"यह आयोजक लोग भी सस्ती लोकप्रियता के लिए किसी को भी बुला लेते हैं।" सामने खड़े उपन्यासकार कंवलजीत को देख एक साहित्यकार महोदय मुंह बनाते हुए बोले। दूसरे साहित्यकार महोदय ने हाँ में हाँ मिलाते हुए कहा "इसका नया उपन्यास पढ़ा आपने। कितना घटिया है। कहता है कि समाज की सेक्स संबंधी कुंठाओं पर चोट है।" दोनों लोग ठठा कर हंसने लगे। तभी एक नवयुवती कुछ जल्दी में वहाँ से गुजरते हुए उनसे टकरा गई। हाथ में पकड़े कागज़ जमीन पर गिर गए। दोनों की आँखें उन्हें उठाने झुकी युवती के शरीर पर दौड़ने लगीं।
नमस्ते मेरे Blog 'कथा संसार' में आपका स्वागत है। यह कहानियां मेरे अंतर्मन की अभिव्यक्ति हैं। मेरे मन की सीपी में विकसित मोती हैं।