पल्लवी बार बार घड़ी देख रही थी। हर बीतते पल के साथ उसकी फिक्र बढ़ती जा रही थी। कई तरह के खयाल उसके मन में उथल पुथल मचा रहे थे। कभी इतनी देर तो नही होती है। फोन भी कवरेज एरिया से बाहर था। कहीं कोई दुर्घटना तो नही हो गई। आजकल का माहौल कितना बढ़ गया है। लोगों में सहनशीलता तो रह ही नही गई है। छोटी छोटी बातों पर झगड़े होने लगते हैं। पल्लवी ने दीवार पर लटके अपने बेटे के चित्र को देखा। उसकी एक छोटी गलती ने झगड़े का रूप ले लिया था। परिणाम यह हुआ कि उसके जवान बेटे का शव घर आया था। तब से अपने छोटे बेटे को लेकर वह बहुत फिक्रमंद रहती थी। वह एक बार फिर फोन लगाने लगी। तभी दरवाज़े की घंटी बजी। उसने भाग कर दरवाज़ा खोला। "कहाँ रह गए थे। फोन भी नही लग रहा था।" "क्यों परेशान हो जाती हो मम्मी। फोन की बैटरी डिस्चार्ज हो गई थी।" "इतनी देर कहाँ लग गई।" "सिर्फ आधा घंटा ही ज्यादा हुआ है। बहुत ट्रैफिक था। उसी में फंसा था।" पल्लवी कैसे समझाती कि यह आधा घंटा उस पर कितना भारी रहा। वह शांत हो गई। बेटे के लिए चाय बनाने चली गई।
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