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जुलाई, 2014 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

एक टुकड़ा आसमान

बटलर ने फूलों का एक गुलदस्ता लाकर समीर को दिया। समीर ने कार्ड निकाल कर पढ़ा। उसके एक मित्र ने भेजा था। " हैप्पी बर्थ डे सर। आज आप बहुत हैंडसम लग रहे हैं। " बटलर ने अदब के साथ कहा। " सारी तैयारियां हो गईं। " " जी सर " " ठीक है तुम जाओ " समीर मारिया का इंतज़ार कर रहा था। मारिया उस समय उसके जीवन में आई थी जब वह अपने जीवन के सबसे बुरे दौर से गुज़र रहा था। कभी रफ़्तार के पहियों पर भागती उसकी ज़िन्दगी अस्पताल के बिस्तर पर आकर ठहर गई थी। फॉर्मूला 1 रेसर अब बिस्तर पर हिल डुल भी नहीं सकता था। सारा वक़्त वह ईश्वर से इस जीवन को समाप्त कर देने की प्रार्थना करता रहता था। निराशा के उस समय में मारिया उम्मीद की किरण बन कर आई। मारिया भारतीय नृत्य शैलियों पार शोध करने भारत आई थी। इसी दौरान उसने एक N.G.O को ज्वाइन किया जो ऐसे लोगों की सहायता एवं प्रोत्साहन के लिये काम करती थी जो रीढ़ की हड्डी में चोट लग जाने के कारण चलने फिरने में असमर्थ हो गए थे। मारिया एक ज़िंदादिल एवं साकारत्मक विचारों वाली लड़की थी। मारिया की मेहनत और लगन ने समीर में फिर से जीवन जीने की

नया आसमान

उसकी गोद में किताब यूँ है खुली पड़ी थी। प्याले में पड़ी पड़ी चाय भी ठंडी हो गई थी। किंतु ऊषा अपने विचारों में खोई हुई थी। एक कश्मकश उसके दिल में चल रही थी। वह समझ नहीं पा रही थी कि हाँ करे या ना। वैसे  कोई बड़ी बात नहीं थी। उसके सहकर्मी अनुज ने उसके सामने डिनर पर चलने का प्रस्ताव रखा था। यह पहली बार था जब उसे अपने बारे में कोई फैसला करना था। अब तक तो उसका जीवन दूसरों के बारे में सोचने में ही गुज़र गया। पिता के ना रहने पर परिवार क़ा बोझ उसके कन्धों पर आ गया। जब तक ज़िम्मेदारियाँ पूरी हुईं उम्र का एक हिस्सा गुजर चुका था। उसके पास उसकी सुध लेने वाला कोई नहीं था। वह एकदम अकेली थी। उसने अपने इर्द गिर्द एक मज़बूत दीवार सी खड़ी कर ली थी। कोई भी उस दीवार के पार झांक नहीं सकता था। उसने अपनी सारी भावनाओं को कुचल कर स्वयं को रुटीन में बंधी ज़िन्दगी के सुपुर्द कर दिया था। इस साल के एकेडेमिक सेसन की शुरुआत में अनुज ने स्कूल ज्वाइन किया। उसके आने से स्टाफ़रूम के माहौल में एक ताज़गी सी आ गई। उसका व्यक्तित्व बहुत आकर्षक था। सभी से खुल कर मिलना, हंस कर बात करना, सबके सुख दुःख में शामिल होना ये सारी बातें सब