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संदेश

अप्रैल, 2016 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

भूख

वह छोटा सा लड़का बहुत तेजी से खुर्पी चला रहा था. वेदा ने उसे लॉन की सूखी घास छीलने को कहा था. भूख से बेहाल जब वह उसके दरवाजे पर कुछ खाने के लिए मांगने आया तो वेदा ने डांट कर कहा "तुम लोगों को तो आदत है भीख मागने की. बिना काम के कुछ नही मिलेगा." वह काम करने को तैयार हो गया. उसके काम का मुआयना करने वेदा बाहर आई. साथ में उसका ऊंची नस्ल का कुत्ता भी था. उसने कुत्ते को पुचकारा और हाथ में पकड़े पैकेट से बिस्किट निकाल कर खिलाए. बच्चा ललचाई नज़रों से देख रहा था. वेदा ने घुड़का तो फिर से काम करने लगा.

ज्ञानी

चंदन का टीका लगाए भव्य मंच पर बैठे पंडित हरिहर अपनी दिव्य वाणी में गीता पर व्याख्यान दे रहे थे. उन्होंने समझाते हुए कहा कि सभी प्राणियों में ईश्वर परमात्मा के रुप में निवास करते हैं. अतः जो सभी प्राणियों में ईश्वर के दर्शन करे वही ज्ञानी है. तभी जाने कहाँ से एक कुत्ता पंडाल में घुस आया और भाग कर मंच पर चढ़ गया. प्रवचन स्थगित हो गया. कुत्ते का स्पर्श हो जाने के कारण पडितजी को स्नान करना था.

बुआ दादी

पांच साल का बिट्टू समझ नही पाता था कि क्यों बुआ दादी सिर्फ सफेद साड़ी पहनती हैं. वह मम्मी और दादी की तरह लाल बिंदी लगाने की जगह चंदन का टीका क्यों लगाती है. आखिरकार उसने बुआ दादी से ही पूंछा. उस बाल विधवा की दबी हुई पीड़ा को इस बच्चे ने उभार दिया. क्या बताती कि होश संभालने से पहले ही पति को खो देने के दंड में समाज ने उसे इन बेड़ियों में जकड़ रखा है.

बंजर जमीन

बादलों का बरसना तो छोड़िए अब तो आंखों ने भी बरसना छोड़ दिया है. कहीं कहीं दिखाई पड़ती सूखी घास दिखाती है कि कभी इस बंजर भूमि से भी अंकुर फूटते थे. अब तो बस अर्थियां निकलती हैं. हरिया के जवान बेटे से जब कर्ज़ का बोझ ना उतर सका तो वह फंदे से झूल गया.

अपने

चांद को निहारते हुए दिलप्रीत ने एक आह भरी. यह चांद उसके पिंड में भी चमकता होगा. आंगन में दारजी और बीजी बैठे अपनी लाड़ली के सुखद भविष्य के बारे में सोंच कर खुश होते होंगे. पास बैठा छोटा वीर पढ़ाई करता होगा. उनके बारे में सोंच कर उसकी आंखें भर आईं. उसने चांद को कुछ ऐसे देखा जैसे विनती कर रही हो कि उसके आंसुओं का दर्द उसके अपनों से ना कहे.

पराया

"मुझे तुमसे तलाक चाहिए." उसके पति ने सपाट शब्दों में अपना निर्णय सुना दिया. रुचिका आवाक् रह गई. उसका विश्वासी मन तो यह सोंच कर दुखता था कि उसका पति देर रात तक मेहनत करता है. पर वह नही जानती थी कि उसके कदम बहक चुके थे. तिनका तिनका सजाया गया यह घर अचानक उसे पराया लगने लगा.

आस

उसके पति की अर्थी अभी उठी ही थी कि उसके आंगन में मजमा लगना शुरू हो गया. टीवी वाले, अखबार वाले, समाज सेवक तथा नेता सभी जुट रहे थे. हर आंख नम थी. शब्दों में संवेदना थी. सभी उसे मदद का आश्वासन दे रहे थे. उसके पीड़ित मन को तसल्ली मिल रही थी. मदद मिलने की आस उसके जखमों पर मरहम का काम कर रही थी. निश्चिंत थी कि उसके बच्चों का भविष्य अब सुरक्षित रहेगा. समय के साथ सारी भीड़ छंट गई. अब कोई नही आता. अब वह अपने भूखे बच्चों के चेहरे देखती है और अपनी बुझती आस का दिया जलाए रखने का प्रयास करती है. Aas on Tumbhi.com

