बात अंग्रेज़ी राज की है। लाला दर्शनलाल पुराने रईसों में थे। उनके बाप दादा बहुत दौलत छोड़कर गए थे। अन्य रईसों की तरह वह भी शौक़ीन मिज़ाज़ थे। शौक पूरे करने के लिए दिल खोल कर खर्च करते थे। उनकी दो पत्नियां थीं। प्रभावती और लीलावती। दोनों सगी बहनें थीं किन्तु उनमें बहनों जैसा प्रेम नहीं था। प्रभावती लीलावती से दस वर्ष बड़ी थी। जब वह सोलह साल की हुई तब उसका विवाह दर्शनलाल से हुआ। वो घर की मालकिन बन गई। छुटपन में जब लीलावती अपनी बहन के घर आती थी तो प्रभावती उसे अपने पूरे नियंत्रण में रखती थी। लीलावती को यह अच्छा नहीं लगता था। लीलावती ने जब यौवन में कदम रखा तो रूप और लावण्य में वह प्रभावती से कहीं अधिक थी। लाला दर्शनलाल उस पर लट्टू हो गए। प्रभावती से उन्हें कोई संतान भी नहीं थी। वो लीलावती से ब्याह करना चाहते थे। दैवयोग से उनके ससुर का देहांत हो गया। उन्होंने अपनी सास के समक्ष प्रस्ताव रखा। पहले तो वह हिचकिचाईं। किंतु बाद में उन्होंने पूरा गणित लगा कर सोंचा कि यदि वह कहीं और लीलावती का ब्याह करेंगी तो बहुत दहेज देना पड़ेगा। जिसके बाद उनके अपने निर्वाह के लिए कुछ नहीं बचेगा। जबकी दर्शनलाल बिना दह
नमस्ते मेरे Blog 'कथा संसार' में आपका स्वागत है। यह कहानियां मेरे अंतर्मन की अभिव्यक्ति हैं। मेरे मन की सीपी में विकसित मोती हैं।