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अप्रैल, 2017 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

अंधियारा

बेटा दादी के चरण छूकर आशीर्वाद ले लो। मदन ने अपने बेटे से कहा। दादी ने आशीर्वाद दिया फिर बेटे से बोली "क्या फायदा भाग दौड़ का जब इसके भाग्य में ही अंधियारा लिखा है। तुम क्या भाग्य बदल दोगे।" "कैसी बातें करती हो अम्मा। हम किसान हैं। जमीन जोत कर बीज बोते हैं। फिर चाहें फसल अच्छी हो या खराब। हम कर्म तो करते ही हैं ना।" मदन ने अपनी माँ को समझाया फिर अपने बेटे से बोला "वह नेत्रहीनों का विशेष स्कूल है। देखना तेरी मेहनत सारे अंधियारे मिटा देगी।"

नेग

एक तेज़ रूदन ने नई ज़िंदगी के आगमन का उद्घोष किया। शुभ समाचार सुनाने के लिए नर्स भाग कर कॉरिडोर में आई और बेचैनी से बाहर टहलते हुए पिता से बोली "मुबारक हो आप पापा बन गए। हमारा भी मुंह मीठा होना चाहिए।" कह कर वह उम्मीद में वहीं खड़ी रही।  उसने अपनी जेब से पैसे निकाल कर उसे पकड़ा दिए। अभी उसे अस्पताल का मोटा बिल भी भरना था।

हमदम

हाथ में मोगरे का गजरा लिए हुए मैं पैंतालिस साल पीछे चला गया। मेरी उम्र अभी बाइस साल ही थी। बैंक में नौकरी करते कुछ ही महीने हुए थे। जवानी के आकाश में मैंने पर फैलाने आरंभ ही किए थे कि माता पिता को यह डर सताने लगा कि मैं कहीं बहक ना जाऊँ। इसलिए उन्होंने मेरी शादी के लिए कोशिशें तेज़ कर दीं। जल्द ही उन्हें एक अच्छा रिश्ता भी मिल गया। उम्र में मुझसे दो साल छोटी जया से मेरा विवाह हो गया। ऐसा नही था कि विवाह मेरी मर्ज़ी के बिना मुझ पर थोप दिया गया था। ना ही मेरा किसी से प्रेम संबंध था और ना ही विवाह से मुझे कोई परहेज़ था। हाँ यह अवश्य चाहता था कि घरवाले कुछ दिन ठहर जाते। लेकिन जो हुआ उसे मैंने भी स्वीकार कर लिया। विवाह की पहली रात हम दोनों ही नर्वस थे। मैं पहली बार इस प्रकार किसी स्त्री के साथ था। बातचीत की पहल करने के लिए मैंने एक उपहार खरीदा था। मोगरे के फूलों का गजरा। धीरे से मैंने वह गजरा जया को दे दिया। मुझे उम्मीद नही थी कि जया भी मुझे कुछ देगी। लेकिन मै गलत साबित हुआ। जया ने भी कागज़ में लिपटा एक तोहफा मेरी तरफ बढ़ा दिया। मैंने देखा तो वह जयशंकर प्रसाद की 'कामायनी' थी

थपेड़े

राजू से कुछ ही दूर फुटपाथ पर कुछ और लोग भी बैठे थे। उनकी तरह उसका भी इस शहर में कोई आशियाना नहीं था।  आज ही वह अपने गांव से भाग कर यहाँ आया था। उसकी बिरादरी के एक आदमी ने बड़े लोगों का कुआं खराब कर दिया था। इसकी सजा सबको भुगतनी पड़ी। उसकी मड़ैया और बूढ़ी दादी इसकी भेंट चढ़ गए।  पूरे दिन शहर का सम्मोहन उसे आकर्षित करता रहा। सड़क पर दौड़ती गाड़ियां, रंग बिरंगे परिधानों में सजे लोग, ऊंची इमारतें सभी ने मिल कर उसके इर्द गिर्द एक स्वपन संसार का निर्माण कर दिया था। लेकिन भूख की हकीकत अब उसे सपनों की दुनिया से वापस ले आई थी। वैसे यह सच्चाई तो लगभग रोज़ ही सुरसा की तरह मुंह फाड़ कर खड़ी हो जाती थी। लेकिन तब कम से कम दादी से खाने के लिए मांग तो सकता था। लेकिन अब तो कोई भी नहीं था। उससे कुछ दूरी पर बैठा एक लड़का दिन भर के बाद कुछ खाने बैठा था। राजू एकटक उसे देख रहा था। दोनों की नज़रें मिलीं तो राजू तुरंत दूसरी तरफ देखने लगा। कुछ देर में उसने अपने कंधे पर एक हाथ महसूस किया। राजू ने देखा वही लड़का था। वह उसके बगल में बैठ गया और खाने का एक हिस्सा राजू की तरफ बढ़ा दिया। खाना खाकर राजू अपने आपको जीव

