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संदेश

जून, 2017 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

बधाई संदेश

डिनर करते हुए सुभाष बहुत दुखी था। निराशा उसके चेहरे पर साफ झलक रही थी। पहले वह अपने यार दोस्तों से घिरा रहता था। खुले दिल खर्च करने वाला सुभाष बात बेबात पार्टी देता रहता था। लेकिन बीमारी के चलते सब खत्म हो गया। इलाज का खर्च सभी शौक पर भारी पड़ गया। आज के दिन दोस्तों में उसे तोहफा देने की होड़ लगी रहती थी। लेकिन इस जन्मदिन पर किसी ने उसे बधाई का संदेश तक नहीं भेजा।

शर्त

शादी का कार्ड देख कर मनीषा चंद महीने पीछे चली गई। वरुण उसके सामने बैठा था। वह कोई फाइल देख रही थी। "शादी के बाद अपने इस सेंटर की ज़िम्मेदारी किसे सौंपोगी।"  मनीषा ने सर उठा कर उसे देखा और बोली "ज़िम्मेदारी किसी और को क्यों दूंगी। मैं ही संभालूंगी।" वरुण कुछ सोंच कर बोला "हमारे परिवार की साख है। तुम शादी के बाद भी इन औरतों के साथ काम करोगी।" मनीषा को उसकी बात अच्छी नहीं लगी। उसने कहा "भले ही समाज इन्हें अच्छी नज़र से ना देखता हो किंतु यहाँ इन्हें आत्मसम्मान पूर्वक जीने के योग्य बनाया जाता है।" वह कुछ देर मौन रह कर बोली "अगर इन्हें छोड़ना शादी की शर्त है तो मुझे मंजूर नहीं।"

महानता

विभावरी अपने गाइड डॉ बसंत देव के सामने बैठी थी। वह उन्हें 'हिंदी साहित्य में नारी का स्थान' विषय पर किए गए शोध के अंश दिखाने आई थी। शोध को पढ़ते हुए बसंत जी बोले "नारी की महानता का क्या कहना। वह माँ, पत्नी, बेटी, बहन और अन्य रूपों में अपनी ज़िम्मेदारी निभाती है। यही उसकी पहचान है। इसी कारण उसे देवी कहते हैं।" कुछ देर मौन रहने के बाद विभावरी गंभीर स्वर में बोली "सर पुरूष भी पिता, पति, बेटा तथा भाई होता है। लेकिन समाज इसके अलग उसका व्यक्तित्व देखता है। फिर औरत की पहचान उसकी शख्सियत के बिखराव में ही क्यों है?" बसंत देव सिर्फ उसका चेहरा देखते रहे।

क्रोध

भैरों को देखते ही दीपा ने अपनी बेटी को भीतर चले जाने का इशारा किया। वह अपनी किताब लेकर पर्दे के पीछे चली गई। "क्यों आए हो?" दीपा ने रूखे स्वर में पूंछा। "अगले हफ्ते कांट्रेक्टर साहब के लड़के का तिलक है। जश्न कराना चाहते हैं।" भैरों ने इधर उधर नज़र  दौड़ाते हुए कहा। दीपा को उसकी हरकत अच्छी नहीं लगी। टालने के लिए बोली "सोंच कर बता दूंगी। "अब उमर हो गई तुम्हारी। आराम करो। उसे काम पर क्यों नहीं लगाती।"  दीपा कुछ क्षण उसे घूरती रही। 'चटाक' तेज़ आवाज़ आई। भैरों माँ बेटी को दर दर की ठोकरें खिलाने की धमकी देता हुआ चला गया।

सुबह का सपना

पुष्पा सुबह सो कर उठी तो देखे गए सपने के कारण बहुत खुश थी।  जो सपना उसने देखा उसके पूरा होने की दो साल से राह देख रही थी। उसका बेटा खेलने के लिए घर से बाहर गया था। लेकिन लौट कर नहीं आया। उसे ढूंढ़ने के लिए हर संभव प्रयास किया गया पर सब व्यर्थ साबित हुआ। पिछले एक साल से पुष्पा के सिवा सबने उसके मिलने की आस छोड़ दी थी। पूरा दिन वह बेटे का इंतज़ार करती रही। लेकिन वह नहीं लौटा। रात को बिस्तर पर लेटी तो पति ने समझाया "मान क्यों नहीं लेती कि अब वह नहीं लौटेगा।" पुष्पा की आँखों से दो आंसू गिर पड़े। चेहरे पर दिल का दर्द उभर आया "यह इंतज़ार तो मेरे साथ ही खत्म होगा।"

