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फ़रवरी, 2017 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

फिक्र

पल्लवी बार बार घड़ी देख रही थी। हर बीतते पल के साथ उसकी फिक्र बढ़ती जा रही थी। कई तरह के खयाल उसके मन में उथल पुथल मचा रहे थे। कभी इतनी देर तो नही होती है। फोन भी कवरेज एरिया से बाहर था। कहीं कोई दुर्घटना तो नही हो गई। आजकल का माहौल कितना बढ़ गया है। लोगों में सहनशीलता तो रह ही नही गई है। छोटी छोटी बातों पर झगड़े होने लगते हैं। पल्लवी ने दीवार पर लटके अपने बेटे के चित्र को देखा। उसकी एक छोटी गलती ने झगड़े का रूप ले लिया था। परिणाम यह हुआ कि उसके जवान बेटे का शव घर आया था। तब से अपने छोटे बेटे को लेकर वह बहुत फिक्रमंद रहती थी। वह एक बार फिर फोन लगाने लगी। तभी दरवाज़े की घंटी बजी। उसने भाग कर दरवाज़ा खोला। "कहाँ रह गए थे। फोन भी नही लग रहा था।" "क्यों परेशान हो जाती हो मम्मी। फोन की बैटरी डिस्चार्ज हो गई थी।" "इतनी देर कहाँ लग गई।" "सिर्फ आधा घंटा ही ज्यादा हुआ है। बहुत ट्रैफिक था। उसी में फंसा था।" पल्लवी कैसे समझाती कि यह आधा घंटा उस पर कितना भारी रहा। वह शांत हो गई। बेटे के लिए चाय बनाने चली गई।

खुशी का कारण

विमला के मन में कौतुहल था। आज उसकी देवरानी सीमा सुबह से ही बहुत प्रफुल्लित थी। उसके गुनगुनाने की आवाज़ आ रही थी।विमला जानना चाहती थी कि इस प्रसन्नता का कारण क्या है।  वैसे तो दोनों की रसोई अलग थी किंतु आपस में मेल मिलाप था। पर कल दोपहर ही दोनों में किसी बात को लेकर झड़प हो गई थी। अतः चाह कर भी विमला कुछ पूँछ नही पा रही थी। वह बस मन ही मन कयास लगा रही थी और खुद ही उन्हें खंडित कर रही थी। बहुत देर तक यूं ही उलझे रहने के बाद थक कर उसने दूसरी ओर ध्यान लगाने के लिए टीवी खोल लिया। लेकिन मन की जिज्ञासा कम नही हुई। सीमा की रसोई से मीठी खुशबू आ रही थी। विमला सोचने लगी जरूर कुछ खास है। पर मन ने प्रतिरोध किया 'होगा कुछ तुम्हें क्या। रिश्ते में छोटी है पर इतना गुरूर है कि बताया भी नही।' वह फिर टीवी देखने लगी।  लंच का समय हो रहा था तभी सीमा उसके कमरे में आई।  "दीदी आज आप मेरे साथ लंच कीजिए।" विमला ने कुछ अकड़ से कहा "मैने खाना बना लिया है।" "पता है। उसे हम लोग शाम को खा लेंगे।" सीमा ने अधिकार से हाथ पकड़ा और अपने कमरे में ले गई। मेज़ पर खाना लगा था। विमला की म

पूरक

एक बड़े अस्पताल के प्राईवेट कमरे में दो महिलाएं थीं। एक नौ माह की गर्भवती बिस्तर पर लेटी थी। वह किसी साधारण परिवार से संबंध रखती थी। दूसरी जो उसके पास बैठी थी देखने से अमीर लग रही थी। अमीर महिला ने उस गर्भवती स्त्री से कहा "तुम्हारा मुझ पर बड़ा उपकार है।" गर्भवती स्त्री ने उसका हाथ पकड़ कर कहा "मेरी कोख बच्चे जन सकती है लेकिन मेरे पास उन्हें पालने के पैसे नही हैं। आप के पास पैसे हैं। हम दोनों एक दूसरे के पूरक हैं।"

पगला

वह दूर खड़ा देख रहा था। एक महिला ने प्लास्टिक की थाली में बचा खुचा खाना लाकर बाहर कुत्ते के सामने रख दिया। कुत्ता उसमें से खाने लगा। वह भी भाग कर आया और उसी थाली से खाने लगा। कभी वह एक आलीशान बंगले का मालिक था। किंतु जिसे उसने सबसे अधिक चाहा उसी पत्नी ने उसके बिज़नेस पार्टनर के साथ मिल कर उसे धोखा दिया। तब से उसका मानसिक संतुलन बिगड़ गया। वह  पुल के नीचे बहने वाले नाले के पास एक पाइप में रहता था।  मन के सभी भाव सूख चुके थे। अब अच्छा बुरा छोटा बड़ा सब एक थे। कुत्ते के साथ खाना खाकर वह प्रसन्न मन आगे बढ़ गया।

