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मौन आक्रोश

पोलिंग बूथ में लाइन में लगा मुन्ना अपनी बारी आने की प्रतीक्षा कर रहा था। मन में एक उथल पुथल मची थी। बढ़ती महंगाई ने उसकी कमर तोड़ कर रख दी थी। पढ़ा लिखा बेटा बेरोज़गार था। जवान बेटी जब कॉलेज के लिए निकलती थी तो मन में डर रहता था कि सुरक्षित आएगी या नहीं। इन सबके बीच आज वह वोट डालने आया था। अपनी बारी आने पर भीतर गया। दस्तखत कर उंगली पर निशान लगवाया। फिर वोटिंग मशीन की तरफ चला गया। कौन सा बटन दबाना है वह पहले ही तय कर चुका था। इतने सालों के अनुभव ने बता दिया था कि सत्ता मिलने पर सभी उसके मद में डूब जाते हैं। उसने नोटा दबा दिया।

दस्तक

मनीषा बहुत देर से अपने कमरे में बैठी योजना बना रही थी कि भतीजी के  मुंडन की पार्टी में क्या क्या होना चाहिए। अभी तक उसे लगता था कि भाई और उसकी पत्नी को दुनियादारी का अनुभव नहीं है। अतः अभी भी हर काम का दायित्व उस पर ही है। हलांकि उसकी सहेली अचला ने कई बार समझाया था कि यह तुम्हारी भूल है। उन्हें उनकी ज़िंदगी जीने दो। तुमने भाई को उसके पैरों पर खड़ा कर अपना दायित्व पूरा कर लिया। अब उसे खुद सब करने दो। तुम अब अपने जीवन पर ध्यान दो। लेकिन मनीषा मानती ही नहीं थी। वह अपनी योजना बताने भाई के कमरे की तरफ बढ़ी। दस्तक देने ही जा रही थी कि भाभी की आवाज़ सुनाई पड़ी। "परी के मुंडन में जो होना है वह मेरी पसंद का होगा। तुम दीदी को समझा देना। बेवजह दखल ना दें।" मनीषा ने अपना हाथ रोक लिया। कुछ पल चुप रहने के बाद मुस्कुराई। एक जबरन ओढ़े गए बोझ से उसे छुट्टी मिल गई थी।

सच्ची पूजा

ह्रदय बाबू करीब साल भर बाद इस मंदिर में आए थे। जब भी उनके जीवन में किसी चीज़ की आवश्यक्ता होती थी तो वह इसी मंदिर में आकर देवी से उसके लिए प्रार्थना करते थे। ह्रदय बाबू पूजा का सामान लेने दुकान पर गए तो दुकानदार को देख चौंक गए। वह सरजू था। पहले छोटी सी टोकरी में रख कर मंदिर के बाहर फूल बेचता था। "ये तुम्हारी दुकान है सरजू ?" "हाँ बाबूजी इस नवरात्री के पहले दिन ही उद्घाटन किया है।" "वाह इतनी जल्दी तरक्की कर ली। कोई पूजा वगैरह करवाई थी क्या ?" "बाबूजी हम बहुत पढ़े लिखे तो हैं नहीं पर मंदिर की दीवार पर लिखा है कर्म ही पूजा है। हमने वही पूजा की है।" ह्रदय बाबू सोंच रहे थे कि मंदिर से सबसे बड़ा ज्ञान तो सरजू ने लिया है।

प्रतीक्षा

रीमा सामने बैठे सचिन को ताक रही थी। अचानक सचिन की निगाह पड़ी तो आँखों ही आँखों में उसने पूँछा 'ऐसे क्यों ताक रही हो?' रीमा ने अपनी आँखें झुका लीं। तभी अंदर जाने का बुलावा आया। भीतर पहुँच कर दोनों ने रजिस्ट्रार के सामने दस्तखत किए। गवाहों ने भी दस्तखत किए। दोनों ने एक दूसरे को फूलों की माला पहनाई। आज सचिन का पंद्रह साल का इंतज़ार खत्म हो रहा था। यह पंद्रह साल उसने बिना किसी शिकायत के अकेलेपन में बिताए थे। ताकि रीमा अपने पारिवारिक दायित्वों से मुक्त हो सके।