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दिसंबर, 2013 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

अब और नहीं

वह दफ्तर से बाहर निकली। दोपहर में उसे मैसेज मिला था ' ऑफिस के बाद उसी जगह '। कार उसका इंतज़ार कर रही थी। उसके बैठते ही कार चल पड़ी। वह अपने ख्यालों में खो गयी।  हर कोई उसे केवल अपनी इच्छापूर्ति का साधन मानता है। सुबह घर से निकलते समय पापा सामने आकर खड़े हो गए। वह समझ गई कि उन्हें क्या चाहिए। पर्स खोलकर उसने पैसे उन्हें पकड़ा दिए। हलांकि वह जानती थी कि वह कहाँ  खर्च होंगे। पर क्या कर सकती थी। छोटे भाई को भी कुछ पैसे चाहिए। हर कोई उससे उम्मीद लगाये है। क्या करे वह कुछ समझ नहीं पा रही थी।  कार अपने गंतव्य पर आकर रुक गयी।  वह होटल की तीसरी मंज़िल पर गयी। कमरे में बॉस के अलावा एक और शख्स मौजूद था। करीब उसके पापा की उम्र का। उस आदमी ने उसे ऊपर से नीचे तक ऐसे घूरा जैसे आँखों ही आँखों में उसे पी जायेगा। बॉस बिना कुछ कहे उसे उस आदमी के साथ छोड़ कर चला गया।  उस आदमी की आँखों में वासना के  लाल डोरे तैर रहे थे। अपनी कमीज़ के बटन खोलते हुए वह उसकी तरफ बढ़ा।  " क्या है वह, महज़ एक सामान जिसे कोई भी इस्तेमाल कर सकता है?" इस सवाल ने उसके दिल में हलचल मचा दी। उसके सीने में एक जलन सी उठी।