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जून, 2018 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

मैं भी एक दिन

रोज़ की तरह चेतन हवाई अड्डे के पास बनी टी स्टॉल पर चाय पीते हुए वहाँ काम करने वाले गुड्डू से बात कर रहा था। एक हवाई जहाज ऊपर से उड़ा तो गुड्डू बड़े चाव से उसे देखने लगा।  चेतन ने उससे पूँछा। "यहाँ तो दिन में कई बार हवाई जहाज निकलते हैं। फिर तुम हर बार इतने चाव से क्या देखते हो?" "वो भइया मैं सोंचता हूँ कि जहाज में बैठे लोगों में से कोई ऐसा भी होगा जो कभी मेरी तरह गरीब रहा होगा।" कहते हुए उसकी आँखों में चमक आ गई।  "शायद एक दिन मैं भी....."

इमरती

बीना छोटी सी बात को लेकर रूठ गई थी। उसे मनाने के लिए उसके पति उसकी पसंदीदा इमरती लेकर आया। पैकेट टेबल पर रख वह बीना से मनुहार करने लगा कि नाराज़गी छोड़ कर गर्मा गर्म इमरती खा ले। लेकिन वह टस से मस नहीं हुई। हार कर वह अपना मोबाइल लेकर बैठ गया। सामने टेबल पर इमरती का पैकेट था। बीना कभी उसे देखती कभी अपने पति को। लेकिन वह अपने फोन में व्यस्त था। दरवाज़ा खुला था। अचानक एक बंदर भीतर घुस आया। तेज़ी से इमरती के पैकेट पर झपटा और उसे लेकर भाग गया। बीना सिर्फ चिल्लाती रह गई। "हाय बंदर मेरी इमरती ले गया।"

ठिकाना

घर के बागीचे में चाय पीते हुए विमला ने अपने जेठ से कहा। "देखिए भइया हमने कितने चाव से घर बनाया था। अब दोनों बच्चे बाहर हैं। वहीं अपना ठिकाना बना लेंगे। क्या लाभ इस घर का।" उसके पति ने भी उसका समर्थन किया।  विमला के जेठ ने हंस कर कहा। "चिड़िया अपना घोंसला अंडे सेने के लिए बनाती है। फिर उसमें से बच्चे निकलते हैं। एक दिन उनके पंखों में आसमान छूने की ताकत आ जाती है। तब चिड़िया उन्हें घोंसले में कैद नहीं करती है।" विमला और उसके पति बात का अर्थ समझ गए।

पलटू

रंजन की गुप्ता जी पर नज़र पड़ी। उनके बेटे ने फाइव स्टार होटल की अच्छी खासी नौकरी छोड़ कर अपना रेस्टोरेंट खोलने का निश्चय किया था। इस बात से गुप्ता जी नाराज़ थे। मुंह देखी बात करने के आदी रंजन ने उन्हें देखते ही संवेदना दिखानी शुरू कर दी। "अब क्या कहा जाए आज की पीढ़ी को। सोंचने विचारने की तो ज़रूरत ही नहीं समझते। हर समय हवा में किले बनाते रहते हैं।" रंजन की बात सुनते ही गुप्ता जी अपने बेटे के बचाव में आ गए। "मैं शुरुआत में उसके फैसले से खुश नहीं था। लेकिन समीर ने सब अच्छी तरह से सोंच कर ही फैसला लिया है।" गुप्ता जी का मूड देख कर रंजन फौरन बोला। "हाँ ये तो है। समीर बहुत समझदार है। मेहनती भी है। तभी तो इतना आगे तक बढ़ पाया। वह अपना रेस्टोरेंट भी अच्छे से चलाएगा।"

परिवार

दयाराम खुश थे। एक अर्से के बाद उनके तीनों बच्चे इकठ्ठे हुए थे। सभी डाउनिंग टेबल पर खाना खा रहे थे। यह वक्त उनके परिवार में आपसी बातचीत का होता था। दयाराम प्रतीक्षा कर रहे थे कि पहले की तरह उनकी बड़ी बिटिया ही बातों का सिलसिला शुरू करेगी। उन्होंने उसकी तरफ देखा तो वह अपने फोन में मैसेज पढ़ रही थी। वह चुपचाप खाने लगे। खाते हुए उन्होंने अपनी मझली बेटी से दाल का डोंगा देने को कहा। पर वह ना जाने किन विचारों में उलझी थी कि उसने ध्यान नहीं दिया।  बेटे के फोन की घंटी बजी। 'एक्सक्यूज़ मी' कह कर वह अपनी प्लेट के साथ कमरे में चला गया। दयाराम ने खुद ही दाल परोसी और खाने लगे।

ज़िद

बंटी ने देखा कि जो खिलौना उसने पापा से ज़िद करके मंगाया था वह उसका छोटा भाई मोनू बिना उसकी इजाज़त के खेल रहा है। उसने खिलौना वापस रखने को कहा। इस पर मोनू ने उलटा जवाब दिया। "पापा ने कहा था कि यह दोनों के लिए है। मैं नहीं दूँगा।" उसकी इस धृष्टता पर आठ साल के बंटी के भीतर का बड़ा भाई आहत हो गया। गुस्से से उबलते हुए वह खिलौना छीनने लगा। मोनू भी झुकने को तैयार नहीं था। छीना झपटी में खिलौना दो टुकड़ों में टूट गया।  अब दोनों के मन में एक ही सवाल था कि पापा से क्या कहेंगे।