साख

बरामदे में आराम कुर्सी पर बैठे निरंजन बहुत सुकून महसूस कर रहे थे। आज से इतने सालों की भागम भाग खत्म। अब वह रिटायर्ड जीवन जिएंगे। रोज़ सुबह सैर के लिए जाएंगे, किताबें पढ़ेंगे तथा बागबानी का शौक पूरा करेंगे। आज विदाई समारोह में उनका कितना सम्मान हुआ। सभी ने उनकी ईमानदारी की प्रशंसा की। वह बहुत गौरवान्वित महसूस कर रहे थे। पूरी सर्विस के दौरान उन्होंने इस बात का खयाल रखा कि कोई भी उन पर उंगली ना उठा सके। अपने बेदाग कैरियर पर उन्हें अभिमान था। वह जब भीतर आए तो पत्नी की आवाज़ सुन कर दरवाज़े पर ही ठिठक गए। वह बेटे से कह रही थी। "अब तो तुम्हारे पापा रिटायर हो गए। पेंशन से घर कैसे चलेगा।" "पापा जिस पद पर थे चाहते तो हमारे लिए क्या नही कर सकते थे। कुछ नही तो मेरी नौकरी के लिए ही सिफारिश कर सकते थे। लेकिन उन्हें तो ईमानदारी हमसे ज्यादा प्रिय थी।" बेटे ने शिकायती लहजे में कहा। इस बात को सुन कर निरंजन कुछ देर के लिए सकते में आ गए। लेकिन अपनी ईमानदारी पर उन्हें अब भी नाज़ था।

मुसाफिर

कल रात अचानक ही बंसल साहब का निधन हो गया। मोहल्ले में जब यह समाचार फैला तो लोग उन्हें अंतिम विदाई देने उनके घर पर एकत्र हुए। अर्थी निकलने की तैयारी हो रही थी। मोहल्ले के दो बुज़र्ग खन्ना जी और पांडे जी बाहर बैठे बात कर रहे थे। "अरे यह तो सबके साथ होना है। हम सब तो मुसाफिर हैं। ना जाने कब स्टेशन आ जाए और उतरना पड़े।" पांडे जी ने दार्शनिक अंदाज़ में कहा। "सही कहा पांडे जी। लेकिन तब भी इंसान माया में फंसा रहता है।" "सुना है बंसल किसी केस में फंसा था। पेंशन अटकी हुई थी।" "अजी जुगाड़ू बंदा था। ऊपर तक पहुँच थी। सब क्लियर हो गया।" खन्ना जी ने रहस्य खोला। "क्या लाभ ऐसे पैसे का। मरने पर इकलौता बेटा भी साथ नही है।"  "सही कहा पांडे जी। अब बेचारी मिसेज बंसल अकेली पड़ गईं।" "अब यह तो सबके साथ है। इस उम्र में जीवनसाथी का ही सहारा होता है।" "बिल्कुल सही। भाभी जी कैसी हैं।" "बेटे बहू के लिए हुड़कती रहती हैं।" "तो शेखर के पास क्यों नही चले जाते।" "उनकी अपनी जिंदगी है। दोनों वर्किंग हैं। वहाँ भी दिन

