी बात कहकर निकल गए थे। घाट तक साथ गए थे। ललिता की आँखें भर आईं। पति के जाने का दुख तो था ही। पर इस बात का भी अफसोस था कि जब उनकी अर्थी उठी तब बड़ी मुश्किल से चार कंधे मिले। कोई दरवाज़े पर भी नहीं आया। सब अपने अपने गेट से झांकते रहे। उसने अपने आंसू पोंछे। किसे दोष दे और क्यों दे। समय ही ऐसा है। एक वायरस ने सबके मन में डर बैठा दिया है।