कर तेज़ी से हाईवे पर भाग रही थी। मैं कार की खिड़की के बाहर देख रहा था। आज एक अरसे के बाद मैं अपने घर जहाँ मेरा बचपन बीता था जा रहा था। ज़िंदगी की मसरुफियतों में कुछ इस कदर उलझ गया था कि जीवन का एक बड़ा हिस्सा, जो मुझसे जुड़ा था पिछले कई सालों से अनदेखा रह गया था। अचानक मेरी नज़र पूनम के चाँद पर पड़ी। चाँदनी में नहाया हुआ चाँद चाँदी की थाली जैसा लग रहा था। ऐसा प्रतीत हो रहा था कि जैसे वो मेरे साथ साथ ही चल रहा हो। जैसे बिछड़ा हुआ कोई मित्र हो जो बरसों के बाद मिलने पर खुशी से मेरे पीछे पीछे चल रहा हो।
चाँद से मेरा बचपन का नाता है। इसकी शुरुआत तब हुई जब मैं एक छोटा सा बालक था। अम्मा मुझे अपनी गोद में बिठाकर खिलाती थीं। उस वक़्त वो एक गीत गाती थीं।
चंदा मामा दूर के …पुए पकाएं बूर के …
वो मुझे चाँद के झिंगोले की कहानी भी सुनाती थीं। एक बार चाँद ने अपनी माँ से अपने लिए एक झिंगोला सिलाने को कहा लेकिन उसके घटते बढ़ते आकर के कारण उसकी नाप का झिंगोला नहीं सिल पाया। अम्मा ने मुझे यह भी बताया कि चाँद पर बैठी एक बुढ़िया चरखा चला रही है। चाँद पर दिखने वाले काले धब्बे उसी बुढ़िया के कारण हैं। मैं सोंचता कि काश कहानियों वाली परी अपने उड़न खटोले के साथ यहाँ आ जाए तो मैं उस पर बैठ कर चाँद पर जाऊं और उस बुढ़िया को देखूं।
एक दिन था जब चाँद का बड़ी बेसब्री से इंतज़ार होता था। करवा चौथ का दिन। उस दिन अम्मा बाबूजी की लंबी उम्र के लिए व्रत रखती थीं। अम्मा को चाँद निकल आने की सूचना दे सकूं इसलिए मैं सांझ ढलते ही अटारी पर चढ़ जाता था। उस रोज़ चाँद बहुत प्रतीक्षा करवाता था। जैसे ही चाँद दिखाई देता मैं विजय के उल्लास में चिल्ला कर माँ को इसकी सूचना देता। माँ चाँद को अर्घ्य देकर उसकी पूजा करतीं और अपना व्रत तोड़तीं। उस वक़्त मैं बहुत खुश हो जाता था।
बड़े होने पर स्कूल में विज्ञान की किताब में पढ़ा कि चाँद धरती का उपग्रह है जो उसकी परिक्रमा करता है। वहाँ प्राणदायक आक्सीजन भी नहीं है। किन्तु इस पर भी चाँद के प्रति आकर्षण कम नहीं हुआ।
कालेज के दिनों में मैं चाँद में अपनी प्रेयसी का चेहरा देखता था। हम दोनों ने लगभग एक साथ ही जवानी की देहलीज़ पर कदम रखा था। कालेज की प्रथम मुलाकात ही हम दोनों को एक साथ ले आई। किन्तु वो दिन आज की तरह नहीं थे कि मोबाइल उठाया और बात कर ली। कालेज में ही बमुश्किल मिल पाते थे। अतः रात को छत पर लेटे हुए मैं उसकी याद करता और चाँद को निहारते हुए उसमें उसका अक्स देखता। चाँद के माध्यम से मैं उसे संदेश भी भेजता था। आज सोंचने पर सब कुछ बहुत बचकाना लगता है किन्तु उन दिनों बहुत रूमानी प्रतीत होता था।
कालेज ख़त्म हुआ तो कैरिअर बनाने की जद्दोज़हद में उलझ गया। उसके बाद घर गृहस्त्ती में। चाँद से मेरा संबंध लगभग टूट ही गया। उसके बाद भी चाँद अपनी सोलह कलाओं के साथ आकाश में उदित होता रहा होगा किन्तु मैंने कभी उस पर ध्यान नहीं दिया।
