बहुत दिनों तक सोंचने के बाद आरूषि ने अपना फैसला अपनी माँ को सुनाया. वह आश्चर्यचकित रह गईं. उसकी माँ ने कुछ गुस्से में कहा "तुम आज के बच्चे कुछ सोंचते भी हो या नही. शादी नही करनी है ना सही. अब बच्चा गोद लेने की बात. अकेली कैसे पालोगी उसे." आरुषि शांत स्वर में बोली "मम्मी तुम जानती हो कि मैं बिना सोंचे कुछ नही करती. जहाँ तक अकेले पालने का सवाल है तो जीजा जी के ना रहने पर दीदी भी तो बच्चों को अकेले पाल रही है." "पर जरूरत क्या है." उसकी माँ ने विरोध किया. आरुषि ने समझाते हुए कहा "जरूरत है मम्मी. मुझे भी अपने जीवन में कोई चाहिए." "लोगों को क्या कहेंगे." उसकी माँ ने फिर अपनी बात कही. "वह मैं देख लूंगी." अपनी माँ के कुछ कहने से पहले ही वह कमरे से बाहर चली गई. आरुषि एक स्वावलंबी लड़की थी. वह शांत और गंभीर थी. अपने निर्णय स्वयं लेती थी. उसने निश्चय किया था कि वह अविवाहित रहेगी. इसलिए दबाव के बावजूद भी उसने अपना निर्णय नही बदला. लेकिन अब वह अपने आस पास कोई ऐसा चाहती थी जिसे वह अपना कह सके. एक बच्चा जिसे वह प्यार दे सके. वह ऐसा बच्चा
सामंजस्य निर्मला ऑनलाइन हिंदी की क्लास में सामंजस्य शब्द का अर्थ समझा रही थी। "बच्चों सामंजस्य का मतलब होता है तालमेल बिठाना। मतलब अपने आसपास के वातावरण व लोगों के साथ इस प्रकार संबंध बनाना कि हम और हमारे आसपास सभी शांति से रह सकें।" एक बच्चे ने पूछा, "मैम पाठ में कहा गया है कि पर्यावरण से सामंजस्य बनाए रखना चाहिए। इसका क्या मतलब है ?" निर्मला ने समझाया, "बेटा इसका मतलब है कि हमारे आसपास पेड़ पौधे और अनेक प्रकार के जीव जंतु हैं। हम सभी प्राणियों में सबसे श्रेष्ठ हैं। इसलिए हमारा कर्तव्य है कि हम पर्यावरण की रक्षा करें जिससे बाकी के प्राणी भी धरती पर रह सकें।" अभी उसने अपना जवाब खत्म ही किया था कि उसके कानों में अपनी बेटी के चिल्लाने की आवाज़ सुनाई पड़ी। वह उठकर बेटी के पास भागी। उसने देखा कि उसके कमरे में एक बंदर घुस गया है। उससे डर कर उसकी बेटी कोने में दुबकी चिल्ला रही थी। निर्मला भाग कर बाथरूम से वाइपर ले आई। उसने बंदर को भगा दिया। दरवाज़ा बंद करके वह क्लास लेने के लिए वापस आ गई। बच्चों ने पूछा कि क्या हो गया था तो उसने कहा कि बंदरों ने उत्पात मचा रखा