सुमित्रा देवी बड़े उत्साह से कन्याओं को भोजन करा रही थीं। स्वयं ही यह देख रही थीं कि किसी को कुछ चाहिए तो नहीं। जब सभी कन्यायें भोजन कर चुकीं तो वे सभी के पाँव छू कर उन्हें दक्षिणा देने लगीं। अब सिर्फ एक ही कन्या बची थी जो उम्र में सबसे कम थी। सुमित्रा देवी ने उसके पाँव छू कर कहा " माता मेरी बहू उम्मीद से है। इस बार मेरी झोली में एक पोता डाल दो। " नन्ही बच्ची खिलखिला कर हंस पड़ी। शायद समाज के दोगले आचरण पर हंस रही थी।
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