बलम परदेसी

शारदा ने अभी अभी कुछ देर पहले ही स्काइप पर अपने पति से बात की. पूरे छह माह बीत नवीन को विदेश गए हुए. आरंभ में जब उसे पता चला की नवीन को उसकी कंपनी एक साल के लिए विदेश भेज रही है तो वह परेशान हो गई थी. कैसे अकेले रहेगी इतने दिन. इससे पहले जीवन में कभी अकेले नही रही थी. ऐसा नही था कि वह कोई दब्बू किस्म की महिला थी जिसे डर था कि वह बाहरी काम कैसे संभालेगी. शारदा एक इंटर कॉलेज में हिंदी विभाग की हेड थी. एक उभरती हुई लेखिका होने के कारण अक्सर ही साहित्यिक गोष्ठियों में जाती रहती थी. गृहस्ती से जुड़े बाहर के काम अधिकांशतः उसी पर थे.  दरअसल उसका पालन पोषण एक संयुक्त परिवार में हुआ था. ससुराल में भी प्रारंभिक दिनों में भरापूरा परिवार था जिसमें नवीन और उसके अलावा सास ससुर देवर थे. दो साल के भीतर ही उसमें उसका बेटा अनुभव भी शामिल हो गया. इतने लोगों के बीच उसे कभी मायके की कमी नही खली.  लेकिन देवर की शादी हो जाने पर उसने अलग गृहस्ती बसा ली. उसके बाद पहले सास और फिर एक साल के अंदर ही ससुर भी परलोक सिधार गए. पिछले वर्ष जब बेटा भी पढ़ाई के सिलसिले में बाहर चला गया तो वह और नवीन अकेले रह गए. अब

बोझ

दस साल गुजर गए लेकिन आज भी उसके सीने पर एक बोझ है. अपराध बोध से वह मुक्त नही हो पा रहा है. हलांकि वह महज़ एक हादसा था. लेकिन वह खुद को दोष देता है. वही तो ज़िद करके उन्हें अपनी नई कार पर लांगड्राइव के लिए ले गया था. उसके बाद उनसे कोई भी संबंध नही रहा. कभी हिम्मत नही पड़ी कि उनके समक्ष जाए. आज किस प्रकार सामना करेगा वह समझ नही पा रहा था. अपनी बैटरी चालित व्हीलचेयर में वह उसके सामने आए. हल्के से मुस्कुरा कर अपनी बाहें फैला दीं. भाग कर वह उनके गले लग गया. बोझ उतर गया था. उसे मुक्तिबोध हो रहा था.

घोंसला

मिसेज़ रस्तोगी आंगन में कपड़े सुखाने गईं तो उन्हें कुछ हलचल महसूस हुई. ध्यान से देखा तो पाया कि खिड़की के ऊपर एक चिड़िया तिनका तिनका जमा कर अपना घर बना रही थी. इस घोंसले में वह अपने अंडे देगी. अंडों से निकले चूज़े एक दिन बड़े हो जाएंगे और घोंसला छोड़ कर उड़ जाएंगे. उन्होंने भी तो इसी तरह तिनका तिनका घर सजाया था. आज बच्चे बड़े हो गए और अपने अपने आकाश में उड़ने चले गए. पर वह कभी इसका अफसोस नही करतीं. चिड़िया भी तो अपने बच्चों की परवाज़ पर अंकुश नहीं लगाती.

सांझ

नदी के किनारे बैठे मनु ने देखा कि कुछ लोग सूखे हुए फूल प्रवाहित कर रहे हैं. यह फूल देव प्रतिमा पर चढ़ाए गए होंगे. मन ही मन उसने अपने जीवन की तुलना इन फूलों से की. कभी वह भी तो अपने कार्यक्षेत्र के चरम पर था. आज वह भी इन उतरे हुए फूलों की तरह है. लेकिन इन फूलों को कोई मलाल नही है. उन्होंने देव चरणों पर चढ़ कर जीवन का उद्देश्य पा लिया. उसके मन में भी संतुष्टि थी. उसने भी जीवन संपूर्णता में जिया था.

पानी

कहते हैं पानी बेरंग होता है. जो वस्तु उसमें मिला दो वह उसी का रंग ले लेता है. आज यह कहावत मेरे सामने सच साबित हो गई. पानी की किल्लत से जूझते मेरे मोहल्ले में टैंकर से पानी भरने को लेकर क्लेश हो गया. मर्यादाएं टूटीं. लोग घायल हुए. रक्त के साथ मिल कर पानी का रंग लाल हो गया.

सूनी गली

मेरी गली में आज सन्नाटा छाया है. कभी यह खेलते हुए बच्चों के शोर से गुंजायमान रहती थी. लेकिन उस दिन एक पशु विशेष के मरने की खबर जाने कहाँ से नफरत के बीज लेकर आ गई. मोहल्ला धर्म के खेमों में बंट गया. मासूम बचपन हिंदू और मुसलमान हो गया.

परणति

पंडितजी ने दो माह पूर्व का शुभ मुहूर्त निकाला. इससे पहले कोई तिथि शुभ नही थी. किंतु सुहास को पंद्रह दिनों में विदेश जाना था. उससे पूर्व ही वह विवाह करना चाहता था. उसने कहा कि वह मुहूर्त वगैरह में यकीन नही करता. लेकिन रश्मी के पिता यात्रा भी मुहूर्त देख कर करते थे. विवाह नही हो पाया. बाद में शुभ मुहूर्त पर हुई उसकी शादी की परिणिति संबंध विच्छेद के रूप में हुई.  

