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हम तुम

मनु ने दरवाज़ा खोला और बिना कुछ बोले जाकर अपना होमवर्क करने लगा। शिव कुछ क्षण उसे देखता रहा। किन्तु मनु अपने काम में तल्लीन था।  शिव ने हाथ में पकड़ा हुआ पैकेट डाइनिंग टेबल पर रखा और भीतर चला गया।
आज फिर वो अपना वादा पूरा नहीं कर सका। आज दफ्तर से जल्दी लौट कर उसे सर्कस दिखाने का वादा किया था। क्या करे वह, परिस्तिथियाँ उसके वश में नहीं हैं। उसकी नज़र दीवार पर लटके फ़ोटो फ्रेम पर पड़ी  'काश निशा होती, तो यह ज़िंदगी कितनी आसान होती।' पर ऐसा हो नहीं सकता। उसे ही मनु के माँ और बाप दोनों का फ़र्ज़ निभाना है। वह अपनी तरफ से पूरी कोशिश करता है किन्तु कुछ न कुछ कमी रह ही जाती है।
पांच वर्ष पूर्व निशा चार वर्ष के उसके बेटे को छोड़ कर चल बसी। उसे लगा जैसे उसका अपना बचपन अब उसके बेटे के सामने है। उसकी माँ भी उसे यूँ ही छोड़ कर चल बसी थीं। पिताजी ने दूसरा विवाह कर लिया ताकि उसे माँ कि कमी न खले। नई माँ ने अपने सारे फ़र्ज़ निभाए किंतु उसे वो प्रेम न दे सकीं जो सिर्फ एक माँ दे सकती है। पिताजी भी दो धड़ों में उलझ कर रह गए।  अतः उसने तय किया कि वह मनु को इस परिस्तिथि का सामना नहीं करने देगा। सब कुछ अकेले ही संभालेगा। मुश्किल होती है पर अपने बेटे को वह दुखी नहीं देख सकता।
मनु बहुत नाराज़ है। तभी कुछ नहीं बोला वरना दरवाज़ा खोलते ही बातों कि झड़ी लगा देता है। किन्तु आज तो शिकायत भी नहीं की।  फ्रेश होकर वह बाहर आया। मनु अपना होमवर्क ख़त्म कर चुका था। वह अपनी किताबें अपने बैग में सहेज रहा था।  ' इतनी सी उम्र में कितना समझदार हो गया है। ' शिव ने मन ही मन उसकी तारीफ की। उसका कंधा पकड़ कर अपनी तरफ घुमाया और प्यार से पूंछा " नाराज़ हो बेटा। क्या करूं ज़रूरी काम आ गया था। लेकिन मैं तुम्हारे लिए तुम्हारे फेवरेट रेस्टोरेंट से छोले भठूरे लेकर आया हूँ। तुम्हें पसंद हैं न। अब जल्दी से हाथ धो लो मैं खाना लगाता हूँ। "
शिव ने पहला कौर तोड़ा और मनु कि तरफ बढ़ा दिया। मनु के चहरे पर मुस्कान आ गयी। मनु ने भी कौर तोड़ा और शिव को खिला दिया। खाना खाते हुए मनु दिन भर क्या क्या हुआ बताने लगा।

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