रचनाकार: आशीष त्रिवेदी की लघुकथा - मुख्यधारा सारा घर अस्त व्यस्त था। मिसेज बनर्जी सब कुछ समेटने में जुटी थीं. आज उनके बेटे सुहास का जन्मदिन था। उसने और उसके मित्रों ने मिलकर खूब धमाल किया था। सुहास अपने कमरे में बैठा अपने उपहार देख रहा था। " मम्मी देखो विशाल ने मुझे कितना अच्छा गिफ्ट दिया है। ड्राइंग बुक। अब मैं इसमें सुंदर सुंदर ड्राइंग बनाऊंगा।" सुहास अपने कमरे से चिल्लाया। अपने पति से अलग होने के बाद सुहास की सारी जिम्मेदारी मिसेज बनर्जी पर आ गयी। उन्होंने भी पूरे धैर्य और साहस के साथ स्थिति का सामना किया। सुहास अन्य बच्चों की तरह नहीं था। उसकी एक अलग ही दुनिया थी। वह अपनी ही दुनिया में मस्त रहता था। आज वह पूरे इक्कीस बरस का हो गया था किन्तु उसके भीतर अभी भी एक छोटा बच्चा रह रहा था। लोगों को यह मेल बहुत बेतुका लगता था। अक्सर पारिवारिक कार्यक्रमों में उनके रिश्तेदार उन्हें इस बात का एहसास करते रहते थे। शुरू शुरू में मिसेज बनर्जी को लोगों का व्यवहार बहुत कष्ट देता था। उन्होंने बहुत प्रयास किया की सुहास भी अन्य बच्चों की तरह हो जाये। किन्तु समय के साथ साथ
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