करीब छह महीने के बाद सुरेंद्र दो दिनों के लिए घर आया था। बाहर बरामदे में ही माँ बैठी मिल गईं। वह वहीं उनके हालचाल लेने बैठ गया। माँ ने अपना वही पुराना दुखड़ा सुनाना आरंभ कर दिया।
माँ के पास से भीतर आया तो पत्नी की भौहें पहले से ही तनी हुई थीं।
"खुद तो वहाँ जाकर आराम से बैठ गए। यहाँ तो मुझे सारी खिटखिट सहनी पड़ती है।"
सुरेंद्र दो दिनों के लिए दिल का सुकून पाने आया था। पर अब सोंच रहा था कि यह दो दिन कैसे काटेगा।
माँ के पास से भीतर आया तो पत्नी की भौहें पहले से ही तनी हुई थीं।
"खुद तो वहाँ जाकर आराम से बैठ गए। यहाँ तो मुझे सारी खिटखिट सहनी पड़ती है।"
सुरेंद्र दो दिनों के लिए दिल का सुकून पाने आया था। पर अब सोंच रहा था कि यह दो दिन कैसे काटेगा।
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