इनबॉक्स

उसने मैसेज बॉक्स में अपना संदेश टाइप किया. दो बार उसे ध्यान से पढ़ा. सब सही था. वही लिखा था जो वह कहना चाहता था. किंतु  'सेंड' का बटन दबाना उसके लिए कठिन हो रहा था. पता नही संदेश पढ़ कर उसकी प्रतिक्रिया क्या होगी. यदि वह नाराज़ हो गई तो. उसके साथ दोस्ती तोड़ दी तो. उसके एकाकी जीवन में उसकी दोस्ती ही है जो कुछ सुकून देती है. ये उसकी बातें ही तो हैं जो उसके बेरंग जीवन में खुशियों के रंग भरती हैं. यदि सब समाप्त हो गया तो. यही डर उसे संदेश भेजने से रोक रहा था. उसके आस पास के सभी लोग अपने जीवम में व्यस्त थे. उसके सभी दोस्तों व भाई बहनों की शादियां हो गई थीं सब अपने परिवार के साथ खुश थे. ऐसा नही था कि उसके पास कोई काम नही था. ऑनलाइन वित्तीय सलाहकार होने के साथ वह एक फ्रीलांस लेखक था. लेकिन काम से फुर्सत मिलने के बाद ऐसा कोई नही था जिसके साथ वह अपने दिल की बात कह सके. इसने उसके जीवन के खालीपन को और बढ़ा दिया था.  अपनी व्हीलचेयर पर बैठ कर ही वह अपने भाई बहनों के साथ बचपन का आनंद लेता था. स्कूल के मित्रों के साथ कुछ एक अवसरों को छोड़ दें तो उसे अपनी अक्षमता का एहसास कम ही होता था. लेकि

खिलौने

उसके सामने एक प्लास्टिक शीट पर ढेर सारे खिलौने रखे थे. उसने सब पर एक निगाह डाली और फिर आवाज़ लगाने लगा "खिलौना ले लो खिलौना". उसकी निगाहें  सड़क पर चलने वालों में संभावित ग्राहक ढूंढ़ रही थीं. दफ्तर से लौटते एक सज्जन को देख कर चिल्लाने लगा "अंकलजी खिलौना ले लीजिए. आपके बच्चे खुश हो जाएंगे. हर खिलौना दस रुपये का है." वह सज्जन ठहर कर खिलौने देखने लगे. बिक्री की संभावना देख कर वह एक एक खिलौना उठा कर दिखाने लगा " यह देखिए बंदर और यह गुड़िया. ये कार फर्र से भागती है. यह हनुमानजी की गदा है." उसने गदा उठा कर अपने कंधे पर रखी और हनुमानजी की तरह मुंह फुला लिया. उसकी चेष्ठाएं देख कर वह सज्जन मुस्करा दिए. अपने पर्स से दस रुपये निकाल कर उसे  दिए और गदा लेकर आगे बढ़ गए. उसने नोट को देखा और अपनी जेब में रख लिया. एक और संभावित ग्राहक को देख कर उसने पुकारा "आंटीजी खिलौने ले लीजिए. बच्चे खुश हो जाएंगे." Khilone Tumbhi.com

ऐ मोहब्बत

आशिका बालकनी में खड़़ी थी. उसने एक निगाह पौधों पर डाली. कई पौधे सूख गए थे. आजकल पौधों पर भी ध्यान नही दे पा रही थी. वह कुर्सी पर बैठ गई. मन बहुत उद्विग्न था.  उसके और अमन के बीच झगड़े बढ़ते जा रहे हैं. पहले भी झगड़े होते थे किंतु कभी कभार वह भी किसी बड़े मसले पर. जल्द ही दोनों सुलह भी कर लेते थे. अब तो बेवजह झगड़े होने लगे हैं. मनमुटाव बढ़ता ही जा रहा है.  तीन साल पहले दोनों की मुलाकात एक दोस्त की पार्टी में हुई थी. कुछ औपचारिक बाते हुईं. अमन एक ट्रैवेल एजेंसी चलाता था और आशिका एक विज्ञापन एजेंसी में क्रिएटिव हेड थी.  अमन को अपनी ट्रैवेल एजेंसी का विज्ञापन बनवाना था. अगले दिन वह उसके दफ्तर पहुँच गया. उनके बीच की मुलाकातें बढ़ने लगीं. औपचारिक मुलाकातें डेट में बदल गईं. एक वर्ष तक डेट करने के बाद दोनों ने साथ होने का फैसला कर लिया. प्रारंभ में सब कुछ बहुत सुखद था. दोनों को एक दुसरे का साथ बहुत पसंद था. घर की ज़िम्मेदारियां दोनों ने आपस में बांट रखी थीं. एक की ज़रूरत का खयाल दूसरा रखता था.  फिर अचानक जाने क्या हुआ दोनों के बीच की दूरियां बढ़ने लगीं. दोनों एक दूसरे की कमियां देखने लगे. बा