मनीषा बहुत देर से अपने कमरे में बैठी योजना बना रही थी कि भतीजी के मुंडन की पार्टी में क्या क्या होना चाहिए। अभी तक उसे लगता था कि भाई और उसकी पत्नी को दुनियादारी का अनुभव नहीं है। अतः अभी भी हर काम का दायित्व उस पर ही है। हलांकि उसकी सहेली अचला ने कई बार समझाया था कि यह तुम्हारी भूल है। उन्हें उनकी ज़िंदगी जीने दो। तुमने भाई को उसके पैरों पर खड़ा कर अपना दायित्व पूरा कर लिया। अब उसे खुद सब करने दो। तुम अब अपने जीवन पर ध्यान दो। लेकिन मनीषा मानती ही नहीं थी।
सब तरफ चर्चा थी कि गीता पुलिस थाने के सामने धरने पर बैठी थी। उसने अजय के खिलाफ जो शिकायत की थी उस पर कोई कार्यवाही नहीं हुई थी। पिछले कई महीनों से गीता बहुत परेशान थी। कॉलेज आते जाते अजय उसे तंग करता था। वह उससे प्रेम करने का दावा करता था। गीता उसे समझाती थी कि उसे उसमें कोई दिलचस्पी नहीं है। वह सिर्फ पढ़ना चाहती है। लेकिन अजय हंस कर कहता कि लड़की की ना में ही उसकी हाँ होती है। गीता ने बहुत कोशिश की कि बात अजय की समझ में आ जाए कि उसकी ना का मतलब ना ही है। पर अजय नहीं समझा। पुलिस भी कछ नहीं कर रही थी। हार कर गीता यह तख्ती लेकर धरने पर बैठ गई कि 'लड़की की ना का सम्मान करो।' सभी उसकी तारीफ कर रहे थे।
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