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जुलाई, 2015 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

अब्दुल बाबा

राजू अपने पिता के काम में हाथ बटा रहा था। उनका सड़क के किनारे ये छोटा सा ढाबा है। इसी के सहारे उनका परिवार चलता है और राजू और उसकी बहन की पढ़ाई भी। रोज़ शाम कुछ घंटे वह यहाँ अपने पिता की मदद करता है। फिर घर जाकर देर रात तक पढाई। सुबह स्कूल जाने से पहले वह घरों में दूध डबल रोटी अंडे आदि पहुँचाने का काम करता है। अपना काम निपटा कर जब वह घर लौटा तो दरवाजे पर ही उसकी बहन ने यह दुःखद समाचार सुनाया 'अब्दुल बाबा नहीं रहे ' उसने ना कुछ खाया ना पिया। रात को पढ़ भी नहीं सका। सिर्फ उनके चित्र को देख कर रोता रहा। उन दिनों जब वह यह सोंच कर उदास रहता था कि वह गरीब है और कुछ नहीं कर सकता तब अब्दुल बाबा से ही उसे प्रेरणा मिली। कैसे अखबार बांटने वाला एक साधारण लड़का इतना बड़ा वैज्ञानिक बन गया। इतने बड़े जनतंत्र का राष्ट्रपति बन गया। उस व्यक्तित्व ने उसे इतना प्रेरित किया कि वह ना जाने कब अब्दुल बाबा बन गए। भोर हो रही थी और राजू के भीतर कहीं एक दृढ निश्चय उदित हो रहा था। ज़मींदोज़ होना या चिता में जलना तो जिस्म की नियति है। विचार तो अमर होते हैं। सत्कर्म ध्रुव तारे की भांति सदा लोगों को राह दिखाते है

रानी बिटिया

आखिर वो दिन आ ही गया जिसका सपना मैं वर्षों से देख रहा था। जब पहली बार मैंने उसे अपनी गोद में उठाया था तब से ही मैं उसे इस रूप में देखना चाहता था । जब उसका जन्म हुआ था परिवार में बहुतों के चेहरे मुर्झा गए थे। किन्तु मुझे बहुत ख़ुशी हुई थी। पता नहीं जब उसे इस रूप में देखूँगा तो ख़ुद को संभाल पाऊँगा या नहीं। ख़ुशी के साथ साथ एक घबराहट भी है। मुझसे दूर जा रही है। पता नहीं कब उसे देख पाऊँगा। वह  आ कर मेरे सामने खड़ी हो गई। मेरी आँखों से आंसू छलक पड़े। वह बहुत सुंदर दिख रही थी। पुलिस ऑफिसर की वर्दी उस पर खूब फ़ब  रही थी। मैंने उसे आने वाले जीवन के लिए आशीर्वाद दिया। http://www.tumbhi.com/writing/short-stories/rani-bitiya/ashish-trivedi/60085#.VZymUEamyIA.facebook