वो सारे चहरे उसके नज़दीक आ रहे थे। धीरे धीरे आवाजें भी साफ़ सुनाई देने लगी थीं। उसे लगने लगा था कि आज वह इन चेहरों को पहचान लेगी। उन आवाजों में से कोई नाम अवश्य उभर कर आएगा। बस वह कुछ ही दूर है अपनी मंजिल से। किन्तु अचानक ही चहरे धुंधले पड़ने लगे। आवाजें मद्धिम हो गयीं। वह अँधेरे में इधर भटकने लगी। घबराहट में वह चीख पड़ी। उसकी नीद खुल गई। वह पसीने से भीगी हुई थी। नर्स भागी हुई आई और उसे पानी पिलाया। फिर उसे तसल्ली देने लगी " घबराओ मत सब ठीक हो जाएगा।"
वह फिर से लेट गयी। आँखों से आंसू छलक पड़े। छः महीने हो गए वह अपनी ही पहचान से अन्जान है। जब कोई उसे आत्मीयता से देखता है तो वह परेशान हो उठती है कि कहीं वह उसका कोई अपना तो नहीं है। उसके इर्द गिर्द सभी व्यक्तियों का एक नाम है। उनकी एक पहचान है। सिर्फ वही अनाम है। अपनी पहचान से दूर है। उसे महसूस होता है इंसान के लिए उसका नाम और पहचान कितने ज़रूरी हैं। उसके लिए इस तरह जीना बहुत ही कष्टप्रद है। वह भीतर ही भीतर घुट रही है।
उसके जेहन में कुछ चहरे हैं। कुछ आवाजें उसके मन में बसी हैं। किन्तु उन चेहरों को वह पहचान नहीं पाती है। उन आवाजों से स्वयं को जोड़ नहीं पाती है। उसके भीतर ऐसे अन्जाने चेहरों और आवाजों की एक दुनिया है। इस दुनिया से उसका संघर्ष ज़ारी है जो उसे परेशान तो करती है किन्तु उसकी मंजिल तक पहुँचाने में मदद नहीं करती है।
पिछले छः माह से वह लगभग रोज़ ही टूटती है किन्तु स्वयं को बिखरने नहीं देती है। बड़ी मजबूती से उसने स्वयं को संभाले रखा है। इस उम्मीद से कि एक न एक दिन वह स्वयं से ज़रूर मिलेगी।
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