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बदलाव

 

सारिका दस साल बाद अपनी बड़ी बहन के घर आई थी। विदेश में अपने बच्चों के पास रहने के कारण अपने बहनोई की मृत्यु पर भी नहीं आ सकी थी। सारिका महसूस कर रही थी कि उसकी बड़ी बहन मे बहुत से बदलाव आ गए थे। पहले वह हफ्ते में चार दिन उपवास रखती थी। बहुत सा समय पूजा पाठ में बिताती थी। लेकिन इधर सारिका ने देखा कि वह हफ्ते के उन दिनों में उपवास नहीं कर रही थी। रोज़ नहा कर भगवान की पूजा करती थी किंतु पहले की तरह वह बहुत लंबी नहीं होती थी। कल शाम तो वह सबके साथ बाहर खाना खाने भी गई थी। दोपहर को जब सारिका अपनी बहन के पास बैठी तो उसने पूँछा।

"दीदी तुम तो बहुत बदल गई हो। ना कोई व्रत उपवास। पूजा भी कुछ ही समय के लिए करती हो। बेटे के साथ रहना पड़ रहा है तो क्या उनके हिसाब से...."

"सारिका ऐसा नहीं है कि ईश्वर पर मेरा यकीन कम हुआ है। वह तो पहले से बहुत अधिक बढ़ गया है। हाँ पहले उपवास और पूजा पाठ में अधिक समय देती थी। मैंने महसूस किया कि इसके चलते बच्चे और तुम्हारे जीजाजी मुझसे कुछ दूर हो गए। बात थोड़ी देर में समझ आई। तुम्हारे जीजाजी तो रहे नहीं पर अब मैं कोशिश करती हूँ कि बचा हुआ समय बच्चों के साथ अधिक बिताऊँ। मैं उनके हिसाब से चलती हूँ तो वह भी मुझे साथ लेकर चलते हैं।"

सारिका ध्यान से अपनी दीदी की बात सुन रही थी। दीदी ने आगे कहा।

"लेकिन यह मेरी मजबूरी नहीं इच्छा है। वरना मेरे लिए तो फैमिली पेंशन ही बहुत है।"


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