बंटी दादा

बंटी और दीपू उस बड़े से मकान के पीछे खड़े थे। चाहरदिवारी के पास ही आम का एक पेड़ लगा था। दीवार पर चढ़ कर आसानी से आम तोड़े जा सकते थे। बंटी ने दीपू से कहा "मैं तुम्हें अपने कंधे पर बैठा लूँगा। तुम तुम मेरे कंधे पर खड़े होकर आसानी से दीवार पर चढ़ सकते हो। फिर तुम आम तोड़ कर मुझे देना। दोनों मिल कर खाएंगे।" "पर मैं नीचे कैसे उतरूँगा। कहीं कोई आ गया तो।" पाँच साल के दीपू ने मासूमियत से पूंछा। "जैसे ही कोई आएगा मैं तुम्हें उतार लूँगा। क्या मुझ पर भरोसा नही है।" दीपू के लिए उसका बंटी दादा किसी हीरो से कम नही था। जब 'छोटा है' कह कर मोहल्ले के बच्चों ने उसे साथ खिलाने से मना कर दिया था। तब बंटी दादा ने ही अपना प्रभाव दिखा कर उसे टीम में शामिल करवाया था। तब से वह उनका मुरीद था। दीपू फौरन दीवार पर चढ़ने को तैयार हो गया। अभी उसने आम की तरफ हाथ बढ़ाया ही था कि चौकीदार चिल्लाया "कौन बदमाश है। ठहर अभी मज़ा चखाता हूँ।" दीपू ने पीछे मुड़ कर देखा। आवाज़ सुनते ही बंटी दादा भाग लिए थे। चौकीदार उसे डांट रहा था। वह डरा हुआ था। तभी एक स्नेहिल स्वर सुन

तलाश

आइने में अपनी शक्ल देखते हुए वह खुद की पहचान तलाश रहा था। कई दिनों से वह इसी प्रकार देर तक अपने आप को आइने में देखता रहता था। अस्पताल वालों का कहना था कि दो महीने पहले वह पुलिस को घायल अवस्था में मिला था। गंभीर रूप से घायल था। उसका बच जाना किसी चमत्कार से कम नही था। पुलिस भी उसके बारे में पता लगाने की कोशिश कर रही थी। कई चेहरे उसके ज़ेहन में उभरते हैं। लगता है जैसे उनसे गहरा संबंध है। बस अभी उनका नाम पुकारने लगेगा। लेकिन अचानक ही सब किसी अंधेरे में खो जाता है। वह अकेला रह जाता है कई अनजान चेहरों की भीड़ में।

छोटी सी बात

कैलाश समझ नही पा रहे थे कि उनकी जीवन संगिनी वृंदा इतनी चुप क्यों है। सुबह से कितनी बार पूँछ चुके पर कुछ बोलती ही नही है। चालीस साल से दोनों एक दूसरे के सुख दुख के साथी रहे थे। कभी एक दूसरे से कुछ नही छिपाया। आज वृंदा की खामोशी उन्हें परेशान कर रही थी। वह उनकी चुप्पी के कारण का अनुमान लगाने की कोशिश कर रहे थे। सोच रहे थे कि पिछले एक दो दिन में उनसे ही कोई भूल तो नही हुई। लेकिन कुछ भी समझ नही आ रहा था। आखिरकार वह वृंदा के पास गए। "यह क्या सुबह से मुंह फुलाए बैठी हो। मुझसे कोई गलती हुई हो तो बताओ। मुझसे यह खामोशी बर्दाश्त नही हो रही है।" वृंदा ने तिरछी नज़रों से उनकी तरफ देखा। "बस कुछ ही घंटों में परेशान हो गए। तुम जो पिछले कुछ दिनों से मुझसे बात छिपा रहे हो। मुझे तकलीफ़ नही होती तुम्हारी परेशानी से।" कैलाश समझ गए। बच्चों को याद कर थोड़ा उदास हो गए थे। "अरे वह तो छोटी सी बात थी।" "जो भी थी। अगर हम एक दूसरे को मन की बात नही बताएंगे तो किसे बताएंगे।" वृंदा ने नाराज़गी दिखाई। कैलाश ने अपनी गलती मान ली। दोनों कानों को पकड़ कर बोले "माफ कर

