सपना घर में घुसी तो उसे तेज़ प्यास लग रही थी. फ़्रिज खोल कर उसने पानी की बोतल निकाली और एक सांस में आधी बोतल खाली कर दी. फिर जाकर वह सोफे पर पसर गई. आज सुबह से ही बहुत भाग दौड़ रही. पहले वह नकुल की टीचर से मिलने उसके स्कूल गई. फिर बिजली का बिल जमा किया. उसके बाद घर का कुछ सामान लेकर लौटते हुए दोपहर के बारह बज गए. वह बहुत थक गई थी. कुछ ही समय में नकुल स्कूल से लौटेगा. उससे पहले उसे खाना भी बनाना है. एक साथ घर बाहर उसे ही संभालना पड़ता है.
उसका पति मयंक एक प्राईवेट कंपनी में टेक्नीशियन के पद पर कार्यरत था. उसकी छोटी सी तनख्वाह से घर ठीक ठाक चल रहा था. लेकिन बचत अधिक नहीं हो पाती थी. ऐसे में अपने बेटे नकुल को लेकर दोनों चिंतित रहते थे. साल भर पहले जब मयंक एक दिन घर लौटा तो बहुत खुश था. उसने बताया कि उसे खाड़ी देश में एक अच्छा काम मिला है. पैसे भी अच्छे मिलेंगे. लेकिन तीन साल तक सपना और नकुल को अकेले रहना पड़ेगा. उसकी बात सुन कर सपना उदास हो गई थी. इससे पहले कभी भी अकेली नहीं रही थी. घर के सारे काम वह बखूबी कर लेती थी किंतु बाहर के काम मयंक के ही जिम्मे थे. वह अकेली सब कुछ कैसे संभालेगी सोंच कर वह घबरा गई. मयंक उसकी मनोस्थिति को भांप गया " तुम्हारी परेशानी मैं समझता हूँ. लेकिन नकुल के अच्छे भविष्य के लिए हमको ये तकलीफ झेलनी पड़ेगी. " नकुल के भविष्य का विचार कर वह मान गई लेकिन उसके मन में बहुत दुविधा थी कि वह सब संभाल पाएगी या नहीं. अभी तो वह छोटे छोटे निर्णय भी बिनी मयंक की मदद के नहीं ले पाती थी.
मयंक के जाने के बाद कुछ महीनों तक उसे बहुत मुश्किल हुई. अक्सर उसे लगता जैसे वह टूट जाएगी. प्रारंभ में उस से कुछ गल्तियां भी हुईं. पर उसने धैर्य नहीं छोड़ा. धीरे धीरे स्थितियां उसके काबू में आ गईं. अब वह बिना डरे सोंच समझकर निर्णय लेना सीख गई थी.
नकुल जब स्कूल से लौटा तो बहुत खुश था. आज स्कूल में उसके बनाए प्रोजेक्ट की बहुत तारीफ हुई थी. जब उसे यह प्रोजेक्ट मिला था तब उसे इस बात का दुख था कि उसके पापा उसके पास मौजूद नहीं हैं. लेकिन सपना ने उसकी हर संभव मदद की. सपना को यह खुशखबरी सुनाते हुए वह उससे लिपट गया और बोला " थैंक्यू मम्मी "
आज सपना बहुत खुश थी. नकुल भी अब उस पर विश्वास करने लगा था कि पापा के ना होने पर उसकी मम्मी मदद के लिए है.
जब मयंक ने फोन पर उससे पूंछा कि कोई परेशानी तो नहीं है तो वह पूरे आत्मविश्वास के साथ बोली " नहीं कोई परेशानी नहीं है. होगी तो मैं निपट लूंगी. आप अपना ध्यान रखिए. "
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उसका पति मयंक एक प्राईवेट कंपनी में टेक्नीशियन के पद पर कार्यरत था. उसकी छोटी सी तनख्वाह से घर ठीक ठाक चल रहा था. लेकिन बचत अधिक नहीं हो पाती थी. ऐसे में अपने बेटे नकुल को लेकर दोनों चिंतित रहते थे. साल भर पहले जब मयंक एक दिन घर लौटा तो बहुत खुश था. उसने बताया कि उसे खाड़ी देश में एक अच्छा काम मिला है. पैसे भी अच्छे मिलेंगे. लेकिन तीन साल तक सपना और नकुल को अकेले रहना पड़ेगा. उसकी बात सुन कर सपना उदास हो गई थी. इससे पहले कभी भी अकेली नहीं रही थी. घर के सारे काम वह बखूबी कर लेती थी किंतु बाहर के काम मयंक के ही जिम्मे थे. वह अकेली सब कुछ कैसे संभालेगी सोंच कर वह घबरा गई. मयंक उसकी मनोस्थिति को भांप गया " तुम्हारी परेशानी मैं समझता हूँ. लेकिन नकुल के अच्छे भविष्य के लिए हमको ये तकलीफ झेलनी पड़ेगी. " नकुल के भविष्य का विचार कर वह मान गई लेकिन उसके मन में बहुत दुविधा थी कि वह सब संभाल पाएगी या नहीं. अभी तो वह छोटे छोटे निर्णय भी बिनी मयंक की मदद के नहीं ले पाती थी.
मयंक के जाने के बाद कुछ महीनों तक उसे बहुत मुश्किल हुई. अक्सर उसे लगता जैसे वह टूट जाएगी. प्रारंभ में उस से कुछ गल्तियां भी हुईं. पर उसने धैर्य नहीं छोड़ा. धीरे धीरे स्थितियां उसके काबू में आ गईं. अब वह बिना डरे सोंच समझकर निर्णय लेना सीख गई थी.
नकुल जब स्कूल से लौटा तो बहुत खुश था. आज स्कूल में उसके बनाए प्रोजेक्ट की बहुत तारीफ हुई थी. जब उसे यह प्रोजेक्ट मिला था तब उसे इस बात का दुख था कि उसके पापा उसके पास मौजूद नहीं हैं. लेकिन सपना ने उसकी हर संभव मदद की. सपना को यह खुशखबरी सुनाते हुए वह उससे लिपट गया और बोला " थैंक्यू मम्मी "
आज सपना बहुत खुश थी. नकुल भी अब उस पर विश्वास करने लगा था कि पापा के ना होने पर उसकी मम्मी मदद के लिए है.
जब मयंक ने फोन पर उससे पूंछा कि कोई परेशानी तो नहीं है तो वह पूरे आत्मविश्वास के साथ बोली " नहीं कोई परेशानी नहीं है. होगी तो मैं निपट लूंगी. आप अपना ध्यान रखिए. "
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