सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

सितंबर, 2018 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

भीड़ से अलग

पापा का फोन आया देख मयंक समझ गया कि आज भी वही बातें सुनने को मिलेंगी। उसे मुंबई में संघर्ष करते पाँच साल हो गए थे। नौकरी के अच्छे अवसर को छोड़ कर वह यहाँ अपना सपना पूरा करने आया था। इस बीच उसके दोस्त और चचेरे भाई बहन अपने जीवन में व्यवस्थित हो गए थे। अतः उसके पापा को लगता था कि फिल्म लाइन में काम पाने के लिए वह जो संघर्ष कर रहा है वह महज़ समय की बर्बादी है। उसके हाथ कुछ नहीं आएगा। एक दिन वह किसी और नौकरी के लायक नहीं रह जाएगा। उसने फोन उठाया तो पापा ने बताया कि उसके एक और दोस्त की शादी हो रही है। बड़े दुखी मन से वह बोले। "हमारे नसीब में पता नहीं यह सुख है भी कि नहीं कि तुम्हें सेटेल होते देखें। तुम बताओ कि आखिर हमसे ऐसा कौन सा पाप हो गया जिससे तुम पर यह फितूर चढ़  गया।" मयंक कुछ नहीं बोल सका। उन्हें कैसे समझाता कि यह उसका फितूर नहीं बल्कि दुनिया की भीड़ से हट कर अपनी अलग पहचान बनाने की उसकी छटपटाहट है।

अपनी लड़ाई

रजनी ने लगभग सारी तैयारी कर ली थी। वह आखिरी बार उसका निरीक्षण कर रही थी। तभी उसकी माँ कमरे में आईं। "बिटिया नौकरी के लिए इतनी दूर जाना आवश्यक है क्या ? जब तक  मैं और तुम्हारे पापा ज़िंदा हैं तुम्हें फिक्र करने की क्या ज़रूरत है।" रजनी ने उन्हें बैठा कर प्यार से समझाया। "आप दोनों तो मेरी ताकत हैं। पर मम्मी हर एक को अपनी ज़िंदगी की लड़ाई खुद लड़नी चाहिए। आप लोगों ने मुझे इस लायक बनाया है।" उसने मेज़ पर रखी अपने स्वर्गीय पति की तस्वीर उठा कर बैग में रख ली। अब वह अपनी मंज़िल पर जाने को तैयार थी।

नौकरी

धीरे धीरे उम्र निकलती जा रही थी पर विवेक अभी तक बेरोज़गार था। शुरू से मेधावी रहे विवेक ने कॉलेज के बाद तय कर लिया था कि वह सरकारी नौकरी ही करेगा। इसलिए सरकारी नौकरी के लिए परीक्षाएं देता रहता था। किंतु परीक्षा परिणाम आने में बहुत समय लगता था। कभी कभी परीक्षा निरस्त भी हो जाती थी। परीक्षा पास कर भी ले तो साक्षात्कार में रह जाता था। लोगों ने समझाया कि सरकारी नौकरी की ज़िद छोड़ कर प्राइवेट सेक्टर में नौकरी कर ले। पर विवेक नहीं माना। अब एक नौकरी के लिए साक्षात्कार था। वह पूरे मन से तैयारी कर रहा था। तभी उसका दोस्त राजेंद्र आ गया। उसने बताया कि खबर है कि इस नौकरी के लिए लेनदेन कर पहले ही सेटिंग हो चुकी है। विवेक की उम्मीद चरमरा गई। पर फिर भी वह तैयारी में जुट गया।

कविता

स्नेहा को जब पता चला कि स्कूल मैगज़ीन में शिक्षक के ऊपर लिखी उसकी कविता की जगह रश्मी की कविता छप रही है तो वह चिढ़ गई। वह सीधा टंडन मैम के पास पहुँच गई जिन्होंने यह निर्णय लिया था। "मैम मैंने इतनी मेहनत कर दो पेज की कविता लिखी थी। सारिका मैम ने तो खूब तारीफ की थी। पर आपने रश्मी की केवल आठ लाइनों की कविता चुन ली। क्यों ??" टंडन मैम ने उसे प्यार से बैठाते हुए कहा। "बेटा कविता लंबी नहीं गहरी होनी चाहिए। तुमने अच्छा लिखा है। पर रश्मी ने कम शब्दों में दिल को छुआ है।"

निकट का लक्ष्य

बारहवीं कक्षा के अब कुछ ही महीने शेष थे पर विनय समझ नहीं पा रहा था कि वह किस दिशा में जाए। अपनी समस्या ले कर वह अपने चचेरे भाई के पास गया। उसकी बात सुन कर वह बोले। "देखो यह तो सही है कि तुम्हें कोई ना कोई राह चुननी पड़ेगी। यह चुनाव तुम्हें पहले कर लेना चाहिए था। किंतु अभी तो तुम्हारा सारा ध्यान निकट के लक्ष्य पर होना चाहिए।" "वो क्या भइया..." "सब कुछ बारहवीं के नतीजे पर निर्भर है। तुम अभी सारा ध्यान उधर लगाओ।" विनय को बात समझ आ गई। वह बारहवीं में अच्छे अंक लाने की तैयारी करने लगा।

डूबा हुआ शहर

दो दिनों से लगातार पानी बरस रहा था। चारों तरफ पानी ने त्राहि त्राहि मचा रखी थी। घर में पानी भर गया तो मरियम छत पर आकर मदद की राह देखने लगी। "हे प्रभू ये कैसी विपदा आ गई। मेहनत से संजोई हुई गृहस्ती बर्बाद हो गई। अब तो रहम करो।" तभी छत के ऊपर सेना का हैलीकॉप्टर मंडराता नज़र आया। प्रभू ने उसकी रक्षा के लिए दूत भेजे थे। वह हैलीकॉप्टर द्वारा लटकाई रस्सी पकड़े ऊपर जा रही थी। दूर तक शहर पानी के नीचे सोया हुआ था।  मरियम समझ नहीं पा रही थी। यह प्रकृति का क्रोध था या इंसानी लालच का परिणाम।