मौसम की पहली बारिश थी। कभी तेज़ तो कभी धीमी लेकिन सुबह से जो झड़ी लगी वो थमी नहीं थी।
रीना का फ़ोन बज उठा। दिवाकर का फ़ोन था। रीना ने फ़ोन उठाया
" हैलो दिवाकर क्या हुआ "
" होना क्या है, तुम्हारी याद आ रही थी। तुम जानती नहीं मुझे बारिश कितनी पसंद है। आज अगर ज़रूरी न होता तो मैं छुट्टी ले लेता। दिन भर तुम्हारे साथ रहता। ज़रा सोंचो कितना रोमांटिक होता। पर क्या करूँ।"
रीना कुछ बोल नहीं पाई सिर्फ हल्के से हाँ ही कह सकी।
" और क्या कर रही थीं तुम। "
" कुछ नहीं बस यूं ही बैठी थी। "
" अच्छा रखता हूँ। काम ज़्यादा है। टेक केयर। "
रीना और दिवाकर की शादी को अभी डेढ़ महीना ही हुआ था। अक्सर वो दफ्तर से उसे फ़ोन करता रहता था।
रीना अपने कमरे में आ गई। खिड़कियां बंद कर परदे गिरा दिए। अभी भी बूंदों का शोर कानों में पड़ रहा था। कान में लीड लगा कर वह म्यूज़िक सुनने लगी।
वो मुकुंद अंकल के घर पर थी। मुकुंद अंकल उसके पड़ोसी थे। अक्सर शाम को वो उसके घर आ जाते थे। पापा और अंकल देर तक बातें किया करते थे। अंकल विधुर थे। उनके परिवार में कोई भी नहीं था। पापा मम्मी को अचानक ही कहीं जाना पड़ा। उसकी परीक्षा का आज आखिरी दिन था। जाना भी ज़रूरी था और उसकी परीक्षा भी नहीं छुड़ाना चाहते थे। सिर्फ एक दिन की बात थी। अतः तय किया कि परीक्षा के बाद वह अंकल के घर आ जायेगी। अगले दिन पापा मम्मी लौट कर उसे घर ले जाएंगे।
आज़ दिन भर वह बहुत बोर हुई। घर पर होती तो अपने खिलौनों से खेलती, मम्मी का सर खाती, शाम को पापा आते तो उनसे बात करती। किंतु यहां तो कुछ भी नहीं था। कुछ देर टी. वी. देखा कॉमिक्स के पन्ने पल्टे पर किसी चीज़ में मन नहीं लगा। उसने बत्ती बुझाई और सोने की कोशिश करने लगी।
आज शाम से ही ज़ोर की बारिश हो रही थी। रह रह कर बादल ग़रज़ उठते थे। बिजली चमक उठती थी। जब भी बिजली चमकती थी दीवार पर साये से उभरते थे। वह डर जाती थी। दस वर्ष के जीवन में कभी भी पापा मम्मी के बिना नहीं रही थी। उसने उठ कर बत्ती जला ली। फिर भी डर लग रहा था।
वह कमरे के बाहर आ गई। पूरे घर में शांति छायी हुई थी। ऊपर के कमरे में बिजली जल रही थी। वह जानती थी कि मुकुंद अंकल देर रात तक अपनी स्टडी में पढ़ते रहते हैं। सीढ़ियां चढ़ कर वह ऊपर गई। उसने दरवाज़ा खटखटाया और भीतर चली गई।
" तुम अभी तक सोई नहीं। " मुकुंद अंकल ने चश्मा उतारते हुए पूछा।
" डर लग रहा था। "
" इतनी बड़ी लड़की डरती है। "
उसने कुछ नहीं कहा। चुपचाप खड़ी रही।
मुकुंद अंकल जा कर सोफे पर बैठ गए। इशारे से उसे अपने पास बैठने को कहा। कुछ सकुचाते हुए वह उनके पास जा कर बैठ गई। उन्होंने उसके सर पर हाथ रख दिया। वह कुछ आश्वस्त हुई। एक हल्की सी मुस्कान उसके चहरे पर आ गई। किंतु वह हाथ धीरे धीरे नीचे की तरफ सरकने लगा। उसे असहजता महसूस हुई। उसके भीतर की औरत सजग हो गई। वह उठ कर खड़ी हो गई।
" डरो मत, आओ बैठो। "
" नहीं मैं अपने कमरे में सोने जा रही हूँ। "
" ठहरो " इस बार चहरे के भाव कठोर थे। दो बाहों ने मज़बूती से उसे जकड़ लिया। वह स्वयं को छुड़ा नहीं पाई। मज़बूर हो गई।
अचानक बारिश तेज़ हो गई। ज़ोर ज़ोर से बादल गरजने लगे। खिड़की के कांच से टकरा कर बारिश की बूँदें बहुत शोर कर रही थीं। मासूम सिसकियाँ उसमें दब कर रह गईं।
हवा के झोंके से कोई खुली हुई खिड़की खटाक से बोली और कांच टूट गया।
ज़िंदगी का बड़ा वीभत्स चेहरा देखा था उसने। वह सहम गई। किसी से कुछ न कह सकी।
सोलह साल बीत गए किंतु यह रिमझिम बारिश आज भी बोतल में बंद उस डरावने जिन्न को रीना के सामने लाकर खड़ा कर देती है।
