पार्वती घर के आँगन में घुटनों में सर छुपाये बैठी थी। सांझ ढल चुकी थी। दीया बाती का समय हो गया था किन्तु वह अँधेरे में बैठी थी। बाहर से ज़्यादा अँधेरा उसके भीतर था। वह चिंता में थी कि अब अपने तीन बच्चों को कैसे पालेगी। अब गुजारा करना मुश्किल हो गया है। उसे घर की देहलीज़ लांघ कर मेहनत मजूरी करनी पड़ेगी। घर में दो कमाऊ मर्द थे। एक उसका पति तेजा और दूसरा उसका देवर जंगी। पर वो रात उसके जीवन में सदा के लिए अँधेरा कर गई। आज सोंचती है तो अफ़सोस करती है अगर वह खुद को काबू में कर लेती तो ऐसा न होता। तेजा और जंगी दिन भर मेहनत कर के लौटे थे। उसने दोनों की थाली परोस दी। सालन में नमक कुछ अधिक पड़ गया था। पहला कौर खाते ही तेजा ने थूंक दिया। गुस्से में पार्वती को गालियाँ बकने लगा। पार्वती ने भी दो चार खरी खोटी सुना दी। क्रोध में पागल तेजा ने उसे पीट दिया और पैर पटकता हुआ घर से निकल गया। जंगी भी अपने भाई को मनाने के लिए उसके पीछे भागा। रात भर दोनों नहीं लौटे। पार्वती ने सुबह तक इंतज़ार किया। पौ फटते ही दोनों की तलाश में निकल पड़ी। खोजते खोजते पहाड़ी पर जंगी मिला। बौराया हुआ सा था। जब उसने तेजा के
नमस्ते मेरे Blog 'कथा संसार' में आपका स्वागत है। यह कहानियां मेरे अंतर्मन की अभिव्यक्ति हैं। मेरे मन की सीपी में विकसित मोती हैं।