आइसक्रीम

स्कूल की छुट्टी के बाद छात्रों का एक दल बाहर खड़े आइसक्रीम के ठेले पर जमा हो गया। सभी ने अपनी अपनी पसंद की आइसक्रीम खरीदी। फैज़ान का नंबर आया तो आइसक्रीम वाले ने पूंछा "कौन सी दूँ।" वह लड़का लगभग फैज़ान की उम्र का ही था। उसने कहा "तुम्हें कौन सी आइसक्रीम पसंद है।" "मैं आइसक्रीम बेचता हूँ। खाने के पैसे नही हैं मेरे पास।" लड़के ने रूखे स्वर में कहा। "अच्छा एक चॉकोबार दे दो।"  फैज़ान जब लौट कर अपने दोस्तों के बीच गया तो उन्होंने पूंछा "अरे तुमने नही खरीदी आइसक्रीम। "नही अम्मी कहती हैं कि आइसक्रीम खाने से दांत खराब होते हैं।" खुशी मन वह घर की तरफ चल दिया।

ईनाम

मंत्री महोदया के कमरे में बहुत देर से कोई मीटिंग चल रही थी। बाहर उनका पीए पलाश परेशान टहल रहा था। डॉक्टर के हिसाब से मैडम के लिए समय पर दवा लेना ज़रूरी है। पता नही मीटिंग कब तक चले। इतने दिनों से साथ काम करने के कारण मैडम के प्रति एक लगाव सा हो गया था। इसलिए उनकी हर बात का वह ध्यान रखता था। जब नही रहा गया तो दरवाज़ा खटखटा कर अंदर चला गया। "माफ कीजिएगा। लेकिन आपके दवा लेने का समय हो गया था।" दवा और पानी रख कर वह वापस आ गया। "विपक्ष को एक अच्छा मौका हाथ लग गया है। आसानी से नही छोड़ेंगे।" उनके मंत्रालय के एक उच्च अधिकारी ने कहा। जब से पलाश दवा दे कर गया था मंत्री महोदया कुछ सोच रही थीं। एक निर्णय कर उन्होंने कहा "मैं सब संभाल लूंगी। आप जाएं।" अधिकारी के जाने के बाद उन्होंने पलाश को बुलाया। उसके घर परिवार के बारे में पूंछने लगीं। "तुम्हारी माँ का ऑपरेशन होना था ना।" "जी वह पैसे के इंतज़ाम में देर हो रही है।" "देर मत करो। जाकर उन्हें यहाँ ले आओ। मैं इंतज़ाम करवा देती हूँ।" पलाश अपनी माँ को लेने गांव चला गया।  अगले दिन सभी न्यूज़ च

रिटर्न

सुबह सुबह ही विकास बाबू के घर एक आदमी मिलने आया। उसने पॉलीथीन बैग में रखा एक पैकेट उन्हें थमा दिया। अपनी तसल्ली कर लेने के बाद विकास बाबू आश्वासन देते हुए बोले "आप इत्मिनान रखें। काम हो जाएगा।" आश्वस्त होकर वह व्यक्ति चला गया। पास बैठे विकास बाबू के चचेरे भाई ने उनकी तरफ सवालिया दृष्टि डाली। "यह रिटर्न है।" विकास बाबू हंसे।  फिर समझाते हुए बोले "जब कहीं पैसा इन्वेस्ट करते हो तो ब्याज मिलता है। मैंने भी यह पोस्टिंग पाने के लिए इन्वेस्ट किया है।"

दोष

पार्टी में जो कुछ हुआ उसने यामिनी को बहुत आहत किया था। रमन को बहुत सभ्य समझती थीं। वह। इसीलिए उससे खुल कर बातें करती थी। लेकिन आज पार्टी में डांस के बहाने उसने जो कुछ किया वह अप्रत्याशित था। अपने आहत मन को शांत करने के लिए उसने विपुल के कंधे पर सर रख दिया। अपने जीवनसाथी से उसे उम्मीद थी कि वह उसके घाव पर मरहम लगाएगा। विपुल उठ कर खड़ा हो गया। यामिनी ने प्रश्न भरी दृष्टि उस पर डाली। "तुम्हीं ने उसे इतना बढ़ावा दिया था। अगर तुम अपनी सीमा में रहतीं तो ऐसा ना होता। इस कुठाराघात से यामिनी जैसे पाषाण बन गई।