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मार्च, 2015 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

मासूम

शहर के बड़े अस्पताल के I.C.U में  चाइल्ड स्टार आयुष ज़िन्दगी और मौत के बीच झूल रहा था। डाक्टरों के अनुसार अत्यधिक थकान और नींद की कमी के कारण ऐसा हुआ था। तीन साल पहले आयुष एक आम बच्चा था जो स्कूल जाता था , दोस्तों के साथ मस्ती करता था। उसके पिता एक कंपनी में काम करते थे और माँ एक गृहणी थीं। एक मिडिलक्लास परिवार था। लेकिन आयुष बहुत खुश था। उसने स्कूल के वार्षिक समारोह में एक प्ले में हिस्सा लिया जहां एक विज्ञापन निर्माता ने उसे देखा। उसने आयुष के माता पिता को उसे एक विज्ञापन फिल्म में काम करने देने को राज़ी कर लिया। अपनी पहली विज्ञापन फिल्म से ही आयुष चर्चित हो गया। फिर तो उसके लिए कई ऑफर्स आने लगे। काम इतना मिलाने लगा कि उसके पिता ने नौकरी छोड़ उसका काम संभाल लिया। विज्ञापन फिल्मों के अलावा आयुष डेली सोप , अवार्ड फंक्शन में भी दिखने लगा। उसके पिता प्रयास करते कि उसे अधिक से अधिक काम मिल सके। देखते देखते आयुष स्टार बन गया। काम के साथ साथ पैसा भी आया। उसका परिवार अब शहर के पॉश इलाके में रहता था। घर में किसी चीज़ की कमी नहीं रह गई थी। आयुष का कमरा ढेर सारे खिलौनों से भरा था। किंतु उनसे खेलन

बंजर

चौधरी साहब की हवेली में आज बड़ी रौनक थी। ढोलक की थाप पूरे घर में गूँज रही थी। आज उनके घर उनकी छोटी बहू की मुहं दिखाई थी। सुनीता बहुत व्यस्त थी। सभी मेहमानों के आवभगत की ज़िम्मेदारी उसी पर थी। सभी सुनीता की तारीफ कर रहे थे। वाही थी जो अपनी छोटी चचेरी बहन प्रभा को अपनी देवरानी बना कर लाई थी। प्रभा के रूप और व्यवहार ने आते ही सब पर अपना जादू चला दिया था। चाचा चाची के निधन के बाद प्रभा सुनीता के घर रह कर ही पली थी। सुनीता ने उस अनाथ लड़की को सदैव अपनी छोटी बहन सा स्नेह दिया था। यही कारण था कि उसे अपनी देवरानी बनाने की उसने पूरी कोशिश की थी। अपनी कोशिश में वह सफल भी हो गई। दो वर्ष पूर्व सुनीता इस घर की बड़ी बहू बन कर आई थी। अपने सेवाभाव और हंसमुख स्वाभाव से वह सास ससुर पति देवर सबकी लाडली बन गई थी। पूरे घर पर उसका ही राज था। उसकी सलाह से ही सब कुछ होता था। कमी यदि थी तो बस यही कि अब तक वह माँ नहीं बन पाई थी। हालांकि उसके घरवालों ने कभी भी इस बात का ज़िक्र नहीं किया था किंतु आस पड़ोस में होने वाली कानाफूसी उसके कान में पड़ती रहती थी। ब्याह के कुछ महीनों के बाद ही प्रभा के पांव भारी हो गए। पूरे

आग

मदन रूपवान और धनवान था। अभी कुछ समय पूर्व ही उसने यौवन में कदम रखा था। उसे अपने पुरुष होने का अभिमान था। कालेज के प्रथम वर्ष का प्रारम्भ हुआ था। कोएड कालेज में पढने वाली लड़कियां उसके लिए रूप और यौवन से भरे पात्र के अतिरिक्त कुछ नहीं थीं जिन्हें वह पी जाना चाहता था। इन्हीं में एक थी कामिनी। उसके रूप के आगे सभी की चमक फीकी पड़ जाती थी। मदन ने उस पर अपना प्रभाव डाल कर उसे अपनी तरफ आकर्षित कर लिया। उसे एक सहृदय मित्र समझकर कामिनी उसके साथ खुल कर व्यवहार करती थी। किंतु अवसर पाकर मदन ने उसके इस खुले व्यवहार का फायदा उठाया। अपनी तृप्ति कर वह एक भ्रमर की भांति दूसरे फूलों पर मंडराने लगा। अपनी पहली कामयाबी से उसका अभिमान और बढ़ गया। उसके लिए सभी स्त्रियां केवल मन बहलाव का सामान बन गईं। कालेज के बाद उसने अपने पैतृक व्यापार को ऊंचाइयों पर पहुंचा दिया। इससे उसकी मान प्रतिष्ठा और बढ़ गई। उसका अभिमान पहले से और बढ़ गया। उसके संपर्क में आने वाली स्त्रियों को कभी उनकी मज़बूरी का फायदा उठाकर तो कभी लालच देकर अपनी उस वासना को शांत करने की कोशिश करता जो और अधिक बढती जाती थी। उसकी सुंदर सुशील पत्नी भी उसके