सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

क्या होता गर..........

जसवंत कमरे में अकेला था। वो सारी आवाज़ें धीरे धीरे तेज़ होती जा रही थीं। सब कुछ उसकी आँखों के सामने नाच रहा था। जैसे परदे पर कोई चलचित्र  चल रहा हो। सन 84 की वह दोपहर आज भी उसका पीछा नहीं छोड़ती।
बलवाइयों की भीड़ उसके घर में घुस आई थी। वह अपने कमरे में था। उसके पापाजी, बीजी और छोटी बहन को उन्होंने अपने कब्ज़े में कर लिया था।
कोई चिल्लाया " अरे वो जसवंत नहीं है। ढूंढो साले को यही कहीं छिपा होगा।"
जसवंत ने जब अपनी तरफ बढ़ते कदमों की आवाज़ सुनी तो वह डर से थर थर कांपने लगा। अपनी जान बचाने के लिए वो बेसमेंट में बने स्टोररूम कि तरफ भागा। वहाँ एक पुराने ट्रंक में छिप गया। बलवाइयों ने उसे बहुत खोजा लेकिन सामान के पीछे छिपे उस पुराने ट्रंक पर किसी का ध्यान नहीं गया। जो कुछ भी हो रहा था उसकी आवाज़ उस तक पहुँच रही थी।
" कहीं नहीं मिला साला। लगता है बाहर भाग गया। "
" कोई बात नहीं उसे बाद में देख लेंगे। अभी सब को यहाँ आँगन में ले आओ। इन्होने हमारी प्रधानमन्त्री को मारा है। इन्हें ऐसा सबक सिखाएंगे कि इनकी कई नस्लें याद रखेंगी।"
 " क्या बिगाड़ा है हमने तुम्हारा। क्यों हमारे साथ ऐसा सुलूक कर रहे हो। दारजी ने हमेंशा तुम लोगों को अपने परिवार सा माना। सबके दुःख सुख में शामिल रहे। कितनों कि मदद की उसका ये सिला दे रहे हो। "
" चुप कर साली, सब को बाँध कर तेल डाल दो  "
उसके परिवार वालों की दर्दनाक चीखें उसके कानों में पड़ रही थीं। काला धुंआ स्टोररूम तक आ रहा था। रबर के जलने कि तेज़ दुर्गन्ध चारों ओर फैली थी। उसका दम घुटने लगा। वह बेहोश हो गया।
जब होश आया तो सब कुछ शांत हो चुका था। वह डरते हुए बाहर आया। आँगन में उसके परिवार के जले हुए शव थे। उन्हें देख कर उसे उल्टी हो गयी।  उससे वहाँ खड़ा नहीं रहा गया। भाग कर वह अपनी बुआ के घर आ गया।
इतने सालों बाद भी एक सवाल उसका पीछा करता है। ' क्या होता गर उसने थोड़ी हिम्मत की होती। शायद वह अपने परिवार को बचा पाता ' पन्द्रह वर्ष कि उम्र में उस दिन उसने जो किया वह आत्मरक्षा थी या कायरता।





टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

ना मे हाँ

सब तरफ चर्चा थी कि गीता पुलिस थाने के सामने धरने पर बैठी थी। उसने अजय के खिलाफ जो शिकायत की थी उस पर कोई कार्यवाही नहीं हुई थी।  पिछले कई महीनों से गीता बहुत परेशान थी। कॉलेज आते जाते अजय उसे तंग करता था। वह उससे प्रेम करने का दावा करता था। गीता उसे समझाती थी कि उसे उसमें कोई दिलचस्पी नहीं है। वह सिर्फ पढ़ना चाहती है। लेकिन अजय हंस कर कहता कि लड़की की ना में ही उसकी हाँ होती है।  गीता ने बहुत कोशिश की कि बात अजय की समझ में आ जाए कि उसकी ना का मतलब ना ही है। पर अजय नहीं समझा। पुलिस भी कछ नहीं कर रही थी। हार कर गीता यह तख्ती लेकर धरने पर बैठ गई कि 'लड़की की ना का सम्मान करो।'  सभी उसकी तारीफ कर रहे थे।

गुमसुम

अपने पापा के सामने बैठा विपुल बहुत उदास था. उसके जीवन में इतनी बड़ी खुशी आई थी किंतु उसके पापा उदासीन बैठे थे. तीन साल पहले हुए हादसे ने उससे उसके पिता को छीन लिया था. उसके पापा की आंखों के सामने ही नदी की तेज़ धारा मम्मी को बहा कर ले गई थी. उस दिन से उसके पिता जैसे अपने भीतर ही कहीं खो गए थे. विपुल ने बहुत प्रयास किया कि किसी तरह उनकी उस अंदरूनी दुनिया में प्रवेश कर सके. परंतु उसकी हर कोशिश नाकामयाब रही. इस नाकामयाबी का परिणाम यह हुआ कि वह स्वयं की निराशा के अंधेरे में खोने लगा. ऐसे में अपने शुभचिंतकों की बात मान कर उसने विवाह कर अपने जीवन को एक नई दिशा दी. वह निराशा के भंवर से उबरने लगा. लेकिन अपने पापा की स्थिति पर उसे दुख होता था. दस दिन पहले जन्मी अपनी बच्ची के रोने की आवाज़ उसे उसके विचारों से बाहर ले आई. वह उसके पालने के पास गया. उसकी पत्नी सो रही थी. उसने पूरे एहतियात से बच्ची को उठाया और उसे लेकर अपने पापा के पास आ गया. विपुल ने बच्ची को अपने पिता के हाथों में सौंप दिया. बच्ची उन्हें देख कर मुस्कुरा दी. कुछ देर उसै देखने के बाद उन्होंने उसे उठाया और सीने से लगा लिया. विप...

केंद्र बिंदु

पारस देख रहा था कि आरव का मन खाने से अधिक अपने फोन पर था। वह बार बार मैसेज चेक कर रहा था। सिर्फ दो रोटी खाकर वह प्लेट किचन में रखने के लिए उठा तो पारस ने टोंक दिया। "खाना तो ढंग से खाओ। जल्दी किस बात की है तुम्हें।" "बस पापा मेरा पेट भर गया।" कहते हुए वह प्लेट किचन में रख अपने कमरे में चला गया। पारस का मन भी खाने से उचट गया। उसने प्लेट की रोटी खत्म की और प्लेट किचन में रख आया। बचा हुआ खाना फ्रिज में रख कर वह भी अपने कमरे में चला गया। लैपटॉप खोल कर वह ऑफिस का काम करने लगा। पर काम में उसका मन नही लग रहा था। वह आरव के विषय में सोच रहा था। उसने महसूस किया था कि पिछले कुछ महीनों में आरव के बर्ताव में बहुत परिवर्तन आ गया है। पहले डिनर का समय खाने के साथ साथ आपसी बातचीत का भी होता था। आरव उसे स्कूल में क्या हुआ इसका पूरा ब्यौरा देता था। किंतु जबसे उसने कॉलेज जाना शुरू किया है तब से बहुत कम बात करता है। इधर कुछ दिनों से तो उसका ध्यान ही जैसे घर में नही रहता था। पारस सोचने लगा। उम्र का तकाज़ा है। उन्नीस साल का हो गया है अब वह। नए दोस्त नया माहौल इस सब में उसने अपनी अलग दुनि...