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प्रगति

मिस्टर शर्मा के ड्राइंगरूम में मेहफिल जमा थी। चाय की चुस्कियों के बीच भारत के एक विश्व शक्ति के रूप में उभरने की चर्चा चल रही थी।  दुबे जी ने एक बिस्किट चाय में डुबाते हुए कहा " अजी अब हम किसी चीज़ में पीछे नहीं रहे। बात चाहें अंतरिक्ष विज्ञान की हो या फिर व्यापार की किसी भी बात में हम अब टक्कर ले सकते हैं। वो दिन दूर नहीं जब हम विश्व की महान शक्तियों में गिने जायेंगे। "
इस परिचर्चा के बीच में अचानक ही घंटी बजी और एक स्वर सुनाई दिया " आंटी जी कूड़ा "
मिसेज शर्मा को बीच में यूँ उठना पसंद नहीं आया। झुंझलाकर बोलीं " इस कूड़ा लेने वाले का भी कोई वक़्त नहीं। असमय चला आता है। " बाहर आकर उन्होंने गेट खोला। दस साल का एक लड़का भीतर आया और कूड़े की बाल्टी से कूड़ा  निकाल कर एक प्लास्टिक के थैले में भरने लगा।
" आस पास जो बिखरा है वह भी बटोर लो। " मिसेज शर्मा ने कहा। फिर एक प्लास्टिक का थैला ज़मीन पर रख कर बोलीं " इसमें कुछ कपड़े हैं ले लो। " बच्चे ने थैला ऐसे उठाया मानो कोई खज़ाना हो।
बाहर चिलचिलाती धुप में देश का बचपन फटे पुराने में ख़ुशी तलाश रहा था।  भीतर एयरकंडीशन रूम में बैठे लोग भारत के विश्व शक्ति बनने के सुखद स्वप्न देख रहे थे। 

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