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अंतिम इच्छा

अस्पताल के कॉरिडोर में  कुर्सी पर बैठी मिसेज बाजपेई छत को ताक रही थीं। अपने बेटे के शब्द उनके कान में गूँज रहे थे " माँ मैं ऐसा कुछ करना चाहता हूँ जिससे समाज का भला हो। जिसके द्वारा मरने के बाद भी मैं किसी न किसी रूप में ज़िंदा रहूँ। " किंतु जिस बेटे को मुसीबतें झेल कर पाला था वह २५ वर्ष की उम्र में ही सड़क हादसे का शिकार हो गया।  कुछ क्षणों पहले ही डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया। अपने बेटे की इच्छा पूरी करने के लिए वो उठीं और डाक्टर को अपना फैसला बताया। उनका बेटा अब दूसरों को जीवन देगा। अपनी मृत्यु के बाद भी जीवित रहेगा।  

परवाज़

मिसेज़ सेठ ने उसे उसका कमरा दिखाया। गायत्री ने कमरे को ध्यान से देखा। कमरे में एक बेड, एक अलमारी और एक राइटिंग डेस्क थी। कमरे की खिड़की घर के गार्डन में खुलती थी। ताज़ी हवा के साथ साथ अच्छा नज़ारा भी मिल रहा था। मिसेज़ सेठ जाते हुए बोल गईं कि नौ बजे तक ब्रेकफ़ास्ट के लिए नीचे आ जाना। गायत्री खिड़की पर आकर खड़ी हो गई। आज से उसकी ज़िंदगी की नई शुरुआत हो रही थी। अब वह अपने दम पर अपनी शर्तों के हिसाब से जियेगी। जब पहली बार उसने माँ को अपना निर्णय सुनाया तो उन्होंने इसका विरोध किया। " ये कैसी बात कर रही हो तुम । कहीं पति पत्नी का रिश्ता भी टूटता है। पागल मत बन। धैर्य रख समय के साथ सब ठीक हो जायेगा। " माँ ने उसे समझाया उसने एक प्रश्न भरी नज़र  माँ पर डाली " तुमने भी तो पैंतीस वर्ष धैर्य रखा न, क्या मिला। समय के साथ कुछ नहीं बदला बस तुमने सब कुछ चुपचाप सहने की आदत डाल ली है। " माँ कुछ बोल नहीं पाईं। उन्होंने बस सजल नेत्रों से गायत्री को देखा। गायत्री उनका दिल नहीं दुखना चाहती थी। उसे अपनी गलती का आभास हुआ।  वह बोली " सॉरी माँ मैंने तुम्हारा दिल दुखाया।  लेकिन अब और नही