मैं अपनी यह पुश्तैनी हवेली बेंचने आया हूँ। कुछ कागज़ात पर दस्तखत करने के बाद यह सौ साल पुरानी हवेली बिक जायेगी। मुझे बताया गया कि एक बंद कमरे से कुछ सामान मिला है। कुछ पुराना फर्नीचर था। उनमें एक आराम कुर्सी थी। इसे मैंने अपने दादाजी की तस्वीर में देखा था। एक छोटा सा संदूक भी था। जिसमें एक कपडे में लिपटी डायरी राखी थी। पापा ने बताया था दादाजी को डायरी लिखने कि आदत थी। अपने दादाजी के विषय में मैं बहुत कम जानता था। सिर्फ इतना ही कि वह गांधी जी से बहुत प्रभावित थे और उन्होनें देश एवं समाज कि सेवा का प्रण लिया था। कुछ घंटे मुझे इसी हवेली में बिताने थे। मैंने वह आराम कुर्सी आँगन में रखवा दी। उस पर बैठ कर मैं डायरी के पन्ने पलटने लगा। डायरी लगातार नहीं लिखी गई थी। कभी कभी छह माह का अंतराल था। जिस पहले पन्ने पर नज़र टिकी उस पर तारीख थी.… 7 जून 1942 कभी कभी सोंचता हूँ क्या मेरा जीवन सिर्फ इस लिए है कि मैं धन दौलत स्त्री पुत्र का सुख भोगूं और चला जाऊं। एक अजीब सी उत्कंठा मन में रहती है। जी करता है कि सब कुछ छोड़ दूं। जब अपने आस पास गरीब अनपढ़ लोगों को कष्ट भोगते देखता हूँ तो स्वयं के संपन्
नमस्ते मेरे Blog 'कथा संसार' में आपका स्वागत है। यह कहानियां मेरे अंतर्मन की अभिव्यक्ति हैं। मेरे मन की सीपी में विकसित मोती हैं।