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रीना का फ़ोन बज उठा। दिवाकर का फ़ोन था। रीना ने फ़ोन उठाया
" हैलो दिवाकर क्या हुआ "
" होना क्या है, तुम्हारी याद आ रही थी। तुम जानती नहीं मुझे बारिश कितनी पसंद है। आज अगर ज़रूरी न होता तो मैं छुट्टी ले लेता। दिन भर तुम्हारे साथ रहता। ज़रा सोंचो कितना रोमांटिक होता। पर क्या करूँ।"
रीना कुछ बोल नहीं पाई सिर्फ हल्के से हाँ ही कह सकी।
" और क्या कर रही थीं तुम। "
" कुछ नहीं बस यूं ही बैठी थी। "
" अच्छा रखता हूँ। काम ज़्यादा है। टेक केयर। "
रीना और दिवाकर की शादी को अभी डेढ़ महीना ही हुआ था। अक्सर वो दफ्तर से उसे फ़ोन करता रहता था।
रीना अपने कमरे में आ गई। खिड़कियां बंद कर परदे गिरा दिए। अभी भी बूंदों का शोर कानों में पड़ रहा था। कान में लीड लगा कर वह म्यूज़िक सुनने लगी।
वो मुकुंद अंकल के घर पर थी। मुकुंद अंकल उसके पड़ोसी थे। अक्सर शाम को वो उसके घर आ जाते थे। पापा और अंकल देर तक बातें किया करते थे। अंकल विधुर थे। उनके परिवार में कोई भी नहीं था। पापा मम्मी को अचानक ही कहीं जाना पड़ा। उसकी परीक्षा का आज आखिरी दिन था। जाना भी ज़रूरी था और उसकी परीक्षा भी नहीं छुड़ाना चाहते थे। सिर्फ एक दिन की बात थी। अतः तय किया कि परीक्षा के बाद वह अंकल के घर आ जायेगी। अगले दिन पापा मम्मी लौट कर उसे घर ले जाएंगे।
आज़ दिन भर वह बहुत बोर हुई। घर पर होती तो अपने खिलौनों से खेलती, मम्मी का सर खाती, शाम को पापा आते तो उनसे बात करती। किंतु यहां तो कुछ भी नहीं था। कुछ देर टी. वी. देखा कॉमिक्स के पन्ने पल्टे पर किसी चीज़ में मन नहीं लगा। उसने बत्ती बुझाई और सोने की कोशिश करने लगी।
आज शाम से ही ज़ोर की बारिश हो रही थी। रह रह कर बादल ग़रज़ उठते थे। बिजली चमक उठती थी। जब भी बिजली चमकती थी दीवार पर साये से उभरते थे। वह डर जाती थी। दस वर्ष के जीवन में कभी भी पापा मम्मी के बिना नहीं रही थी। उसने उठ कर बत्ती जला ली। फिर भी डर लग रहा था।
वह कमरे के बाहर आ गई। पूरे घर में शांति छायी हुई थी। ऊपर के कमरे में बिजली जल रही थी। वह जानती थी कि मुकुंद अंकल देर रात तक अपनी स्टडी में पढ़ते रहते हैं। सीढ़ियां चढ़ कर वह ऊपर गई। उसने दरवाज़ा खटखटाया और भीतर चली गई।
" तुम अभी तक सोई नहीं। " मुकुंद अंकल ने चश्मा उतारते हुए पूछा।
" डर लग रहा था। "
" इतनी बड़ी लड़की डरती है। "
उसने कुछ नहीं कहा। चुपचाप खड़ी रही।
मुकुंद अंकल जा कर सोफे पर बैठ गए। इशारे से उसे अपने पास बैठने को कहा। कुछ सकुचाते हुए वह उनके पास जा कर बैठ गई। उन्होंने उसके सर पर हाथ रख दिया। वह कुछ आश्वस्त हुई। एक हल्की सी मुस्कान उसके चहरे पर आ गई। किंतु वह हाथ धीरे धीरे नीचे की तरफ सरकने लगा। उसे असहजता महसूस हुई। उसके भीतर की औरत सजग हो गई। वह उठ कर खड़ी हो गई।
" डरो मत, आओ बैठो। "
" नहीं मैं अपने कमरे में सोने जा रही हूँ। "
" ठहरो " इस बार चहरे के भाव कठोर थे। दो बाहों ने मज़बूती से उसे जकड़ लिया। वह स्वयं को छुड़ा नहीं पाई। मज़बूर हो गई।
अचानक बारिश तेज़ हो गई। ज़ोर ज़ोर से बादल गरजने लगे। खिड़की के कांच से टकरा कर बारिश की बूँदें बहुत शोर कर रही थीं। मासूम सिसकियाँ उसमें दब कर रह गईं।
हवा के झोंके से कोई खुली हुई खिड़की खटाक से बोली और कांच टूट गया।
ज़िंदगी का बड़ा वीभत्स चेहरा देखा था उसने। वह सहम गई। किसी से कुछ न कह सकी।
सोलह साल बीत गए किंतु यह रिमझिम बारिश आज भी बोतल में बंद उस डरावने जिन्न को रीना के सामने लाकर खड़ा कर देती है।
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