आज ही निखिल अपने पिता के अंतिम संस्कार निपटा कर लौटा है। बिस्तर पर लेटे हुए दिमाग में न जाने कितना कुछ चल रहा है। बहुत जल्दी ही वह अपने पैरों पर खड़ा हो गया था और घर से दूर एक स्वतंत्र जीवन जी रहा था। व्यस्तता के कारण घर कम ही जा पाता था। जाता भी था तो बहुत कम समय के लिए। उसमें भी बहुत सा समय पुराने मित्रों और रिश्तेदारों से मिलने में बीत जाता था। कुछ ही समय वह अपने पिता के साथ बैठ पाता था। जिसमें वह उससे उसकी कुशल पूँछते और कुछ नसीहतें देते। आज अचानक उसे बहुत खालीपन महसूस हो रहा था। अचानक उसे लगा जैसे कमरे की छत गायब हो गई है और वह खुले आसमान के नीचे असुरक्षित बैठा है।
सब तरफ चर्चा थी कि गीता पुलिस थाने के सामने धरने पर बैठी थी। उसने अजय के खिलाफ जो शिकायत की थी उस पर कोई कार्यवाही नहीं हुई थी। पिछले कई महीनों से गीता बहुत परेशान थी। कॉलेज आते जाते अजय उसे तंग करता था। वह उससे प्रेम करने का दावा करता था। गीता उसे समझाती थी कि उसे उसमें कोई दिलचस्पी नहीं है। वह सिर्फ पढ़ना चाहती है। लेकिन अजय हंस कर कहता कि लड़की की ना में ही उसकी हाँ होती है। गीता ने बहुत कोशिश की कि बात अजय की समझ में आ जाए कि उसकी ना का मतलब ना ही है। पर अजय नहीं समझा। पुलिस भी कछ नहीं कर रही थी। हार कर गीता यह तख्ती लेकर धरने पर बैठ गई कि 'लड़की की ना का सम्मान करो।' सभी उसकी तारीफ कर रहे थे।
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