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जून, 2014 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

ताना बाना

चुनाव के मौसम में  वाद विवाद चर्चाओं का दौर शबाब पर था। टी.वी. स्क्रीन पर एक गोले में समाज को हिन्दू, मुस्लिम, दलित सवर्ण कई वर्गों में बाँट कर किसके कितने वोट हैं इस पर चर्चा चल रही थी। विभा ने टी.वी. बंद कर दिया। उसकी परेशानी कुछ और ही थी। दो दिन पहले ही वह अपनी ससुराल में शादी का एक कार्यक्रम निपटा कर लौटी थी। वापस आई तो पता चला कि उसकी ग़ैरहाज़िरी में उसके महिला क्लब के सदस्यों ने बच्चों के एक फैंसी ड्रेस कम्पटीशन की योजना बना डाली। जिसका आयोजन परसों शाम ही होना है। वक़्त काम था इसलिए उसने तय किया कि वह अपने चार साल के बेटे आयुष को इस बार प्रतियोगिता में शामिल नहीं करेगी। किंतु उस गोल मटोल से नठखट बालक ने अपनी शैतानियों से सबका मन मोह रखा था। इसलिए उसकी सभी सहेलियां पीछे पड़ गईं कि चाहें जो हो आयुष को प्रतियोगिता के लिए तैयार करना ही होगा। विभा समझ नहीं पा रही थी कि क्या करे।  बहुत सोंचने पर एक विचार उसके मन में आया। पिछली बार जन्माष्टमी के अवसर पर कृष्ण मंदिर समिति की ओर से भी ऐसी ही प्रतियोगिता आयोजित की गई थी। उसने आयुष को कृष्ण की तरह सजाया था। इस बार भी उसे कृष्ण की तरह सजाएग

रिमझिम रिमझिम

मौसम की पहली बारिश थी। कभी तेज़ तो कभी धीमी लेकिन सुबह से जो झड़ी लगी वो थमी नहीं थी। रीना का फ़ोन बज उठा। दिवाकर का फ़ोन था। रीना ने फ़ोन उठाया " हैलो दिवाकर क्या हुआ " " होना क्या है, तुम्हारी याद आ रही थी। तुम जानती नहीं मुझे बारिश कितनी पसंद है। आज अगर ज़रूरी न होता तो मैं छुट्टी ले लेता। दिन भर तुम्हारे साथ रहता। ज़रा सोंचो कितना रोमांटिक होता। पर क्या करूँ।" रीना कुछ बोल नहीं पाई सिर्फ हल्के से हाँ ही कह सकी। " और क्या कर रही थीं तुम। " " कुछ नहीं बस यूं ही बैठी थी।  " " अच्छा रखता हूँ। काम ज़्यादा है।  टेक केयर। " रीना और दिवाकर की शादी को अभी डेढ़ महीना ही हुआ था। अक्सर वो दफ्तर से उसे फ़ोन करता रहता था। रीना अपने कमरे में आ गई। खिड़कियां बंद कर परदे गिरा दिए। अभी भी बूंदों का शोर कानों में पड़ रहा था। कान में लीड लगा कर वह म्यूज़िक सुनने लगी। वो मुकुंद अंकल के घर पर थी। मुकुंद अंकल उसके पड़ोसी थे। अक्सर शाम को वो उसके घर आ जाते थे। पापा और अंकल देर तक बातें किया करते थे। अंकल विधुर थे। उनके परिवार में कोई भी नहीं था। पाप