डेयरिंगबाज़

दीपक आज पहली बार अपने दम पर मिशन को अंजाम देने निकला था।  अपने छोटे से शहर से वह पढ़ाई करने के लिए इस महानगर में आया था। यहाँ वह वैसा ही महसूस करता था जैसे छोटे से तालाब से निकल कर कोई मछली बड़े से समुद्र में आ गई हो। सब कुछ अद्भुत अनोखा। इस समुद्र की कुछ चालाक शर्क मछलियों ने उसे फंसा लिया। वह भी उनकी चमक दमक से खिंचा चला गया। उन्होंने उसे बिंदास जीने के लिए डेयरिंगबाज़ी के गुन सिखाए। आज उसकी परीक्षा थी। दीपक की नज़र एक महिला पर थी। जैसे ही वह घर से निकली वह मोटरसाइकिल पर उसके पीछे लग गया। जब वह एक गली में घुसी उसने झपट कर उसकी चेन खींची और तेज़ी से मोटरसाइकिल भगा कर गायब हो गया। दीपक ने अपने कदम तो शिक्षा की राह पर रखे थे किंतु बहक कर अपराध की गली में चला गया।

फैसला

रात के करीब डेढ़ बजे विलास नशे में झूमता हुआ घर में दाखिल हुआ। उस पर शराब से अधिक अपनी जीत का नशा था। आज उसके रसूख़ और पैसे की ताकत ने साक्ष्यों को उसके पक्ष में मोड़ दिया। वह बाइज्ज़त बरी हो गया। वह कपड़े बदल कर सोने ही जा रहा था तभी उसके मोबाइल की घंटी बजी।  फोन उठाते ही उसका नशा उतर गया। दूसरे शहर में रह कर पढ़ाई कर रहे उसके बेटे की दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी। जिस कार से उसकी कार टकराई थी उसका चालक नशे में धुत्त था। उसके सामने उसका गुनाह घूमने लगा।

पहला दिन

विपिन अपने क्यूबीसेल में बैठा अपने काम में मन लगाने का प्रयास कर रहा था। आज दफ्तर में उसका पहला दिन था। सब कुछ अन्जाना। बाकी सब आपस में बातचीत कर रहे थे। पर वह किसी का नाम भी नही जानता था। इस मौहौल में वह बहुत असहज महसूस कर रहा था। लंच के समय जब वह अकेले खाना खाने जा रहा था तब चपरासी ने उसे संदेश दिया कि बॉस ने उसे कैंटीन में बुलाया है। जब वह कैंटीन पहुँचा तो वहाँ बॉस के साथ साथ अन्य लोग भी थे। मेज पर एक छोटा सा केक था। उसने केक काटा। सबने ताली बजा कर उसका स्वागत किया। उसने सबके साथ लंच किया। अब वह बहुत सहज महसूस कर रहा था।

सर्वर डाउन

आज दो दिन के बाद राशन बटना शुरू हुआ था। रामरती बहुत उम्मीद लगाए कतार में खड़ी थी। सिर्फ तीन लोग और फिर उसकी बारी थी।  घर में खाने को कुछ नही था। राशन मिल जाए तो बच्चों के मुह में कुछ जाए। एक एक पल भारी पड़ रहा था। तभी हल्ला मचा कि सर्वर डाउन है। राशन नही बटेगा। रामरती भारी कदमों से खाली थैला लिए घर लौट गई।

नया नज़रिया

विशेष खिन्न मन से इधर उधर घूम रहा था। कितने उत्साह के साथ वह यहाँ छुट्टियां मनाने आया था। बहुत दिनों से पैसे इकठ्ठे कर रहा था। पर जिस होटल में वह ठहरा था वहाँ की सर्विस उसे अच्छी नही लगी।  चारों तरफ प्रकृति की अनुपम छटा बिखरी थी। लेकिन उसे कुछ भी अच्छा नही लग रहा था। तभी एक बच्चे की किलकारी उसके कानों में पड़ी। उसने पीछे मुड़ कर देखा ढाई तीन साल का एक बच्चा आस पास की चीज़ों को देख कर खुशी   से ताली बजा रहा था।  उसकी प्रसन्नता देख कर विशेष को एहसास हुआ कि खुश रहना भी एक कला है। उसने नए नज़रिए से आस पास देखना शुरू किया।

