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फ़रवरी, 2016 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

आयाम

सपना घर में घुसी तो उसे तेज़ प्यास लग रही थी. फ़्रिज खोल कर उसने पानी की बोतल निकाली और एक सांस में आधी बोतल खाली कर दी. फिर जाकर वह सोफे पर पसर गई. आज सुबह से ही बहुत भाग दौड़ रही. पहले वह नकुल की टीचर से मिलने उसके स्कूल गई. फिर बिजली का बिल जमा किया. उसके बाद घर का कुछ सामान लेकर लौटते हुए दोपहर के बारह बज गए. वह बहुत थक गई थी. कुछ ही समय में नकुल स्कूल से लौटेगा. उससे पहले उसे खाना भी बनाना है. एक साथ घर बाहर उसे ही संभालना पड़ता है.  उसका पति मयंक एक प्राईवेट कंपनी में टेक्नीशियन के पद पर कार्यरत था. उसकी छोटी सी तनख्वाह से घर ठीक ठाक चल रहा था. लेकिन बचत अधिक नहीं हो पाती थी. ऐसे में अपने बेटे नकुल को लेकर दोनों चिंतित रहते थे. साल भर पहले जब मयंक एक दिन घर लौटा तो बहुत खुश था. उसने बताया कि उसे खाड़ी देश में एक अच्छा काम मिला है. पैसे भी अच्छे मिलेंगे. लेकिन तीन साल तक सपना और नकुल को अकेले रहना पड़ेगा. उसकी बात सुन कर सपना उदास हो गई थी. इससे पहले कभी भी अकेली नहीं रही थी. घर के सारे काम वह बखूबी कर लेती थी किंतु बाहर के काम मयंक के ही जिम्मे थे. वह अकेली सब कुछ कैसे संभालेगी

देहरी

' बस यहीं रोक दो ' आवाज़ सुनते ही पवन ने रिक्शा एक बड़े से मकान के सामने रोक दिया. अपने गमछे से पसीना पोंछते हुए इंतजा़र करने लगा. होली नज़दीक थी. चटक धूप में रिक्शा चलाना कठिन हो गया था.  लड़़की रिक्शे से उतरी और उसे एक नोट थमाकर तेज़ी से चल दी. पवन ने विरोध किया " मैडम बात तो पंद्रह रुपए की हुई थी. " पर तब तक वह मकान के भीतर जा चुकी थी. पवन ने उस बड़े से मकान को घूर कर देखा और मन ही मन बड़़बड़ाया ' गरीब का मेहनताना देते जान निकलती है. '  खाने का समय हो गया था. वह रिक्शा लेकर उस होटल की तरफ चल दिया जहाँ उसके जैसे रिक्शे वाले तथा दिहाड़ी मजदूर खाना खाते थे.  तीन महीने पहले वह इस शहर में यह सोंचकर रिक्शा चलाने आया था कि कमाई से कुछ बचाकर घर भेज दिया करेगा. किंतु हालात यह है कि जो कमाई होती है उसमें से रिक्शे का किराया देने के बाद मुश्किल से दो वक्त खा पाता है. रहने का कोई ठिकाना नहीं है. रात फुटपाथ पर सो कर गुजारता है.  जब घर से चला था तब उसकी पत्नी पिंकी ने उस से कहा था " फाग में तो आओगे ना. मैं राह देखूंगी. "  उसने समझाते हुए कहा " पूरी कोशिश