चिंगारी

विपिन के वाट्सऐप ग्रुप पर एक वीडियो आया था। मैसेज था अवश्य देखें और दूसरों के साथ शेयर करें। विपिन ने देखा तो दंग रह गया। मन ही मन सोंचने लगा कि यह वीडियो तो समाज की शांति भंग कर सकता है।  वह भाग कर पंचायत पहुँचा तो वहाँ सभी उसी की चर्चा हो रही थी। माहौल गरमाया हुआ था। सभी  बदला लेने की बात कर रहे थे। विपिन शांत स्वभाव का समझदार  नौजवान था। वह जानता था कि असमाजिक तत्व सोशल मीडिया के ज़रिए समाज में वैमनस्य पैदा कर रहे हैं। एक दूसरे नौजवान ने कहा "हमने भी चिड़ियां नहीं पहनी हैं। ईंट से ईंट बजा देंगे।" हालात बेकाबू होते देख विपिन ने समझाया "सच जाने बिना इस तरह उत्तेजित होने से कुछ नहीं होगा। सिर्फ हिंसा बढ़ेगी।" "अब कौन सा सच जानना है? वीडियो देखा नहीं।" "लेकिन अक्सर यह सब झूठ होता है।" सबके सर पर खून सवार था। किसी ने भी उसकी बात नहीं सुनी। अनर्थ ना हो जाए यह सोंच विपिन ने पुलिस के पास जाकर सारी बात बता दी। पुलिस ने स्थिति नियंत्रण में कर ली।  जांच के बाद पता चला कि वीडियो  जोड़ तोड़ कर लोगों को भड़काने के लिए बनाया गया था। पुलिस गुनहगारों की खोज क

वृंदा दादी

गांव में सभी ओर खुशी की लहर थी। सभी लड़कियों के धैर्य और साहस की तारीफ कर रहे थे। आज उनका संघर्ष सफल हुआ था। लेकिन इस संघर्ष की अगुवाई करने वाली थीं साठ साल की वृंदा दादी।  टीवी पत्रकार ने वृंदा दादी से सवाल किया "आपको इस जीत पर कैसा लग रहा है?" चेहरे पर मुस्कान और आँखों में चमक के साथ दादी ने जवाब दिया "बहुत खुशी हुई। पहले गांव का स्कूल आठवीं तक ही था। आगे की पढ़ाई के लिए दूसरे गांव जाना पड़ता था। बहुत सी लड़कियां आगे नहीं पढ़ पाती थीं। अब समस्या समाप्त हो गई।" "पर आप स्वयं पढ़ी लिखी नहीं हैं।" "तभी शिक्षा का महत्व समझती हूँ। हमारे समय में किसी ने साथ नहीं दिया। इसलिए हमने इन लड़कियों का साथ दिया।"

रूठी गुड़िया

शरद ने देखा कि उसकी नन्हीं बिटिया तन्वी का मूड अभी भी खराब है। उसके लाख मनाने पर भी तन्वी ने उसे माफ नहीं किया था। वैसे गलती शरद की ही थी। वह तो दिन भर के इंतज़ार के बाद घर लौटे पापा की गोद में बैठ कर बात करना चाहती थी। पर शरद कुछ परेशान था। उसने एक आध बार मना भी किया। लेकिन पाँच साल की मासूम अपने उत्साह में उसकी परेशानी समझ नहीं सकी। झुंझला कर शरद ने उसे डांट दिया। उसके बाद उसे बहुत पछतावा हुआ। उसने रूठी बेटी को मनाने का प्रयास किया। लेकिन वह टस से मस नहीं हुई। शरद को सुबह ही आवश्यक काम से बाहर जाना था। लेकिन बेटी के चेहरे पर मुस्कान देखे बिना जाना नहीं चाहता था। उसकी पत्नी शरद की मुश्किल समझती थी। उसने तन्वी को गोद में उठा कर प्यार से पूंछा "जब तन्वी गलती करती है तो क्या करती है।" "मम्मी को सॉरी कहती है।" तन्वी ने भोलेपन से कहा। "और मम्मी तुमको माफ कर देती है। ऐसे ही कभी कभी मम्मी पापा से भी गलती हो तो है। तुम भी पापा को माफ कर दो।" तन्वी ने शरद की तरफ देखा। वह कान को हाथ लगा कर सॉरी कह रहा था। कुछ क्षण अपने पापा को देखने के बाद तन्वी मुस्कुरा दी।

