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लौट आओ

ट्रेन सरहद के पास एक छोटे से स्टेशन पर आकार रुकी। मुकुंद इस स्टेशन पर उतरने वाला इकलौता शख़्स था। मुकुंद ने घड़ी देखी। सुबह के सवा नौ बजे थे। किंतु स्टेशन इतना शांत और खाली था जैसे रात के ढाई बजे हों। उसने इधर उधर देखना शुरू किया। सामने ही स्टेशन मास्टर का कमरा था। वह कमरे में चला गया। स्टेशन मास्टर एक स्थूलकाय व्यक्ति था। मुकुंद को सर से पांव तक देखते हुए उसने पूँछा "भाई जवान हो। घूमना था तो किसी पहाड़ पर जाते यहाँ क्या करने आए हो।" मुकुंद ने उसकी बात का जवाब दिए बिना पूँछा "मुझे वसीमगढ़ जाना है। वहाँ कैसे पहुँचा जा सकता है।" स्टेशन मास्टर ने सीधा जवाब देने की बजाय फिर सवाल किया "वहाँ क्यों जाना चाहते हो। वहाँ की कहानियों नही सुनीं। कोई बाहरी आदमी जाना पसंद नही करता वहाँ। एक नंबर के बदमाश हैं वसीमगढ़ के लोग।" मुकुंद को इस प्रकार उसका सवाल करना अच्छा नही लगा। कुछ रूखे सुर में बोला "वह सब मैं देख लूँगा। आप बस यह बताइए कि मुझे बस कब और कहाँ से मिलेगी।" मुस्कुराते हुए स्टेशन मास्टर बोला "नाराज़ क्यों होते हो। तुम बाहर से आए हो