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नवंबर, 2017 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

मुक्ति

कमल समझ गया था कि डॉक्टर जांच करने के बाद क्या कहने वाले हैं। अब तक सीने में दबा दर्द एक गुबार की तरह उठा और उसके गले में आकर अटक गया। आँखों से आंसू ढलकने लगे। तीन महीनों से उसका बेटा जीवन और मृत्यु के बीच झूल रहा था। हंसता खेलता बच्चा मशीन के ज़रिए सांस ले रहा था। उसकी चंचलता का बिस्तर पर निढाल पड़े रहना एक पिता के लिए बहुत कष्टदाई था। डॉक्टर ने आकर बताया कि उसका बेटा अब नहीं रहा। दुख के बीच बेटे के कष्ट मुक्त हो जाने का एहसास उसे सहला रहा था।

डोर

सभी को लग रहा था कि शमशेर हादसे के कारण अपना दिमागी संतुलन खो बैठा है। वह एक कठपुतली कलाकार था। एक समय था कि अपनी कला के दम पर उसने कई सम्मान प्राप्त किए थे। पर धीरे धीरे उसकी कला का मोल समझने वाले लोग नहीं रहे। अब तो फाके की नौबत रहती थी। इसलिए बेटा भी मुंबई काम करने चला गया था। शमशेर ने अब तक अपनी कठपुतलिययों को संभाल कर रखा था। वह उसके लिए किसी खजाने से कम नहीं थीं।  कल रात आग लगने से सब जल गईं। रात भर वह उनके लिए रोया। किंतु सुबह हुई तो बैठ कर गाने लगा। "अरे काका क्यों दिल पर लेते हो। जो होना था हो गया।" पड़ोसी ने समझाया। "बेटा यह तो मुक्ति का राग है। अब तक मोह की डोरी से बंधा था। आग ने वह डोर काट दी।"

दूसरी दुनिया

                  चिराग कुमार की किताब 'दूसरी दुनिया' का विमोचन था। पत्रकार किताब के विषय में उससे सवाल पूँछ रहे थे। एक अंग्रेज़ी दैनिक की महिला पत्रकार ने प्रश्न किया। "चिराग, आपकी किताब का नाम है दूसरी दुनिया। यह दूसरी दुनिया है क्या?" चिराग ने उस पत्रकार को गौर से देख कर कहा। "अच्छा सवाल किया आपने। दरअसल यह वह दुनिया है जो हमारे आसपास मौजूद है किंतु हमारा समाज उसकी अनदेखी करता है। यह दूसरी दुनिया शहर की झोपड़पट्टियों में बसती है। सड़कों पर सोती है। यह उन गरीब अनाथ बच्चों की दुनिया है जहाँ जाने से बचपन भी कतराता है।" "आपका इन बच्चों से क्या संबंध है?" महिला पत्रकार ने दूसरा सवाल किया। "संबंध तो हम सबका है मैडम... वह हमारे समाज का ही हिस्सा हैं। हाँ मेरा व्यक्तिगत संबंध है क्योंकी मैं भी उसी दुनिया से निकला हूँ।" सभी उसके बारे में जानने को उत्सुक थे। पत्रकार एक एक कर सवाल कर रहे थे। चिराग धैर्य से उनके जवाब दे रहा था। बहुत देर तक सवाल जवाब चलते रहे। प्रेस कॉन्फ्रेंस समाप्त होने के बाद चिराग भी अपने घर क

दोस्त

                                   बाल मनोचिकित्सक अवतार सिंह ने आठ वर्षीय शुभ को प्यार से कुर्सी पर बैठाया। उस नन्हें से बच्चे का कोमल मन कितना आहत था वह जानते थे। अवतार सिंह उसके मन के घाव भरने का प्रयास कर रहे थे। "नाम क्या है बेटा तुम्हारा...।" शुभ शांत बैठा रहा। वह इस तरह निश्चल बैठा था जैसे कुछ सुना ही ना हो। अवतार सिंह ने उससे बात करने की एक और कोशिश की। "बेटा मुझसे बात करो।  तुम मुझे अपना दोस्त समझो...." यह बात सुनते ही शुभ कुर्सी से उतर कर अपनी मम्मी के पास आ गया। जानकी उसे अपनी गोद में बैठा कर शांत करने लगी। अवतार सिंह ने जानकी की तरफ प्रश्न भरी निगाह से देखा। "सर वह शैतान भी कहता था कि वह इसका दोस्त है।" अवतार सिंह समझ गए कि उस मासूम का विश्वास बुरी तरह कुचल चुका है। उन्हें पहले घायल विश्वास को ठीक करना पड़ेगा।  उन्होंने अपने सहायक को बुला कर शुभ को बाहर ले जाने को कहा। "जानकी जी शुभ के मन में गहरी चोट लगी है। हमें बहुत ही धैर्य व प्रेम से काम लेना पड़ेगा। पहले तो मुझे उसका विश्वास जीतना पड़ेगा। यह एक कठिन

वो चार दिन

                                           सभी ब्रेकफास्ट के लिए जमा थे। मेज़ पर ढेर सारी चीज़ें देख कर मानव समझ नहीं पा रहा था कि क्या खाए। कुछ देर तो वह यूं ही सभी डिशेज़ को देखता रहा। अंत में उसने थोड़ा सा उपमा अपनी प्लेट में परोस लिया। चारों तरफ चहल पहल थी। कुछ जाने तो कुछ अनजाने चेहरे थे। मानव की आँखें उस चेहरे को खोज रही थीं जिसे उसने कल बस से उतरते हुए देखा था। कंपनी ने अपने करीब पच्चीस चुनिंदा कर्मचारियों को छुट्टी मनाने का यह मौका ईनाम के तौर पर दिया था। चारों ज़ोन से लोग चुने गए थे। उन्हें इस महंगे रिज़ार्ट में ठहराया गया था। अब तक तो मानव को सारी व्यवस्था अच्छी लगी थी। वैसे कल शाम ही सब लोग इस रिज़ार्ट में आए। एयरपोर्ट से सबको एक लग्ज़री बस में बिठा कर यहाँ लाया गया था। बस में बैठे हुए तो वह अपने खयालों में ही उलझा रहा। लेकिन जब वह बस से उतरा तो उसके बाद एक लड़की भी उतरी। उतरते समय उसका दुपट्टा उसके ट्रॉली बैग में फंस गया। किनारे खड़े होकर वह उसे ही निकालने लगी। तभी मानव का ध्यान उसकी तरफ गया। सुंदर सलोना गोल सा चेहरा था उसका। हल्का सा मेकअप किया था। बाकी प