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मई, 2018 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

कोच सर

मेहुल पिछले कुछ दिनों से प्रैक्टिस में ध्यान नहीं दे पा रहा था। इस बात से उसके कोच नाराज़ थे। आज उसके क्लब का मैच था। उसके टीम की स्थिति अच्छी नहीं थी। पर उसने अच्छी गेंदबाज़ी करके अपनी टीम को मैच जिता दिया। सब उसकी तारीफ कर रहे थे। पर मेहुल की निगाह अपने कोच सर पर थी।  कोच सर ने उसके पास आकर शाबासी दी। मेहुल का मन नाच उठा।

तसल्ली

नर्स ऑपरेशन से पहले कुछ दवाएं देने आई तो देखा कि मि. दत्त कुछ परेशान हैं। "घबराइए नहीं सर डॉ. खान माने हुए सर्जन हैं।" मि. दत्त को ऑपरेशन की चिंता नहीं थी। उनकी निगाहें दरवाज़े पर लगी थीं। तभी घर से कुछ आवश्यक सामान लेकर लौटी पत्नी के साथ ही उनके चेहरे पर मुस्कान आ गई।

अंजान खतरा

एस. पी. चंदा सिंह ने इंस्पेक्टर मूलचंद से पूँछा। "अब तो तुम्हारी बेटी साल भर की होने वाली होगी।" "हाँ मैडम बहुत शरारती भी हो गई है। अपनी मासूम हरकतों से सबका मन मोह लेती है। सबका खिलौना बनी रहती है।" एस. पी. चंदा ने सोंचते हुए कहा। "वो तो मासूम है पर उसका खयाल रखो। उसे खिलौना ना बनने दो।" इंस्पेक्टर मूलचंद सोंच में पड़ गए। तभी खबर मिली की चार साल की एक बच्ची का नग्न शव झाड़ियों में पड़ा मिला है।

सीख

रजत बड़ी उम्मीद के साथ अपने न्यूज़ चैनल के एडिटर के सामने खड़ा था। "सर उस दिन निर्माणाधीन पुल के गिरने से हुए हादसे को मैंने पर्त दर पर्त उधेड़ दिया है। आज शाम प्राइम टाइम में यह न्यूज़ न्यूज़ चलाइए।” एडिटर महोदय ने बड़े दार्शनिक अंदाज़ में कहा। "तुम एक अच्छे रिपोर्टर हो। पर अभी तुम्हें यह सीखना है कि लोग क्या देखना चाहते हैं।" "सर क्या लोगों को सच्चाई पता नहीं चलनी चाहिए ?" एडिटर ने मुस्कुरा कर कहा। "दिन भर धक्के खाकर जब लोग घर लौटते हैं तो उन्हें खबर में भी डेली सोप का मज़ा चाहिए। आज़ राजनीति के मंच पर दिनभर जो रेसलिंग हुई उस पर पंकज ने अच्छी रिपोर्ट बनाई है।" रजत उनकी बात सुनकर हैरान था। "घबराओ नहीं मेहनती हो सीख जाओगे।"

विरासत

विधायक प्रमिला सिंह अपने क्षेत्र के दौरे पर आई थीं। मंच पर से अपनी जनता को संबंधित कर वह बोलीं। "आज बहुत दिनों के बाद अपने घर आई हूँ। पर इस बार अकेली नहीं आई हूँ। आपके बेटे और बहू को भी साथ लाई हूँ।" मंच पर बैठे उनके बेटे ने खड़े होकर सबका अभिवादन किया। लेकिन बहू वैसे ही बैठी रही। प्रमिला सिंह ने उसकी तरफ देखा तो वह चेहरे पर फीकी सी मुस्कान लेकर खड़ी हो गई। जब तीनों गेस्टहाउस पहुँचे तो उनके बेटे ने अपने कुर्ते को सूंघकर मुंह बनाया। ना चाहते हुए भी कितनों को गले लगाना पड़ा था। प्रमिला सिंह ने समझाते हुए कहा। "राजनीति में जानता को खुश रखना पड़ता है। यही चीज़ें वोट दिलाती हैं। इस बार मुझे पूरी उम्मीद है कि पार्टी तुम्हें भी टिकट देगी। अभी से इन सब की आदत डाल लो।" उनकी बहू भी आकर बेटे से दूरी बना कर बैठ गई। "और हाँ चुनाव होने तक अपने बीच की दूरी पर भी पर्दा डाल दो।"

आत्मिक सुख

विभूति बाबू के रिटायरमेंट को करीब छह महीने बीत गए थे। उनके कमरे में चारों तरफ साहित्यिक किताबें रखी थीं। वह कागज़ कलम लेकर कुछ लिख रहे थे। तभी उनके चचेरे भाई उनसे मिलने आए। "अभी तक तक कलम घिसने से जी नहीं भरा ?" अपने भाई के प्रश्न के जवाब में विभूति बाबू बोले। "तब तो दूसरों का हिसाब लिखते थे। पर अब अपने मन की शांति के लिए लिख रहा हूँ।" "अब इस उम्र में लेखक बनने की क्या सूझी।" "जब तक जीवन चले और शरीर साथ दे तब तक कर्म तो करना ही है। मन में पुरानी दबी इच्छा थी। उसे पूरा करने का अब वक्त मिला है। अपनी तरफ से कोशिश है कि कुछ अर्थपूर्ण कर सकूं।"

स्वागत

जीत के ढोल नगाड़े बजाते हुए वह लोग दरवाज़े पर आ गए। "बेदाग छुड़ा लाया तुम्हारे बेटे को। स्वागत करो इसका।" दरवाज़े पर थाली लिए खड़ी रुक्मणी ने अपने पति की आज्ञा का पालन करते हुए बेटे को तिलक लगाया। स्वागत के बाद वह अपने कमरे में आ गई। घुसते ही आदम कद आईने में खुद की छवि दिखाई दी। उसने आँखें नीची कर लीं। धन बल ने फिर एक लड़की की लुटी हुई अस्मत का तमाशा बना दिया था।

जीवन और श्र्वास

आलाप और रागिनी छोटे से शहर के बड़े गायक थे। दोनों की म्यूज़िकल नाइट्स शहर में धमाल मचा रही थीं। दोनों का रिश्ता ऐसा था जैसे कि जीवन का श्वास से। अपना शहर जीत लेने के बाद इच्छा मुंबई की मायानगरी में किस्मत आज़माने की हुई। दोनों फिल्मों के लिए गाने लगे। पहले साथ साथ फिर अपने अपने रास्ते पर बढ़ने लगे। ना जाने कब रास्तों में फासले आ गए। इस फासले को अहम की गर्म हवा ने भर दिया। जीवन श्वास से पृथक अपना अस्तित्व तलाशने लगा।

दिल का सुकून

करीब छह महीने के बाद सुरेंद्र दो दिनों के लिए घर आया था। बाहर बरामदे में ही माँ बैठी मिल गईं। वह वहीं उनके हालचाल लेने बैठ गया। माँ ने अपना वही पुराना दुखड़ा सुनाना आरंभ कर दिया। माँ के पास से भीतर आया तो पत्नी की भौहें पहले से ही तनी हुई थीं। "खुद तो वहाँ जाकर आराम से बैठ गए। यहाँ तो मुझे सारी खिटखिट सहनी पड़ती है।" सुरेंद्र दो दिनों के लिए दिल का सुकून पाने आया था। पर अब सोंच रहा था कि यह दो दिन कैसे काटेगा।