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रंगीन टी.वी

बात उन दिनों की है जब हमारे मुल्क में टी.वी. का प्रसारण कुछ ही  वर्ष पूर्व शुरू हुआ था। रंगीन प्रसारण शुरू हुए तो कुछ माह ही हुए थे। तब घर में ब्लैक एंड वाइट टी.वी. होना ही बहुत शान की बात थी। रंगीन टी.वी. तो बिरले घरों में ही था। उन्हीं दिनों में आया था मेरा रंगीन टी.वी.। मेरे पिता एक सर्राफ की दुकान में एकॉउंटेंट थे। उनकी तनख्वा छोटी थी किन्तु मुझे लेकर उनके सपने बहुत बड़े थे। अतः मेरा दाखिला शहर के महंगे अंग्रेजी स्कूल में कराया था। उस स्कूल में अधिकतर धनाड्य परिवारों के लड़के ही पढ़ते थे। मेरे ग्रेड्स हमेशा ही सबसे अच्छे रहते थे। इसलिए शिक्षकों और सहपाठियों के बीच मैं बहुत लोकप्रिय था। किंतु जब वो अपने घर में खरीदे गए किसी महंगे सामान का ज़िक्र करते तो मैं उनसे कतराता था। क्योंकि मेरे पास उन्हें बताने के लिए कुछ नहीं होता था। उनमें से एक था बृजेश। उसके पिता एक बड़े कारोबारी थे। अक्सर विदेश आते जाते रहते थे। हर बार वहाँ से उसके लिए कोई न कोई महंगा खिलौना ज़रूर लाते थे।  बृजेश बहुत शान से उनके बारे में बताता था। ऐसे ही एक दिन रिसेस में ब्रजेश ने सब को सुनाते हुए कहा " परसों मे