बूढ़ा तोता

सभी की निगाहें अचानक नीरजा पर टिक गईं। उनका फैसला चौंकाने वाला था। पैंतालिस साल की उम्र में जब बच्चों के बच्चे स्कूल जाने लगे तब वह आगे की पढ़ाई करने की बात कर रही थीं। बहू के चेहरे पर कुटिल मुस्कान थी। बेटे ने विरोध किया "कैसी बातें कर रही हो मम्मी। यह उम्र है पढ़ने की।" नीरजा को अपनी दादी की बात याद आ गई 'सोलह की हो गई। क्या करेगी पढ़ कर। ब्याह कर दो इसका।' छोटी उम्र में विवाह हो गया। आगे पढ़ने की इच्छा को मन में दबा कर वह गृहस्ती के कामों में डूब गई। पर दिल में दबी इच्छा मरी नहीं। सोचा था कि जिम्मेदारियां पूरी कर अपनी इच्छा पूरी करेगी। जब बच्चों के दायित्व से मुक्त हुई तो पति की मृत्यु हो गई। बात फिर टल गई। पर अब उसने तय कर लिया था कि वह अपनी इच्छा अवश्य पूरी करेगी। वह किसी पर निर्भर नही थी। दृढ़ स्वर में नीरजा बोलीं "पढ़ने की कोई उम्र नही होती। मेरा फैसला अटल है।" अपना फैसला सुना कर वह अपने कमरे में चली गईं।

मारीचिका

सुधीर अंधेरी गली के मोड़ पर खड़ा उनके आने की प्रतीक्षा कर रहा था। सर्द हवा चल रही थी फिर भी बार बार वह पसीना पोंछ रहा था। वह यह काम नहीं करना चाहता था। किंतु वह उस मुकाम पर खड़ा था जहाँ से पीछे हटना मुश्किल था। वह उस दिन को याद कर पछता रहा था जब वह आसानी से पैसे कमाने के लालच में उसने गलत संगत को अपना लिया था। आरंभ में उसे बहुत मजा आ रहा था। पर धीरे धीरे वह इस दलदल में धंसता गया। अब तो वह पूर्णतया इन लोगों के हाथ की कठपुतली बन चुका था। तभी उनके स्कूटर की आवाज़ सुनाई पड़ी। उसने फौरन पिस्तौल निकाल ली। उसने निशाना लिया पर उसके हाथ कांप रहे थे। गोली चली पर निशाना चूक गया।  वह घुटनों के बल गिर पड़ा और फूट फूट कर रोने लगा। आज पैसों के लालच में वह एक ईमानदार आदमी को मारने जा रहा था।

शर्म

एक बड़े व्यापारी के फॉर्म हाउस पर पुलिस की रेड पड़ी थी। बाहर पत्रकारों का जमावड़ा था। फॉर्म हाउस के अंदर से शहर के धनाड्य लोग कैमरों से मुंह छुपाते हुए बाहर आ रहे थे।  एक पत्रकार अपने साथी से बोला "नाबालिग बच्चियों के साथ अय्याशी करते इन्हें शर्म नही आई। अब मुंह छुपा रहे हैं।" उसके साथी ने जवाब दिया "भाई इन्हें ही बड़े लोग कहते हैं।"

पकड़

सुमित्रा अपने देवर विलास के फैसले का  इंतज़ार कर रही थीं। पास ही उनकी भतीजी प्रिया और देवरानी भी बैठी थीं।  सुमित्रा का अपने देवर की गृहस्ती में बड़ा दखल था। कोई भी फैसला उनकी सहमती के नहीं होता था। उन्होंने प्रिया के लिए एक रिश्ता सुझाया था। वह चाहती थीं कि उसका विवाह वहीं हो। लेकिन प्रिया अपने एक सहकर्मी से विवाह करना चाहती थी। उसने अपने पिता से साफ कह दिया था कि वह केवल अपनी पसंद के लड़के से ही विवाह करेगी। सुमित्रा को पूरा यकीन था कि इस बार भी विलास उन्हीं की बात मानेगा। अपना फैसला सुनाते हुए बोला "भाभी हमें प्रिया को उसकी पसंद से शादी करने देना चाहिए। वह लड़का हर लिहाज़ से उसके लायक है।" सुमित्रा को अपनी पकड़ ढीली पड़ती प्रतीत हुई।

