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मार्च, 2016 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

होली आई रे

होली का दिन था. दिवाकर कुर्सी पर बैठे पुराने दिनों को याद कर रहा था. बचपन से ही होली उसका पसंदीदा त्यौहार रहा है. यह कहना भी गलत नही होगा कि वह होली का दीवाना है. बचपन में होली के त्यौहार के दो दिन पहले से ही वह अपनी पिचकारी में पानी भर कर लोगों को भिंगोने लगता था. इस बात के लिए माँ से उसे बहुत डांट पड़ती थी लेकिन वह बाज नहीं आता था. होली के दिन तो सुबह से ही वह रंग खेलने लगता था और तब तक खेलता रहता था जब तक माँ उसे जबरदस्ती पकड़ कर घर नही ले जाती थीं.   जब वह दसवीं में था तो होली के समय बोर्ड परीक्षा चल रही थी. माँ ने सख्त हिदायत दी थी कि इस बार बोर्ड परीक्षा है अतः होली नही खेलनी है. लेकिन वह सुबह सुबह ही निकल गया. जब दोपहर में वह घर लौटा तो माँ बहुत नाराज़ हुईं. उनका गुस्सा तब तक शांत नही हुआ जब तक परीक्षा में उसके अच्छे अंक नही आ गए.  कॉलेज के दिनों में भी होली का ख़ुमार उसके सर चढ़ कर बोलता रहा. वह और उसके दोस्तों की मंडली मोटरसइकिलों पर काफिला बना कर निकलते थे. देर शाम तक खूब मस्ती करते थे. शादी के बाद परिवार की जिम्मेदारियों के बावजूद भी उसका होली पर हुड़दंग बदस्तूर जारी रहा.

दोराहा

खिड़की पर खडी़ सुनीता गली में खेलते बच्चों को देख रही थी. रिपोर्ट पॉज़िटिव थी. जो वह सोंच रही थी वह सच था.  वह एक दोराहे पर खड़ी थी. उसका मन दो विपरीत दिशाओं में भाग रहा था. परस्पर विरोधी विचार उसके मन में उमड़ रहे थे.  उसके मन में आया जाकर यह रिपोर्ट विशाल के मुंह पर मारे. उसकी कोख पर दोष लगा कर उसने अपनी दूसरी शादी को जायज़ ठहराया था. उसका गिरेबान पकड़ कर उसे दिखाए कि दोष उसकी कोख का नहीं था. उसने अपनी कोख पर हाथ रखा. अपने भीतर पल रहे उस जीव से जिसने आकार लेना शुरू किया है उसे एक लगाव सा महसूस हुआ.  तभी अपने बॉस का वीभत्स चेहरा उसकी आंखों के सामने आ गया. उसका वह विषैला स्पर्श उसके जिस्म में एक सिहरन पैदा कर गया. अपनी कोख से उसने अपना हाथ हटा लिया. उसके मन के भाव बदल गए. जिसे वह अपने रक्त से सींच रही है वह उसी राक्षस का अंश है.  वह कोई फैसला नहीं कर पा रही थी. इस द्वंद ने उसके मन को थका दिया था. रात भर वह बिस्तर पर करवट बदलती रही.  रात भर की उहापोह के बाद सुबह जब वह उठी तो मन शांत था. वह भी वही अन्याय करने जा रही थी जो समाज ने उसके साथ किया था. बिना किसी कसूर के उस मासूम को दोष दे रह