रचनाकार: आशीष कुमार त्रिवेदी की लघुकथा - सौर दिनेश को आज घर लौटने में देर हो गयी थी। जूते उतार कर वह पलंग पर लेट गया। वह बहुत थका हुआ था। आज का दिन अच्छा नहीं बीता था । काम भी और दिनों से कुछ अधिक था उस पर उसे बॉस की डांट भी खानी पड़ी। वह आँखें मूंदे लेटा था तभी उसकी पत्नी कुसुम ने उसके हाथ में एक कार्ड थमा दिया। उसने एक उचटती सी नज़र डालते हुए पूछा "क्या है।" "वो मेरी बरेली वाली मौसी हैं न उनकी छोटी बेटी की शादी है। इस महीने की 15 तारीख को। जाना पड़ेगा" " हूँ ....तो चली जाना।" कह कर दिनेश ने कार्ड एक तरफ रख दिया। " हाँ जाउंगी तो लेकिन कुछ देना भी तो पड़ेगा। मौसी हमें कितना मानती हैं। जब भी मिलाती हैं हाथ में कुछ न कुछ रख देती हैं।" " देख लो अगर तुम्हारे पास कुछ हो, कोई अच्छी साड़ी या और कुछ, तो दे दो।" " मेरे पास कहाँ कुछ है मैं कौन रोज़ रोज़ साडियाँ या गहने खरीदती हूँ।" " तो मैं भी क्या करूं मेरी हालत तुमसे छिपी है क्या। मेरे पास कुछ नहीं है।" दिनेश ने कुछ तल्ख़ अंदाज़ में कहा। दिनेश की माँ ने अपनी बहू की त
नमस्ते मेरे Blog 'कथा संसार' में आपका स्वागत है। यह कहानियां मेरे अंतर्मन की अभिव्यक्ति हैं। मेरे मन की सीपी में विकसित मोती हैं।