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अगस्त, 2013 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

हादसा

पार्वती घर के आँगन में घुटनों में सर छुपाये बैठी थी। सांझ ढल चुकी थी। दीया बाती  का समय हो गया था किन्तु वह अँधेरे में बैठी थी। बाहर से ज़्यादा अँधेरा उसके भीतर था। वह चिंता में थी कि अब अपने तीन बच्चों को कैसे पालेगी। अब गुजारा करना मुश्किल हो गया है। उसे घर की देहलीज़ लांघ कर मेहनत मजूरी करनी पड़ेगी। घर में दो कमाऊ मर्द थे। एक उसका पति तेजा और दूसरा उसका देवर जंगी। पर वो रात उसके जीवन में सदा के लिए अँधेरा कर गई। आज सोंचती है तो अफ़सोस करती है अगर वह खुद को काबू में कर लेती तो ऐसा न होता। तेजा और जंगी दिन भर मेहनत कर के लौटे थे। उसने दोनों की थाली परोस दी। सालन में नमक कुछ अधिक पड़ गया था।  पहला कौर खाते ही तेजा ने थूंक दिया। गुस्से में पार्वती को गालियाँ बकने लगा। पार्वती ने भी दो चार खरी खोटी सुना दी। क्रोध में पागल तेजा ने उसे पीट दिया और पैर पटकता हुआ घर से  निकल गया। जंगी भी अपने भाई को मनाने के लिए उसके पीछे भागा। रात भर दोनों नहीं लौटे। पार्वती ने सुबह तक इंतज़ार किया। पौ फटते ही दोनों की तलाश में निकल पड़ी। खोजते खोजते पहाड़ी पर जंगी मिला। बौराया हुआ सा था। जब उसने तेजा के

चंदा ओ चंदा

कर तेज़ी से हाईवे पर भाग  रही थी। मैं कार की खिड़की के बाहर देख रहा था। आज एक अरसे के बाद  मैं अपने घर जहाँ मेरा बचपन बीता था जा रहा था। ज़िंदगी की मसरुफियतों में कुछ इस  कदर उलझ गया था कि जीवन का एक बड़ा हिस्सा, जो मुझसे जुड़ा था पिछले कई सालों से अनदेखा रह गया था। अचानक मेरी नज़र पूनम के चाँद पर पड़ी। चाँदनी में नहाया हुआ चाँद चाँदी की थाली जैसा लग रहा था। ऐसा प्रतीत हो रहा था कि जैसे वो मेरे साथ साथ ही चल रहा हो। जैसे बिछड़ा हुआ कोई मित्र हो जो बरसों के बाद मिलने पर खुशी से मेरे पीछे पीछे चल रहा हो। चाँद से मेरा बचपन का नाता है। इसकी शुरुआत तब हुई जब मैं एक छोटा सा बालक था। अम्मा मुझे अपनी गोद में बिठाकर खिलाती थीं। उस वक़्त वो एक गीत गाती थीं। चंदा मामा दूर के …पुए पकाएं बूर के … वो मुझे चाँद के झिंगोले की कहानी भी सुनाती थीं। एक बार चाँद ने अपनी माँ से अपने लिए एक झिंगोला सिलाने को कहा लेकिन उसके घटते बढ़ते आकर के कारण उसकी नाप का झिंगोला नहीं सिल पाया। अम्मा ने मुझे यह भी बताया कि चाँद पर बैठी एक बुढ़िया चरखा चला रही है। चाँद पर दिखने वाले काले धब्बे उसी बुढ़िया  के कारण हैं।

रक्षा सूत्र

सरहद पर स्थित आर्मी पोस्ट में सभी फौजियों में कौतुहल था। एक पत्र सभी के आकर्षण का केंद्र बना था। यह पत्र किसी ख़ास फौजी के लिए नहीं वरन सरहद पर तैनात सभी फौजी भाइयों के लिए था। एक फौजी ने पत्र खोला और सभी सुनने के लिये घेरा बनाकर बैठ गए। फौजी ने पत्र पढ़ना आरम्भ किया फौजी भाइयों प्रणाम, इस विशाल परिवार हिन्दुस्तान, जिसकी सीमाओं की हिफाज़त में आप सभी कठिन परिस्तिथियों में भी तैनात हैं,  मैं उसकी एक छोटी सी सदस्य हूँ।  राखी का पर्व आने वाला है। अतः आपकी छोटी बहन आपके लिए ये रक्षा सूत्र भेज रही है। मैं नहीं जानती कि जब आधुनिक हथियारों से लैस उपद्रवी घात लगा कर हमला करेंगे तो  यह आपकी हिफाज़त कर सकेगा या नहीं। परन्तु यह डोर है उस प्रेम, आस्था और विश्वास की जिससे हम सब बंधे हैं। यह एक एहसास है इस बात का कि अपने घरों में बैठे बहुत से लोग आपके बारे में फ़िक्रमंद हैं। आप सब जो कठिनाईयां उठा कर हमारी रक्षा में लगे हैं, उसके लिए कई मस्तक श्रद्धा से नत होते हैं। जब आप में से किसी को क्षति पहुँचती है तो कई आँखें नम हो जाती हैं। यह धागा उसी श्रद्धा एवं प्रेम का प्रतीक है। यह कुछ और करे न करे