मैं अपने ही ख्यालों में उलझा था। कार में एक अजीब सी ख़ामोशी थी शायद उसी से ऊब कर ड्राईवर ने कार का रेडिओ चालू कर दिया। किसी स्टेशन पर यह गाना बज रहा था
चंदा रे चंदा रे …कभी तो ज़मीं पर आ … बैठेंगे बातें करेंगे
चाँद से मेरा बचपन का नाता है। इसकी शुरुआत तब हुई जब मैं एक छोटा सा बालक था। अम्मा मुझे अपनी गोद में बिठाकर खिलाती थीं। उस वक़्त वो एक गीत गाती थीं।
चंदा मामा दूर के …पुए पकाएं बूर के …
वो मुझे चाँद के झिंगोले की कहानी भी सुनाती थीं। एक बार चाँद ने अपनी माँ से अपने लिए एक झिंगोला सिलाने को कहा लेकिन उसके घटते बढ़ते आकर के कारण उसकी नाप का झिंगोला नहीं सिल पाया। अम्मा ने मुझे यह भी बताया कि चाँद पर बैठी एक बुढ़िया चरखा चला रही है। चाँद पर दिखने वाले काले धब्बे उसी बुढ़िया के कारण हैं। मैं सोंचता कि काश कहानियों वाली परी अपने उड़न खटोले के साथ यहाँ आ जाए तो मैं उस पर बैठ कर चाँद पर जाऊं और उस बुढ़िया को देखूं।
एक दिन था जब चाँद का बड़ी बेसब्री से इंतज़ार होता था। करवा चौथ का दिन। उस दिन अम्मा बाबूजी की लंबी उम्र के लिए व्रत रखती थीं। अम्मा को चाँद निकल आने की सूचना दे सकूं इसलिए मैं सांझ ढलते ही अटारी पर चढ़ जाता था। उस रोज़ चाँद बहुत प्रतीक्षा करवाता था। जैसे ही चाँद दिखाई देता मैं विजय के उल्लास में चिल्ला कर माँ को इसकी सूचना देता। माँ चाँद को अर्घ्य देकर उसकी पूजा करतीं और अपना व्रत तोड़तीं। उस वक़्त मैं बहुत खुश हो जाता था।
बड़े होने पर स्कूल में विज्ञान की किताब में पढ़ा कि चाँद धरती का उपग्रह है जो उसकी परिक्रमा करता है। वहाँ प्राणदायक आक्सीजन भी नहीं है। किन्तु इस पर भी चाँद के प्रति आकर्षण कम नहीं हुआ।
कालेज के दिनों में मैं चाँद में अपनी प्रेयसी का चेहरा देखता था। हम दोनों ने लगभग एक साथ ही जवानी की देहलीज़ पर कदम रखा था। कालेज की प्रथम मुलाकात ही हम दोनों को एक साथ ले आई। किन्तु वो दिन आज की तरह नहीं थे कि मोबाइल उठाया और बात कर ली। कालेज में ही बमुश्किल मिल पाते थे। अतः रात को छत पर लेटे हुए मैं उसकी याद करता और चाँद को निहारते हुए उसमें उसका अक्स देखता। चाँद के माध्यम से मैं उसे संदेश भी भेजता था। आज सोंचने पर सब कुछ बहुत बचकाना लगता है किन्तु उन दिनों बहुत रूमानी प्रतीत होता था।
कालेज ख़त्म हुआ तो कैरिअर बनाने की जद्दोज़हद में उलझ गया। उसके बाद घर गृहस्त्ती में। चाँद से मेरा संबंध लगभग टूट ही गया। उसके बाद भी चाँद अपनी सोलह कलाओं के साथ आकाश में उदित होता रहा होगा किन्तु मैंने कभी उस पर ध्यान नहीं दिया।
मैं अपने ही ख्यालों में उलझा था। कार में एक अजीब सी ख़ामोशी थी शायद उसी से ऊब कर ड्राईवर ने कार का रेडिओ चालू कर दिया। किसी स्टेशन पर यह गाना बज रहा था
चंदा रे चंदा रे …कभी तो ज़मीं पर आ … बैठेंगे बातें करेंगे
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