अपना

नाज़नीन अपने दल के साथ निकलने की तैयारी में था। पास के मोहल्ले में एक बड़े घर में शादी हुई थी। वहाँ अच्छा नेग मिलने की उम्मीद थी। वह निकल ही रहा था तभी किशन आ गया। वह बहुत दुखी था। नाज़नीन ने पूँछा "क्या हुआ। परेशान क्यों हो?" "बंटी बहुत बीमार है। अस्पताल में है। पैसों की ज़रूरत थी।" "हम पास की कोठी में जा रहे हैं। भगवान ने चाहा तो अच्छी रकम मिलेगी। दोपहर को आना।" आश्वासन पाकर किशन चला गया। नाज़नीन ने हाथ जोड़कर ईश्वर से अपने भतीजे के स्वास्थ के लिए प्रार्थना की।

खरा सोना

बहुत देर से बैठे बैठे शैलेश थक गया था। बीना ने उसे लेटने में मदद की। उसका हाथ पकड़ कर वह बोला "मेरे कारण तुम्हें कितनी परेशानी झेलनी पड़ती है।" "आप जानते हैं मुझे आपकी ऐसी बातों से अधिक तकलीफ़ होती है। आप आराम करें।" कुछ ही देर में शैलेश सो गया। बीना अपने विचारों में खो गई। कई दिनों से वह शैलेश को लेकर अस्पताल में रह रही थी। वह बहुत अकेली थी। उसे भावनात्मक सहारे की बहुत आवश्यक्ता थी। पर उसके आसपास उसे सांत्वना देने वाला कोई नहीं था।  उसके ज़ेहन में बार बार विशाल का नाम उभर कर आ रहा था। पर उसे किस हक से बुलाती। फिर शैलेश से उसे क्या कह कर मिलवाती। यह बताती कि कभी वह उसके घर किराएदार था। उसका और विशाल का रिश्ता खरे सोने की तरह था। मिलावट रहित। इसीलिए कोई आकार नहीं ले सका। पिता के दिए वचन का मान रखने के लिए उसने शैलेश से विवाह कर लिया। उसका घर छोड़ते हुए विशाल ने कहा था "जब कभी कोई दुख या परेशानी आए मुझे एक हमदर्द के तौर पर याद रखना।" दो साल हो गए थे। पता नहीं अभी भी वही नंबर है कि नहीं। हो सकता है वह अब इस शहर में ना हो। इसी उहापोह में फंसी वह कोई निर्णय नह

सैलाब

चारों ओर जिधर भी नज़र दौड़ाओ भीड़ ही भीड़ दिखाई पड़ रही थी। सोशल मीडिया से निकल कर जन आक्रोश सड़कों पर आ गया था। पुलिस की लाठियों की परवाह किए बिना लोग बिगड़ती कानून व्यवस्था के खिलाफ अपना विरोध दर्शा रहे थे। एक टीवी पत्रकार ने प्रदर्शनकारियों के नेता से पूंछा "आप लोगों के इस प्रकार विरोध का क्या नतीजा निकलेगा।" "हमारा यह प्रदर्शन एक बदलाव की नींव रखेगा। अब नेताओं को यह एहसास होगा कि मत देने के बाद हम अब असहाय बन कर नहीं बैठेंगे। बल्कि अन्याय और अव्यवस्था के खिलाफ आवाज़ उठाएंगे।" उसके साथ के लोगों ने नारा लगाकर उसका समर्थन किया।

टाट का पैबंद

गीता देवी की पूरे गाँव में बहुत इज़्ज़त थी. उन्होंने गाँव की सभी औरतों को आर्थिक रूप से सबल बनने की राह दिखाई थी. आज उनके सिलाई के कारखाने का उद्घाटन था. यहाँ गाँव की अधिकांश महिलाओं को सिलाई का काम मिलने वाला था. मुख्य अतिथि के तौर पर महिला एवं बाल विकास विभाग के एक उच्च अधिकारी आने वाले थे. सभी उनकी प्रतीक्षा कर रहे थे. मुख्य अतिथि के आते ही हलचल सी मच गई. गीता देवी ने आगे बढ़ कर उनका स्वागत किया. उन्हें देखते ही मुख्य अतिथि चौंक गए. किंतु गीता देवी ने बिना कोई भाव प्रदर्शित किए उनसे फीता काटने को कहा. उद्घाटन के बाद लोगों के कहने पर वह भाषण देने लगे "गीता देवी जैसी महिलांए समाज का गौरव हैं. ऐसी महिलाओं पर हमें गर्व हैं." गीता देवी मन ही मन मुस्कुरा रही थीं. कैसा दोगला व्यक्ति है. जिसे अपने मलमल जैसे जीवन में टाट का पैबंद कह कर घर से निकाल दिया था आज उसी की तारीफ कर रहा था.