संबल

अपने नवजात बच्चे को हाथ में लेकर अनुज का अशांत मन शांत हो गया। उसने मानसी की तरफ देखा। अपनी उलझनों में फंसा वह उसकी सही प्रकार से देखभाल भी नहीं कर सका।  उसके अचानक लिए गए फैसले का मानसी ने पूरा समर्थन किया था। उसी के सहयोग से उसने नौकरी छोड़ अपना पूरा ध्यान लेखन में लगा दिया। उसी समय उसे खबर मिली कि वह पिता बनने वाला है। पर मानसी ने उससे अपना ध्यान लेखन में लगाने को कहा।  अपनी किताब पूरी कर वह प्रकाशकों के पास चक्कर लगा रहा था। पर कहीं बात नहीं बन पा रही थी। इसलिए वह बहुत परेशान था।  अनुज ने मानसी की तरफ देख कर कहा "तुम जब दर्द से तड़प रही थी तब मैं डर गया था। बहुत दर्द हो रहा था तुम्हें।" मानसी ने हल्के से मुस्कुरा कर कहा "दर्द सहे बिना सच्ची खुशी नहीं मिलती है।" हताशा के दर्द से जूझ रहे अनुज को अपनी पत्नी की इस बात से बहुत बल मिला।

छोटी सी ख्वाहिश

शहर की एक मल्टीनेशनल कंपनी में काम करने वाला मुकेश गाँव के एक छोटे से स्कूल में बच्चों को कॉपी किताब चाकलेट जैसी चीज़ें बाटने आया था। उसकी निगाह तीसरी कक्षा में पढ़ने वाले श्याम पर पड़ी। वह सारी हलचल के बीच भी अपनी किताब लिए पढ़ रहा था।  मुकेश उसके पास जा कर बोला "मन लगा कर पढ़ रहे हो। बड़े हो कर क्या करना चाहते हो?" श्याम उत्साह से बोला "मैं बड़ा हो कर ऊंची नौकरी करूँगा।" मुकेश के चेहरे पर मुस्कान आ गई "ऊंची नौकरी क्यों करना चाहते हो?" "उससे मैं बहुत पैसा कमा सकूँगा। फिर भरपेट खाना मिलेगा। अच्छे कपड़े होंगे। फिर मैं दूध भी पी सकूँगा।" आभावों से लड़ कर ऊपर आए मुकेश को उसमें अपना बचपन दिखने लगा।

लगाव

नकुल टाटा कर कार में बैठ गया। स्वाती तब तक कार को देखती रही जब तक वह मोड़ पर ओझल नहीं हो गई। वह भावुक होकर रोने लगी। "थोड़े ही दिनों के लिए सही हमें वह खुशी मिली जिसके लिए हम बरसों से तरस रहे थे। अब सब्र करो।" उसके पती शरद ने समझाया। "पर इतने दिनों में ही मोह हो गया। क्या करूँ?" "संभालो खुद को यह ठीक नहीं। वह हमारे पास अमानत था। अब जब उसके माता पिता मिल गए तो उसे उन्हें सौंप देना ही हमारा धर्म था।" शरद ने उसे सही रास्ता दिखाया।

एक शाम

नीता की चचेरी बहन विभा आई हुई थी। अतः आज शाम बाहर घूमने का प्लान था। तैयार होते हुए नीता इतराते हुए बोली "अभय मुझे उपहार देने का कोई मौका नहीं छोड़ते। बहुत प्रेम करते हैं मुझे।" तभी अभय आ गया "क्या सारी शाम सजने में ही बिता दोगी। जल्दी करो।" तैयार होकर तीनों निकल ही रहे थे कि नीता की चीख निकल गई। अचानक पैर मुड़ जाने से उसे मोच आ गई। विभा ने सहारा देकर बिस्तर पर बैठाया। मलहम लगाया। उसने गौर किया कि अभय के चेहरे पर पत्नी की तकलीफ़ का दर्द होने की जगह शाम के खराब हो जाने की झल्लाहट थी।  नीता जब कुछ अच्छा महसूस करने लगी तो अभय ने विभा से कहा "चलो अब हम दोनों ही घूमने चलते हैं।" "पर दीदी को छोड़ कर कैसे चल सकते हैं।" "उसे विमला संभाल लेगी।" अभय ने लापरवाही से मेड की तरफ इशारा कर कहा। "दीदी को छोड़ कर मैं नहीं जाऊँगी। आप घूम आइए।" विभा ने अपना फैसला सुना दिया।

समय

विशाल अपना मन पक्का कर सविता दीदी के कमरे की ओर चल दिए। इस कठिन समय में वही मदद कर सकती थीं। उनके पास अपनी कुछ जमा पूंजी थी। पति की मृत्यु के बाद पिछले कई सालों से वह उनके साथ ही रह रही थीं। उन्हें देखते ही सविता दीदी बोलीं "मैं तो तुम्हारे पास ही आ रही थी। अब उम्र हो चली है। पता नहीं कब  बुलावा आ जाए। तुम घर जाने के लिए मेरा टिकट करवा दो।"  दीदी ने अपने बटुए से कुछ पैसे निकाल कर उनकी तरफ बढ़ाए "यह टिकट के लिए रख लो।" "रखो दीदी इतने पैसे तो हैं। मैं टिकट करवा दूंगा।" विशाल ने हाथ जोड़ कर कहा।